सिवान में उद्घाटन के दो माह बाद भी शुरू नहीं हुआ करोड़ों से बना आक्सीजन प्लांट
सिवान। देश में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन की दस्तक के बाद स्वास्थ्य विभाग अपनी तैयारी युद्ध स्तर पर करने में जुट गया है लेकिन दो महीने पूर्व सदर अस्पताल परिसर में धूमधाम से उद्घाटन किया गया आक्सीजन प्लांट शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। प्लांट स्थापित करने के पीछे यह योजना थी कि सदर अस्पताल के हर वार्ड व बेड तक आक्सीजन को पाइप लाइन के साथ पहुंचाया जाएगा।
सिवान। देश में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन की दस्तक के बाद स्वास्थ्य विभाग अपनी तैयारी युद्ध स्तर पर करने में जुट गया है, लेकिन दो महीने पूर्व सदर अस्पताल परिसर में धूमधाम से उद्घाटन किया गया आक्सीजन प्लांट शोभा की वस्तु बनकर रह गया है। प्लांट स्थापित करने के पीछे यह योजना थी कि सदर अस्पताल के हर वार्ड व बेड तक आक्सीजन को पाइप लाइन के साथ पहुंचाया जाएगा। इसके लिए पूरी तैयारी भी की गई थी, लेकिन कोरोना संक्रमण थमते ही उक्त महत्वपूर्ण प्लांट के एक्टीवेशन पर भी ग्रहण लग गया। स्थापना के तकरीबन दो महीने बाद भी यह अहम इकाई अनुपयोगी बनी हुई है। जब इसकी स्थापना हुई थी लोगों को लगा था कि अब शायद इमरजेंसी में आक्सीजन के लिए मरीजों को परेशान नहीं होना पड़ेगा और विभाग को भी इससे काफी सहूलियत होगी, लेकिन आज विभागीय अनदेखी की वजह से अस्पताल की जरूरतों के लिए आक्सीजन बाजार से हजारों रुपये खर्च कर मंगवाया जा रहा है और नया प्लांट यूं ही हाथी का दांत बना है। बता दें कि लगभग एक करोड़ से अधिक की लागत से पीएम केयर से डीआरडीओ व एनएचएआई के संयुक्त प्रयासों से उक्त आक्सीजन प्लांट की स्थापना कोरोना की संभावित तीसरी लहर से बचने के लिए की गई थी।
प्रति महीने डेढ़ सौ जंबो आक्सीजन सिलेंडर की होती है खरीदारी :
प्रति महीने विभाग द्वारा करीब डेढ़ सौ जंबो सिलेंडर की सदर अस्पताल में खरीदारी होती है। इसके लिए जनता की गाढ़ी कमाई से विभाग हजारों रुपए अतिरिक्त खर्च कर रहा है जो प्लांट के एक्टीवेशन के साथ बच सकता था। आक्सीजन प्लांट शुरू नहीं होने से पहले की ही भांति सदर अस्पताल में बाहर से ही जंबो आक्सीजन सिलेंडर मंगाया जा रहा है। इसके रिफिलिग पर प्रति सलेंडर डेढ़ सौ रुपया खर्च होता है। औसतन अगर प्रतिदिन अगर पांच सिलेंडर की भी खपत होती है तो महीना में सदर अस्पताल में डेढ़ सौ सिलेंडर की जरूरत पड़ती है और इसकी रिफिलिग पर 22 हजार रुपये खर्च होते हैं। इसके अलावा अन्य प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में भी आक्सीजन सिलेंडर के खपत होने पर अलग से खर्च होता है।
प्लांट के संचालन के लिए जेनरेटर व टेक्नीशियन का है अभाव :
जब आक्सीजन प्लांट पूरी तरह से स्थापित हो गया तो जिम्मेदार अधिकारी इसके अनुपयोगी बने रहने के पीछे इकाई के संचालन के लिए जेनरेटर एवं टेक्नीशियन का अभाव बता रहे हैं। गौरतलब हो कि कोरोना की दूसरी लहर में जिस तरह से आक्सीजन की कमी से हाहाकार मचा था, भुक्तभोगी लोग उसकी याद कर आज भी सिहर उठते हैं, लेकिन जब प्लांट का इंतजाम हो गया तो अब अधिकारी छोटी-मोटी जरूरतों का बहाना बना, प्लांट को शुरू करने में असमर्थता व्यक्त कर रहे हैं। बता दें कि उद्घाटन के मौके पर अधिकारियों ने कहा था कि अब जिले में आक्सीजन की कमी नहीं होगी। खासकर सदर अस्पताल में तो प्लांट के लगने के बाद 500 लीटर प्रति मिनट आक्सीजन की आपूर्ति होने की बात बताई गई थी। अधिकारियों ने सदर अस्पताल के एसएनसीयू, आपरेशन थिएटर, इंडोर आदि में डायरेक्ट पाइप लाइन से आपूर्ति होने जबकि जिले के अन्य पीएचसी में भी सिलेंडर रिफिलिग कर आपूर्ति करने की जानकारी दी थी।
कहते हैं जिम्मेदार :
कोरोना के संभावित तीसरी लहर को ध्यान में रखते हुए सदर अस्पताल में आक्सीजन प्लांट स्थापित किया गया है। प्लांट के संचालन के लिए ना तो जेनरेटर की ही व्यवस्था की गई और ना ही टेक्नीशियन की। इससे प्लांट शुरू नहीं हो पाया है। प्लांट शुरू होने के बाद 500 लीटर प्रति मिनट आक्सीजन की आपूर्ति होगी।
डा. यदुवंश कुमार शर्मा, सिविल सर्जन, सिवान