दिनकर जयंती विशेष: उम्मीद की देहरी पर दम तोड़ रहीं राष्ट्रकवि की स्मृतियां, संरक्षण कर दरकार
बिहार के बेगूसराय में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म हुआ था। वहां उनकी स्मृतियां बदहाल पड़ी हैं। गांववासियों काे इसका मलाल है। उनका कहना है कि यदि सरकार को राष्ट्रकवि की चिंता होती तो उनकी स्मृतियाें का यह हाल नहीं होता।
बेगूसराय, रूपेश कुमार। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर से जुड़ी स्मृतियों को संरक्षण की दरकार है। राष्ट्रकवि के नाम पर जितने भी वादे हुए वो अब तक जुबानी निकले। उनके गांव-घर के लोग हसरत पाल सकते हैं, फरियाद कर सकते हैं, लेकिन धरोहरों का संरक्षण उनके बूते से बाहर है। गांववासियों का कहना है कि यदि सरकार को राष्ट्रकवि की चिंता होती तो उनकी स्मृति से जुड़ी धरोहर जीर्ण-शीर्ण क्यों? उनका चबूतरा कैसे टूटकर बिखर रहा हैै?
रामधारी सिंह दिनकर के भतीजे नरेश प्रसाद सिंह बताते हैं कि दिनकर पूरे देश के कवि थे। उन्होंने जो कुछ राष्ट्र को दिया, उसका 10 प्रतिशत भी सरकार ने उनकी धरोहरों को सहेजने के लिए नहीं किया। दिनकर जिस चबूतरे पर बैठकर कविता लिखते थे, वह ध्वस्त होने के कगार पर है। नरेश की मानें तो घर जब जीर्ण-शीर्ण हुआ तो दिनकर जी के पुत्र ने नया मकान बना दिया। जहां पर दिनकर के बचपन से लेकर जवानी तक के फोटो, उनका पलंग, छड़ी व श्रीरामचरित मानस को संभाल कर रखा गया है।
दिनकर की पाठशाला पर शिक्षा विभाग का ध्यान
दिनकर स्मृति विकास समिति के सचिव मुचकुंद कुमार मोनू बताते हैं कि अखबारों में बार-बार छपने के बाद दिनकर की बारो स्थित पाठशाला को शिक्षा विभागधरोहर के रूप में विकसित कर रहा है। सन् 1875 में निर्मित इस विद्यालय में वर्ष 1920 से 1924 तक दिनकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी।
नहीं बन सका साहित्यिक तीर्थ स्थल
घोषणाओं के बावजूद राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का पैतृक गांव सिमरिया आज तक साहित्यिक तीर्थ स्थल नहीं बन सका है। बेगूसराय में दिनकर विश्वविद्यालय की स्थापना व उलाव हवाई अड्डा का दिनकर के नाम करने की मांग अब तक पूरी नहीं हुई है। हालांकि इंजीनियरिंग कॉलेज व सिमरिया स्टेशन का नाम दिनकर के नाम पर कर दिया गया है।