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बालू भरे खेत ताजा कर जाते हैं कुसहा त्रासदी की यादें

सुपौल। कुसहा-त्रासदी के 12 वर्ष गुजर जाने के बाद भी क्षेत्र में हुई व्यापक क्षति आज भी अपनी दास्ता बयां कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 01 Sep 2020 10:11 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 06:16 AM (IST)
बालू भरे खेत ताजा कर जाते हैं कुसहा त्रासदी की यादें
बालू भरे खेत ताजा कर जाते हैं कुसहा त्रासदी की यादें

सुपौल। कुसहा-त्रासदी के 12 वर्ष गुजर जाने के बाद भी क्षेत्र में हुई व्यापक क्षति आज भी अपनी दास्तां बयां कर रही है। 18 अगस्त 2008 को कुसहा बांध को तोड़ कर आजाद हुई कोसी ने 19 व 20 अगस्त को प्रखंड क्षेत्र के बलुआ व लक्ष्मीनियां पंचायत एवं 21 अगस्त को मध्य क्षेत्र में कोहराम मचा प्रखंड क्षेत्र में बर्बादी की कहानी लिख डाली।

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इसकी टीस लोगों में आज भी विद्यमान है। प्रखंड क्षेत्र के सैकड़ों एकड़ उपजाऊ भूमि में बालू की मोटी चादर बिछ गई। सरकार द्वारा बालू हटाने के नाम पर दी गई अनुदान राशि उंट के मुंह में जीरा साबित हुई।

खेतों में बालू भर जाने से बंजर बनी जमीन अब उपज के लायक नहीं बची है। अब किसानों के समक्ष रोटी की बड़ी समस्या उत्पन्न हो गई है। उन्मुक्त कोसी की विकराल धाराओं ने क्षेत्र की उपजाऊ भूमि में बड़े-बड़े गड्ढे बना दिए जो आज भी विद्यमान हैं। उधमपुर, लालगंज, खूंटी, डहरिया पंचायत के चकला के ग्रामीण बताते हैं कि सैकड़ों एकड़ खेत सहित पंचायत क्षेत्र में बडे़-बड़े गड्ढे बन गए हैं जिसकी भराई की सरकार के पास कोई योजना नहीं है।

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ध्वस्त हुए सरकारी व निजी भवन तथा पुल-पुलिया

प्रखंड क्षेत्र के बलुआ, जीवछपुर, उधमपुर माधोपुर, लालगंज, लक्ष्मीपुर खूंटी, छातापुर, डहरिया, घीवहा आदि पंचायतों में कई सरकारी भवन, स्कूल, उप स्वास्थ्य केंद्र आदि के अलावा निजी मकान तथा प्रचंड क्षेत्र में कई पुल-पुलिया धराशायी हो गए। इस विनाशलीला में बड़ी संख्या में सूख गए फलदार वृक्ष के मुआवजा की आस आज भी पीड़ितों को है। ग्रामीण सड़कें आज भी जर्जर बनी हुई है।


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