भावपूर्ण गीतों के साथ दी सामा-चकेवा को विदाई
सुपौल। मिथिलांचल में मनाए जाने वाला भाई-बहन के स्नेह का पर्व सामा-चकेबा कार्तिक पूर्णिमा की देर शाम संपन्न हुआ। क्षेत्र के घर-आंगनों में शुक्रवार की संध्या से ही सामा-चकेवा के गीत गूंजने लगे थे।
सुपौल। मिथिलांचल में मनाए जाने वाला भाई-बहन के स्नेह का पर्व सामा-चकेबा कार्तिक पूर्णिमा की देर शाम संपन्न हुआ। क्षेत्र के घर-आंगनों में शुक्रवार की संध्या से ही सामा-चकेवा के गीत गूंजने लगे थे। इस दौरान महिलाओं ने भावपूर्ण पारंपरिक गीतों के साथ सामा-चकेबा को विदाई दी। क्षेत्र के करजाईन, बायसी, गोसपुर, रतनपुर, मोतीपुर, भगवानपुर आदि ग्रामीण अंचलों में महिलाओं ने मिट्टी निर्मित सामा-चकेबा की रस्म पूरी की। परंपरानुसार सामा-चकेबा, सतभइया, वृंदावन, चुगला, ढोलिया-बजनिया, बन तितिर, पंडित और अन्य मूर्तियों के खिलौने वाले डाला को लेकर महिलाएं घरों से बाहर निकली और सोन (पटुआ) से बने चुगला को जलाया और उसका मुंह झुलसाया। इसके बाद उन्हें सामूहिक रूप से विसर्जित किया गया। इस बारे में आचार्य पंडित धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि मिथिला की पवित्र धरती पर अनेकों पर्व मनाए जाते हैं। लेकिन मिथिला की महान लोक संस्कृति से जुड़ी भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक यह पर्व मात्र मिथिला में ही मनाए जाने की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि हमारे पर्व-त्योहार सिर्फ खुशियां ही नहीं देती, बल्कि सामाजिक चेतना के साथ-साथ अच्छी सीख भी देते हैं। सामा-चकेवा आधुनिक समाज में चुगलखोरों को यह सीख देती है कि चुगलपनी करने का अंजाम वहीं होता है जो सामा-चकेवा के चुगला का हुआ।