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Bihar Flood: यहां चलते हैं घर, खिसकते हैं गांव, ना हो यकीं तो हम बताते हैं वजह, जानिए

Bihar Flood बिहार में बाढ़ के बाद कोसी क्षेत्र के गांव और घर अपनी जगह बदल लेते हैं। ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि सच है। इन चलने वाले घरों औऱ गांवों के बारे में जानिए यहां।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 17 Jul 2019 02:47 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jul 2019 10:13 PM (IST)
Bihar Flood: यहां चलते हैं घर, खिसकते हैं गांव, ना हो यकीं तो हम बताते हैं वजह, जानिए
Bihar Flood: यहां चलते हैं घर, खिसकते हैं गांव, ना हो यकीं तो हम बताते हैं वजह, जानिए

सुपौल [भरत कुमार झा]। यह पीसा के झुके मीनार या बेबीलोन का झूलता बाग सरीखा अजूबा ना सही लेकिन सच है कि कोसी तटबंध के अंदर घर चलते और गांव खिसकते रहते हैं। आज जो घर यहां है जरूरी नहीं कि कल वहीं मिले, कारण हर साल कटाव होता रहता है और लोग विस्थापित होते रहते हैं। आलम यह है कि लंबे समय बाद घर लौटने वाले लोगों को अपने ही घर का पता पूछना पड़ता है।
कोसी तटबंध के अंदर सुपौल, सहरसा, मधुबनी और दरभंगा जिले के 386 गांव अवस्थित हैं। इसकी आबादी लगभग चार लाख की है। कोसी में घरों का चलना गांवों का खिसकना निरंतर जारी रहता है। हर साल पानी घटने के बाद नदी के कटाव में तेजी आ जाती है।

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बरसात के आते ही कोसी में बचाव कटाव का खेल शुरू हो गया है। लोग घर तोड़कर दूसरी जगहों पर बसने लगे हैं। स्थिति यह होती है घरों की तो बात छोड़ दें गांवों का अस्तित्व खत्म हो जाता है। विगत साल की ही बात लें तो सरायगढ़-भपटियाही प्रखंड के भूलिया गांव में कटाव लगा, मंदिर सहित गांव के 25 से अधिक घर नदी में समा गए।
यहां के लोग विस्थापित होकर चार किलोमीटर खिसक गए लेकिन गांव का नाम कायम है। इसी तरह यहां का बलथरबा गांव है। पूर्व में यह गांव जहां था वहां पलार है जहां खेती होती है। यहां के लोग पूर्वी कोसी तटबंध और विभिन्न स्परों पर शरण लिए हुए हैं। अगर यहां के बनैनिया की बात करें तो यह गांव पूर्व में जहां था वहां कोसी की अविरल धारा बह रही है।

 यहां के लोग कोसी तटबंध और स्परों पर शरण लिए हुए हैं। यहां जो उच्च विद्यालय था वह अब भपटियाही मध्य विद्यालय में संचालित हो रहा है।
विगत वर्ष मरौना प्रखंड के सिसौनी छींट टोला के लगभग 160 घर नदी के कटान का शिकार हुए। ये लोग मझारी-सिकरहट्टा लो बांध पर शरण लिए। इस वर्ष भी इस इलाके में नदी का कटान जारी है। लोग घर तोड़कर पलायन कर रहे हैं। अब जब रोजी-रोजगार के लिए परदेश गए लोग दशहरा के समय में घर लौटेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि उनका घर और गांव खिसक चुका है। अपने घर तक जाने के लिए उन्हें पता पूछना पड़ेगा।


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