मानवता को बचाने के लिए नदियों को करना होगा आजाद
आजादी केवल इंसानों को नहीं चाहिए बल्कि मानवता को बचाने के लिए नदियों को भी आजाद करना होगा। उक्त बातें कोशी नवनिर्माण मंच द्वारा गांधी मैदान में आयोजित कोशी महापंचायत में जन आंदोलनों की राष्ट्रीय समन्वय मेधा पाटकर ने कही।
जागरण संवाददाता, सुपौल: आजादी केवल इंसानों को नहीं चाहिए, बल्कि मानवता को बचाने के लिए नदियों को भी आजाद करना होगा। उक्त बातें कोशी नवनिर्माण मंच द्वारा गांधी मैदान में आयोजित कोशी महापंचायत में जन आंदोलनों की राष्ट्रीय समन्वय मेधा पाटकर ने कही। कोसी नव निर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव की अध्यक्षता वाले महापंचायत को संबोधित करते हुए मेधा पाटकर ने कहा कि कोशी की समस्या पिछले व वर्तमान सत्ताधारी पार्टियों की देन है, कोशी तटबंध के अंदर रहने वाले लोग आज यदि परेशान हैं तो यह केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण है। हम आज सभी राजनीतिक पार्टियों का आह्वान करते हैं कि अब जन आंदोलनों की ताकत को समझिए और आंदोलनों के साथ खड़े होने की ताकत दिखाइए। विकास के नाम पर नदियों के साथ छेड़छाड़ करने का परिणाम सरकारें भुगतेगी, प्रकृति की पूंजी को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है जिसका परिणाम है कि पृथ्वी गर्म होती जा रही है विकास के नाम पर जल जंगल जमीन को कुछ लोगों को फ़ायदा पहुंचाने की दृष्टि से निजी हाथों में सौंपा जा रहा है जो हमें मंजूर नहीं है। हम विकास चाहते हैं विनाश नहीं। आज हमलोग कोशी की बर्बादी पर बात करने और उसका समाधान खोजने के लिए बैठे हैं, बिहार में पहले भी बाढ़ आती थी जो कि खुशहाली की प्रतीक होती थी परंतु तटबंधों की राजनीति ने बिहार की मानवता को संकट में डाल दिया है, कोशी के साथ जो अन्याय हुआ है उसके साथ न्याय हम सबको मिलकर करना पड़ेगा। सभा को संबोधित करते हुए म•ादूरों के हक व अधिकारों के हक व अधिकारों को लेकर काम करने वाले एनएपीएम के राज्य समन्वयक अरविद मूर्ति ने कहा कि कोशी की समस्या कोशी तटबंध के अंदर जीनेवाले लोगों के लिए है। यह एक राजनैतिक रोजगार है जिसको सत्ताधारी दल, विपक्ष और बिहार की नौकरशाही बिना घाटे के उद्योग धंधे के रूप में चलाती हैं। महापंचायत में आए लोगों से उन्होंने आह्वान किया कि अपने को आबाद होने के लिए इस धंधे को बर्बाद करिए और तटबंधों पर रहने की बजाय सुपौल, पटना से दिल्ली तक में बने इनके हवेलियों पर कब्जा करने का काम करें। महापंचायत को संबोधित करते हुए सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद व गोल्डमैन अवार्ड से सम्मानित प्रफूल दा सामंत्रा ने कहा कि बांध को बनाते समय उसे विकास का नाम दिया जाता है परंतु बांध बनने के बाद वह विनाश का रूप धारण कर लेता है, बाढ़ की विभीषिका देखने को मिलती है लोग हर साल उजड़ते और बसते रहते हैं। आप लोगों को 1954 से अबतक संविधान सम्मत न्याय नहीं मिल पाया है।
वहीं मछुआरा आंदोलन के प्रदीप चटर्जी ने कहा कि सरकार ने जो नीति बनाई वह बहुत ही हास्यास्पद है। कोशी में मछुआरों के लिए अबतक कोई विशेष प्रावधान नहीं किया है। पर्यावरणविद् रणजीव कुमार ने कहा कि कोई नदी शोक नहीं होती है नदी तो प्रकृति होती है अगर उनके साथ छेड़छाड़ करेंगे तो उनका नुकसान हमें भुगतना पड़ेगा। सरकार ने कोशी पर बांध बनाकर उसे विकास का नाम देते हुए कहा था कि 2-3 फीट ही पानी आएगा और जो विनाश पैदा की है हम आजतक उनको सहते आए हैं। कोशी परियोजना ने यहां के लोगों को बांट दिया है पुनर्वास की बात हुई थी जो अबतक पूरी नहीं हुई है। हरेराम मिश्रा ने कहा कि हम सब पूर्ण कोशी पीड़ित हैं हमारे दादा के समय से लेकर आजतक कोशी हमलोग कोशी की दर्दनाक कटाव व बाढ़ को झेले हैं अब हमारी बारी है कि हम अपने बच्चों के लिए लड़ाई लड़ें। राजेश यादव ने कहा कि बांध बनाते समय भी राजनीति शुरू हुई और नदी को धनुषाकार बना दिया गया। प्रत्येक वर्ष बाढ़ के नाम पर सरकार और नौकरशाह लोग लुटते हैं। जल-जीवन-हरियाली के नाम पर करोड़ों का बजट लेकर आती है। चंद्रवीर ने कहा कि हमें पुनर्वास नहीं पुन: वास चाहिए हमारे जितने संसाधन नदी में बह रहे हैं उतनी संसाधन हमें दे दे। मौके पर श्रीप्रसाद सिंह, विजय यादव, मुकेश कुमार, अरविद यादव, रामस्वरूप पासवान, प्रकाश चंद मेहता, अरविद शर्मा सोनी कुमारी, गगन ठाकुर, रामदेव शर्मा ने भी संबोधित किया।
मंच संचालन संरक्षक भुवनेश्वर यादव, रामचंद्र यादव एवं संजय मंगला गोपाल ने किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन संगठन के अध्यक्ष संदीप यादव ने किया। स्वयंसेवक के रूप में अरविद कुमार, हरिनंदन कुमार, इंद्रजीत कुमार, अमलेश कुमार, धर्मेंद्र कुमार भागवत पंडित, प्रमोद राम, संतोष मुखिया, संदीप कुमार, मनेश कुमार, विकास कुमार, अमित, सतीश, सदरूल आदि ने भूमिका निभाई।