पांच साल यह हाल : सिचाई की नहीं हुई समुचित व्यवस्था
सुपौल। जल का अकूत भंडार रहने के बावजूद भी यहां खेतों को पानी नसीब नहीं हो पाता है।
सुपौल। जल का अकूत भंडार रहने के बावजूद भी यहां खेतों को पानी नसीब नहीं हो पाता है। नहरों में पर्याप्त पानी रहने के बाद भी यह किसान के खेतों तक कैसे पहुंचे इस दिशा में शासन-प्रशासन किसी की नजरें इनायत नहीं हो पाई है। नतीजतन किसानों को सिंचाई के लिए पंपसेट का ही सहारा लेना पड़ता है। सिचाई की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण धान का कटोरा कहे जाने वाले इस इलाके के किसान बदहाल हैं। उनकी खेती किसानी भगवान भरोसे है।
स्थिति तो यह है कि सरकार द्वारा लगाए गए नलकूप भी गांवों में बेकार पड़े हैं। कोसी तटबंध बनाए गए। इससे नहरें निकाली गई, जो किसानों की जरूरतों को पूरा करने में अक्षम है।
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परेशान हो रहे किसान
विभागीय उदासीनता के कारण जिले में खेतों की सिचाई व्यवस्था दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है। धान यहां के किसानों की प्रमुख फसल है। इसमें पानी की अधिक आवश्यकता होती है। सिचाई की व्यवस्था को लेकर नहरों का जाल बिछाया गया। शुरुआती दिनों में कुछ समय तक तो सिचाई की स्थिति ठीक-ठाक रही जो देखरेख के अभाव में अब बेकार हो गई है।
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क्या कहते हैं किसान
फोटो फाइल नंबर-1एसयूपी-10
किसान परमेश्वरी मंडल कहते हैं कि प्रखंड का अधिकतर राजकीय नलकूप मृतप्राय है। किसानों को समुचित सिचाई की व्यवस्था नहीं उपलब्ध होने के कारण उत्पादन लागत बढ़ जाता है।
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फोटो फाइल नंबर-1एसयूपी-11
किसान चंद्रशेखर मंडल कहते हैं कि सरकारी अधिकारियों की उदासीनता के कारण नलकूपों की स्थिति जर्जर है। कही नल है तो कूप गायब है और कही कूप है तो नल का पता नहीं। विभागीय लापरवाही के कारण ही सिचाई के इस सस्ते संसाधन से प्रखंड के कृषक वंचित है।
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फोटो फाइल नंबर-1एसयूपी-12
किसान सुरेश मंडल कहते हैं कि काफी लंबे समय से नलकूपों की स्थिति जर्जर है। आखिर प्रशासन इस दिशा में क्या कर रहा है। इसे मरम्मत कराने की दिशा में काम होना चाहिए जिससे सिचाई व्यवस्था दुरुस्त हो सके।
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फोटो फाइल नंबर-1एसयूपी-13
किसान राजेश यादव कहते हैं कि बड़ी नहरों में पानी रहने के बावजूद खेत तक पानी नहीं पहुंच पाता है जिस कारण पंपसेट से सिचाई करनी पड़ती है।
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फोटो फाइल नंबर-1एसयूपी-14
किसान बिशुनदेव साह कहते हैं कि सरकार भले ही किसानों को समृद्ध बनाने की बात करती हो लेकिन सिचाई की समुचित व्यवस्था नहीं रहने के कारण धरातल पर किसानों की हालत दयनीय होती जा रही है।