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बाबा रुकुनुद्दीन साह की सेवा करने रौजा गौर आते थे शेरशाह सूरी

सिवान। तरवारा के पास स्थित रौजा गौर गांव में बाबा मखदूम सैय्यद रुकुनुद्दीन साह रहमतुल्लाह अलैह

By JagranEdited By: Published: Thu, 05 Oct 2017 03:04 AM (IST)Updated: Thu, 05 Oct 2017 03:04 AM (IST)
बाबा रुकुनुद्दीन साह की सेवा करने रौजा गौर आते थे शेरशाह सूरी
बाबा रुकुनुद्दीन साह की सेवा करने रौजा गौर आते थे शेरशाह सूरी

सिवान। तरवारा के पास स्थित रौजा गौर गांव में बाबा मखदूम सैय्यद रुकुनुद्दीन साह रहमतुल्लाह अलैह का मजार ¨हदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है। मजहब के नाम पर दंगा करने वालों को इस स्थान से सबक लेने की जरूरत है, जहां अपनी समस्याओं के निदान के लिए आज की तारीख में दोनों समुदाय के लोग पहुंचते हैं।

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इस स्थान के बारे में गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि कहीं से भ्रमण करते हुए बाबा मखदूम सैय्यद रुकुनुद्दीन साह रहमतुल्लाह अलैहि नामक फकीर यहां आकर रहने लगे। उनकी सेवा में उस समय के मुगल बादशाह शेरशाह सूरी भी आते थे। बादशाह इनसे इतने प्रभावित थे कि इंतकाल के बाद उनका मजार बनवा दिया था। इसके बाद मजार की देखरेख बीबी इजतुन निशा करने लगीं। इसके बाद इनकी बेटी गुलशन निशा, इनके दामाद वाजिद मियां, इनके बेटे मोहम्मद अली करते आए। इस समय इसकी देखरेख असगर अली उर्फ मस्तान बाबा के जिम्मे है।

इस मजार को भव्य रूप देने का प्रयास वर्ष 1960 में किया गया। इस स्थान के बारे में जितने मुंह, उतनी ¨कवदंतियां सुनी जाती हैं। आज के समय में यह स्थान ¨हदू एवं मुसलमान दोनों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। बुधवार को छोड़कर हर दिन यहां सैकड़ों लोग मत्था टेकने आते हैं। मजार की देखरेख करने वाले असगर अली उर्फ मस्तान बाबा कहते हैं कि हर धर्म में एकता का संदेश है। भाईचारा, शांति और सछ्वावना का संदेश है। आज कुछ फिरकापरस्त ताकतें धार्मिक पुस्तकों में लिखी गई बातों की गलत व्याख्या करके आपस में लड़ा रहे हैं। ऐसा गलत है। हर धर्म में एक-दूसरे की भावनाओं की इज्जत करने की सीख दी गई है। लोग अपने-अपने धर्म की ही बातों पर अमल करें तो कहीं कोई दंगा-फसाद नहीं होगा।


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