चलो गांव की ओर:::ब्रिटिश शासन काल में रही साहब के गांव से शाहपुर-पृथ्वीपट्टी की पहचान
-बिहार के पहले 5 इंजीनियरों में शाहपुर के भागवत नारायण ठाकुर का भी आता है नाम -ज
-बिहार के पहले 5 इंजीनियरों में शाहपुर के भागवत नारायण ठाकुर का भी आता है नाम
-जमींदार बाबूरामलाल ठाकुर कहलाते थे साहब इसीलिए गांव का नाम हुआ शाहपुर
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कल जानें निर्मली प्रखंड के मझारी पंचायत का हाल
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-पंचायत का नाम-शाहपुर-पृथ्वीपट्टी -उच्च विद्यालय-01
-मध्य विद्यालय-03
-प्राथमिक विद्यालय-04
-आंगनबाड़ी केंद्र की संख्या-12
-आबादी-13 हजार
----------------------------------------- फोटो फाइल नंबर-3एसयूपी-7,8,9
संवाद सूत्र, सरायगढ़ (सुपौल): बात ब्रिटिश शासन काल की है। उस समय प्रखंड क्षेत्र के शाहपुर गांव में बड़े जमींदार बाबूरामलाल ठाकुर हुआ करते थे। उनकी जमींदारी में इलाके भर के लोग अमन-चैन से रहते थे तथा प्यार से सभी उन्हें साहब कहा करते थे और उन्हीं के नाम पर गांव का नाम शाहपुर बन गया जो आज शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पंचायत के रूप में जाना जाता है। साहब यानि बाबूराम लाल ठाकुर अंग्रेजी हुकूमत में मजिस्ट्रेट के पावर में थे और कई फैसले में उन्हें बुलाया जाता था। जब तक साहब नहीं जाते थे तब तक फैसला रुका रहता था। साहब के ऊपर क्षेत्र के अधिक से अधिक मामले निपटाने की जिम्मेवारी थी और वह उस कार्य को पूरे पारदर्शी तरीके से किया करते थे। सुपौल में विलियम्स स्कूल की स्थापना होने लगी तो बाबूराम लाल ठाकुर उर्फ साहब की भी उसमें भागीदारी तय की गई और विद्यालय बनाने में दाताओं के नाम लिखे हैं उसमें एक नाम बाबूराम लाल ठाकुर भी है।
बाबूराम लाल ठाकुर का पुत्र भागवत नारायण ठाकुर थे जो बिहार के पहले पांच इंजीनियरों में अपनी पहचान रखते थे। गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत के समय पहली बार बिहार में पांच इंजीनियर बने थे जिसमें चार अंग्रेज और एक भागवत नारायण ठाकुर थे। उसी समय से शाहपुर बिहार के मानचित्र पर बना रहा। जब अंग्रेजों का शासन खत्म होने को था तो उस समय गांव में सर्वे की टीम पहुंची थी। टीम के सदस्य लोगों से जगह का नाम पूछने लगे और लोग साहब के गांव साहब के गांव कहने लगे। कहते हैं कि सर्वे टीम ने साहब के गांव को शाहपुर बना दिया और उसी समय से शाहपुर अपने अस्तित्व में आ गया।
शाहपुर को जब पंचायत का स्वरूप मिला तो पहले मुखिया के रूप में सुकदेव प्रसाद सिंह सामने आए और तब गांव के चर्चित व्यक्ति रहे यमुना प्रसाद पांडे सरपंच की कुर्सी पर बैठे। लंबे समय तक दोनों ने अंग्रेजी हुकूमत से तितर-बितर हुए समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। लोगों के ऊपर जो भय का साया था उसको भी यमुना प्रसाद पांडे अपनी समझ बूझ के बल हद तक दूर करने में सफल होते रहे और वह लोगों के प्यारे बनते गए। गांव के कुछ बुजुर्ग बताते हैं कि वे एक सुलझे व्यक्ति थे। जहां जाते थे लोगों में भाईचारा का संदेश देने का काम करते थे।
----------------------------------------- अंग्रेजों को भगाने में भी रही भागीदारी
शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पंचायत के बुजुर्गों में अवधेश प्रसाद सिंह, गंगा प्रसाद मंडल, लोक कुमार सिंह सहित अन्य लोग बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत से तंग होकर जब पूरा देश आंदोलन पर उतारू हो गया तो उस समय शाहपुर के यमुना प्रसाद पांडे और सुकदेव सिंह ने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और अंत तक लड़ाई में शामिल रहे। फिर 1969 में यमुना प्रसाद पांडे निर्मली के प्रमुख बने और लगातार 22 वर्ष तक उस कुर्सी पर बने रहे। 1964 में जब बिहारी गुरमैता उच्च विद्यालय बनाया गया तो यमुना प्रसाद पांडे को उसका सेक्रेटरी बनाया गया। वह धरहरा मंदिर के भी अध्यक्ष बने। बाद में पंचायत में मुखिया के पद पर बेचन मिश्र तथा सरपंच के पद पर बच्चा राय काबिज हुए और फिर वहीं से पंचायती राज की व्यवस्था चलने लगी। बड़ी पंचायत होने के कारण बाद में छिटही हनुमाननगर को शाहपुर से अलग कर दिया गया और शाहपुर-पृथ्वी पट्टी पंचायत अपना अलग पहचान रखने लगी। संयोग से आज मुखिया की कमान यमुना प्रसाद पांडे के पोते सतीश कुमार संभाल रखे हैं।
----------------------------------------- बड़े पदों पर भी रहे हैं शाहपुर के लोग
करीब 7000 आबादी वाले शाहपुर पृथ्वीपट्टी पंचायत के कुछ लोग बड़े-बड़े पदों पर भी रहे हैं। गांव के बुजुर्गों के अनुसार शाहपुर के जयशंकर सिंह पानीपत में आंख के डॉक्टर के रूप में काम कर रहे हैं। गांव के संजय झा डीएसपी बने तो कृष्ण कुमार ठाकुर सीबीआइ में पदस्थापित हुए थे। इनके अलावा कुछ नाम और आते हैं जिसमें प्रदीप यादव, अमरेंद्र कुमार पांडे, धीरज कुमार झा, पवन ठाकुर, रत्नेश ठाकुर आदि है जो बड़े ओहदे पर रहे हैं।
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कोसी के कटाव से भाग गए लोग, लेकिन बचा रहा बाबा स्थान
कहते हैं कि जब 1939 में पूरब की ओर से कोसी की दहाड़ शुरू हुई तो देखते ही देखते गांव के गांव ध्वस्त होते चले गए। कोसी नदी की कु²ष्टि शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पर भी थी और वहां से भी लोग जैसे-तैसे भाग निकले लेकिन वहां का खाकी बाबा स्थान, वार्ड नंबर 06 में बना कब्रिस्तान तथा वार्ड नंबर 05 में बना भगवती स्थान यथावत रह गया। वह स्थान आज भी लोगों के लिए श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। रामनगर गांव में बना भगवती स्थान और बाबा डीहवार स्थान कोसी के कटाव के समय बच गया था और अभी भी यथावत है।
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बैल के सहारे कुआं से पानी निकाल होती थी सिचाई
गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पंचायत में एक समय था जब सिचाई के कोई साधन उपलब्ध नहीं थे और तब गांव में जो कुआं था उससे बैल के सहारे पानी निकालकर सिचाई किया करते थे। जैसे बैल कोल्हू में घूमता है उसी तरह से कुआं के चारों तरफ घूमता था और फिर लोग पानी निकाल कर नाला में डालते थे और वही पानी खेतों तक पहुंचता था।
----------------------------------------- मड़ुआ की रोटी और मछली की चटनी थी प्रसिद्ध
शाहपुर गांव के कई लोग बताते हैं कि जब खेतों की सिचाई बैल के सहारे की जाती थी तो उस समय गांव में मड़ुआ ,कौनी, जय, चीन, खेसारी, जलई, भदई, रहरी काफी होता था। लोग मड़ुआ की रोटी और मछली की चटनी पसंद करते थे, मजदूरों को भी यही भोजन देते थे। मड़ुआ की रोटी खाकर लोग अपने को काफी मजबूत मानते थे और घंटों काम करने तक थकते नहीं थे।
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डीएम बैद्यनाथ यादव के पूर्वज भी रहते थे वहां
गांव के लोगों का कहना है कि पिछले कुछ वर्ष पूर्व सुपौल में जिलाधिकारी बन कर आए बैद्यनाथ यादव के पूर्वज रामनगर के निवासी थे। रामनगर शाहपुर-पृथ्वीपट्टी पंचायत का सबसे मजबूत गांव है। शाहपुर-पृथ्वीपट्टी में रामनगर, शाहपुर-पृथ्वीपट्टी नबीपुर गांव शामिल है। डीएम बैद्यनाथ यादव के पूर्वज का कुआं आज भी रामनगर गांव में लोगों के लिए धरोहर के रूप में बचा हुआ है और वह कोसी नदी के कटाव से बच गया था इसलिए भी चर्चा का केंद्र बना रहता है।
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पुस्तकालय को उपलब्ध है जमीन
कहते हैं कि 1955 में उस समय के विद्वान राजेंद्र मिश्र ने शाहपुर में बड़े पुस्तकालय की स्थापना के लिए अपनी 10 कट्ठा कीमती जमीन दान दी थी जो आज भी यथावत है। हालांकि वहां अभी तक पुस्तकालय की स्थापना नहीं हो सकी। वैसे मुखिया का दावा है कि वे पुस्तकालय के लिए प्रयासरत हैं।
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कटायर नदी पार करने की दूर हुई समस्या
गांव मु. खलील सहित कई लोग बताते हैं कि शाहपुर के मध्य से होकर गुजरने वाली कटायर नदी पर अंग्रेज के जमाने से ही पुल नहीं बन सका। पुल के बिना मदरसा सहित दो विद्यालय के छात्र-छात्राओं को वर्ष भर पानी तैरकर शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाना आना पड़ता था। लेकिन जब लोगों ने मुखिया के रूप में सतीश कुमार को जिम्मेवारी दी और देखते ही देखते पुल बनाने की कवायद शुरू हो गई। क्षेत्रीय विधायक अनिरुद्ध प्रसाद यादव, मुखिया तथा पंचायत के प्रमुख लोगों द्वारा बार-बार रखे जा रही समस्या को गंभीरता से लिया और फिर पुल बन गया जिससे लोगों की समस्या खत्म हुई है। हालांकि नदी में कुछ और जगहों पर पुल बनाने की जरूरत है।
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