मृत्यु भोज वेद-शास्त्र का हिस्सा नहीं, समाज पर थोपा गया
संवाद सूत्र सरायगढ़ (सुपौल) माता-पिता की मौत के बाद उसका पुत्र अपने नाम के फैलाव के लिए मृ
संवाद सूत्र, सरायगढ़ (सुपौल) : माता-पिता की मौत के बाद उसका पुत्र अपने नाम के फैलाव के लिए मृत्यु भोज का आयोजन करते हैं। मृत्यु भोज किसी वेद-शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसे समाज पर थोपा गया है, जिसे दूर होना चाहिए। भगवान राम के पिता की मौत के बाद मृत्यु भोज का आयोजन क्यों नहीं किया। जिस राम को हम आदर्श मानते हैं उनके जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को हम क्यों भूलते जा रहे हैं। समाज के पढ़े-लिखे लोगों को चाहिए कि अभी भी अपने-अपने गांव से बाहरी आडंबर खत्म कर लोगों को सही रास्ते पर ले जाने में कदम बढ़ाएं।
उक्त बातें आचार्य अंजली आर्य ने बुधवार को प्रखंड क्षेत्र के चांदपीपर गांव स्थित दुर्गा मंदिर के प्रांगण में तीन दिवसीय आर्य सम्मेलन सह वैदिक महायज्ञ के अंतिम दिन कही। कहा कि वेद भी सभी शास्त्रों का हिस्सा है और वेद में कहीं से भी मृत्यु भोज का जिक्र नहीं है। जब आदमी सहित किसी भी प्राणी की मौत होती है तो वह उसके तुरंत बाद नया जीवन धारण कर लेता है। ईश्वर की ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी आत्मा शरीर बदलने के बाद तुरंत दूसरा शरीर धारण कर लेता है। ऐसे में स्वर्ग और नर्क की बातें कहां से आती है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने समाज को गलत दिशा में धकेलने के लिए तरह-तरह के अंधविश्वास फैलाने का काम किया, जिसका भुक्तभोगी वर्तमान समाज भी हो रहा है। उन्होंने कहा कि मृत्यु भोज में अधिक से अधिक खर्च उठाकर लोग आर्थिक रूप से परेशान होते रहे हैं। मृत्यु भोज सहित समाज में फैली अन्य भ्रांतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं उसे घबराने की जरूरत नहीं है सफलता जरूर मिलेगी। उन्होंने कहा कि आचार्य दयानंद सरस्वती ने जब समाज सुधार की पहल शुरू की तो उनके ऊपर भी लोगों ने फूल के बदले पत्थर बरसाने का काम किया। उन्होंने महिलाओं से कहा कि वह सभी संकल्प लें कि अपने परिवार में किसी भी प्रकार का अंधविश्वास नहीं रहने देंगे। हर पढ़ी-लिखी महिलाओं को वेद शास्त्र में लिखी बातों पर अमल करना चाहिए। कहा कि आर्य समाज पाखंड पर विश्वास नहीं करता। हम बड़े पुरुषों के चरित्र की पूजा करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी महापुरुष या भगवान के चरित्र की चर्चा करें। पूजा-अर्चना पर जो भी खर्च किए जा रहे हैं वह सही नहीं है।
इस मौके पर आचार्य सोमदेव ने कहा कि अंधविश्वास को जल्द से जल्द दूर करें। कहा कि मृत्यु भोज खाने से आयु घटती है इसलिए गांव के हर पढ़े-लिखे लोगों को विचार करने की जरूरत है। हम अपने माता पिता को उनके जीवन काल में ही इतनी सेवा दें, ताकि मृत्यु भोज करने की जरूरत ना पड़े। आचार्य रामदयाल आर्य ने भी मृत्यु भोज नहीं करने का आग्रह किया। आचार्य ने उदाहरण के साथ अंधविश्वास दूर करने का प्रयास किया।
चांदपीपर गांव के पंडित सियाराम आर्य के प्रयास तथा ग्रामीणों के सहयोग के सहयोग से आयोजित सम्मेलन में तीनों दिन तक काफी भीड़ रही। कई लोगों ने मृत्यु भोज नहीं करने का संकल्प लिया।