शहादत की स्मृतियां: कई गोलियां लगने के बावजूद लड़ाई की जिद पर अड़े रहे सिवान के रंभू
कारगिल युद्ध में शहीद हुए रंभू सिंह की पत्नी ने अपने पति की शहादत को याद कर बताया कि लड़ाई में पति के शरीर में कई गोलियां लगीं थीं लेकिन वो फिर भी अंत समय तक लड़ने की जिद करते रहे।
सिवान [जेएनएन]। कारगिल युद्ध में शहीद हुए सिवान जिले के जवान शहीद रंभू सिंह की पत्नी आज भी अपने पति की शहादत को याद कर गर्व महसूस करती हैं। उन्होंने बताया कि मुझे आज भी याद है जब वे अप्रैल 1999 में होली के मौके पर छुट्टी लेकर आए थे। जाते समय उन्होंने सिवान के आंदर प्रखंड के चित्तौर गांव में गर्मी देख कर कहा था कि यहां तो प्राकृतिक गर्मी है लेकिन कश्मीर में गोलियों की गर्माहट है।
छुट्टियों और होली के त्योहार के बावजूद भी वे हमेशा कारगिल की सूचना के लिए बेताब रहते थे। यही कारण है कि छुट्टी समाप्त होते ही वे देश सेवा के लिए निकल पड़े। विदा होते वक्त उन्होंने मुझसे कहा था कि चित्तौड़ और चित्तौर के नाम ही नहीं मिलते हैं, काम भी दोनों गांवों का एक जैसा ही है।
वहां की वीरांगनाओं ने देश और आत्मसम्मान के लिए जौहर किया था तो मैं भी देश की सेवा के लिए प्राणों की आहुति देने से पीछे नहीं हटूंगा। यहां से जाने के बाद मैंने उनसे संपर्क करने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन बात नहीं हो पाई। युद्ध के दौरान एक रात फोन आया भी तो बात नहीं हो पाई। 19 जून 1999 की सुबह फोन आया तो मुझे लगा कि उनका ही होगा लेकिन लेकिन सूचना मिली कि वे कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए हैं।
अंतिम समय पर भी मोर्च पर रहने की कर थे जिद
उनका पार्थिव शरीर लेकर आए जवानों ने बताया कि रंभू ने अपने प्राणों की चिंता किए बिना लगातार फायरिंग कर दुश्मनों को परेशान कर रखा था। इस क्रम में उन्हें दुश्मनों की गई गोलियां लग चुकी थी। इसके बाद उन्हें बेस कैंप लाया जा रहा था लेकिन वे बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद होने की जिद लगाए थे। बार-बार वहीं जाने को कह रहे थे और आखिर वीरगति को प्राप्त हो गए।
दो साल बाद गांव तक सिमटी शहादत
कारगिल में शहीद मेरे पति रंभू सिंह की शहादत को याद कर आज भी गांव के लोग खुद को गौरवांवित महसूस करते हैं। उनकी शहादत पर सरकार ने कन्या मध्य विद्यालय चित्तौर का नाम बदल कर रंभू ङ्क्षसह मध्य विद्यालय कर दिया है। इसी विद्यालय में उनका स्मारक बनाया गया है।
जिस समय स्मारक बना उसके बाद दो वर्ष तक प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों ने शहादत दिवस एवं कारगिल दिवस को बड़े धूमधाम से मनाया, लेकिन उसके बाद भूल गए। अब हर साल मैं और गांववाले ही शहादत एवं कारगिल दिवस मनाते हैं।
सपने को साकार कर रहे गांव के युवा
मेरे पति आंदर प्रखंड के जमालपुर पंचायत के चित्तौर गांव निवासी शहीद रंभू सिंह का एकमात्र सपना था कि मैं देश की रक्षा करूंगा और अपने गांव के सभी नवयुवकों को फौज में भर्ती कराऊंगा। ताकि वे देश की रक्षा करें। आज उनके सपने को गांव का हर युवा खुद पूरा कर रहा है। उनके शहीद होने के बाद गांव के 50 से अधिक नवयुवक फौज में भर्ती होकर सीमा पर देश की रक्षा कर रहे हैं।
बेटे की याद में आज भी गांव में दिन काट रहे ससुर
मेरे ससुर रामकिशोर सिंह चित्तौर गांव में अकेले ही रहते है। सास दुर्गावती देवी की मौत काफी पहले ही हो चुकी है। छपरा के अनुसूचति प्राथमिक विद्यालय टेरी में शिक्षिका होने के कारण मैं वहीं रहती हूं। बड़ी बेटी सेबी कुमारी (23) पटना में मेडिकल की अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही है। बेटा रोहित कुमार (20) कोटा में मेडिकल की तैयारी कर रहा है।
(जैसा कि शहीद की पत्नी सुनीता देवी ने हमारे आंदर संवाददाता सुजीत भारती को बताया)