अब अन्य राज्यों को भी भेजे जाएंगे सुपौल के बांस
सुपौल। रेल सेवा के बंद होने का असर यहां की किसानी रेल सेवा के बंद होने का असर यहां की किसानी पर भी खूब पड़ा है। यहां के किसान बांस की खेती करते हैं। पर उन्हें अपेक्षा के अनुरूप उसका लाभ नहीं मिल पाता था। पहले यहां से बांस कोलकाता नेपाल सहित राज्य के अन्य हिस्सों में भेजे जाते थे। रेल सेवा बंद होने के बाद बांस कारोबार पर भी प्रतिकूल असर पड़ा। अब जब रेल सेवा एक बार फिर शुरू हुई तो अन्य राज्यों को बांस भेजे जाने की उम्मीद जगी है।
सुपौल। रेल सेवा के बंद होने का असर यहां की किसानी पर भी खूब पड़ा है। यहां के किसान बांस की खेती करते हैं। पर उन्हें अपेक्षा के अनुरूप उसका लाभ नहीं मिल पाता था। पहले यहां से बांस कोलकाता, नेपाल सहित राज्य के अन्य हिस्सों में भेजे जाते थे। रेल सेवा बंद होने के बाद बांस कारोबार पर भी प्रतिकूल असर पड़ा।
अब जब रेल सेवा एक बार फिर शुरू हुई तो अन्य राज्यों को बांस भेजे जाने की उम्मीद जगी है। किसानों को इसका लाभ मिलेगा। फिलहाल सड़क मार्ग से ढुलाई महंगी होने के कारण किसानों को इसका मुनाफा अपेक्षा के अनुरूप नहीं मिलती थी।
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खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी है प्रयत्नशील
बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयत्नशील है। पर्यावरण एवं वन विभाग द्वारा स्थानीय बीएसएस कॉलेज में टिश्यु कल्चर लैब की स्थापना की गई। इसका मकसद उन्नत किस्म के पौध उपलब्ध करवाकर बांस की खेती को बढ़ावा देना है। दूसरी तरफ इसकी खेती के लिए सरकार द्वारा तीन साल में 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर राशि दिए जाने का प्रावधान है। बांस उद्योग के लिए मशीनों पर अनुदान और किसानों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था भी विभागीय स्तर पर है।
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मेगा ब्लॉक के बाद किसानों को कम होने लगा मुनाफा
2012 से पहले यहां से बांस रेल के माध्यम से अन्यत्र राज्यों में भेजे जाते थे। उसी साल बड़ी रेल लाइन बिछाने के लिए मेगा ब्लॉक लिया गया और ट्रेन से ढुलाई बंद हो गई। पहले सुपौल रेलवे स्टेशन के बगल में माल गोदाम के पास बांसों की छल्लियां लगी रहती थी। रेलवे से व्यापारियों को भाड़ा कम लगता था। इससे अधिक कारोबारी जुटे थे। इसका फायदा किसानों को भी मिलता था। उनके बांस भी सहजता से बिक जाता था।
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कम आते हैं बाहरी व्यापारी
किसानों की मानें तो जब से रेल सेवा बंद हुई है तब से यहां बांस क्रय के लिए बाहरी व्यापारियों का आना कम हो गया है। किसानों का कहना है कि पहले जब रेल से बांस बाहर भेजे जाते थे तो व्यापारी ऊंचे दाम पर भी बांस खरीद लेते थे। मेगा ब्लॉक के बाद उन्हें सड़क मार्ग से बांस ले जाने में अधिक भाड़ा देना पड़ता था, जिससे वे किसानों से सस्ते दर पर बांस क्रय करना चाहते थे। बांस उत्पादक किसानों ने कहा कि अब अगर मालगाड़ी का परिचालन शुरू होगा तो बांस की कीमत अच्छी मिलने की उम्मीद है।
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कोट..
बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए वन विभाग किसानों को प्रशिक्षण के लिए बाहर भेज रही है। वन विभाग द्वारा भी पांच हजार बांस के पौधे लगाए गए हैं। खेती के लिए सरकार किसानों को तीन साल में 25 हजार प्रति हेक्टेयर की दर से राशि भी देती है। इसके अतिरिक्त बांस आधारित उद्योग लगाना के लिए मशीन पर 50 फीसद तक अनुदान दिया जाता है।
सुनील कुमार शरण, वन प्रमंडल पदाधिकाकरी