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कहां है माता जानकी की जन्मस्थली? जानकी स्थान व पुनौरा धाम को ले विद्वानों के अपने तर्क

मां जानकी की जन्मस्थली को लेकर अंग्रेजों के जमाने से विवाद चल रहा है। इसे कुछ साधु-संत जानकी स्थान तो कुछ पुनौरा धाम बताते हैं। वे इस विवाद को समय-समय पर हवा भी देते रहते हैं, लेकिन समाधान कुछ नहीं निकलता।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 04 May 2016 09:46 AM (IST)Updated: Wed, 04 May 2016 09:22 PM (IST)
कहां है माता जानकी की जन्मस्थली? जानकी स्थान व पुनौरा धाम को ले विद्वानों के अपने तर्क

'मां जानकी की जन्मस्थली को लेकर अंग्रेजों के जमाने से विवाद चल रहा है। इसे कुछ साधु-संत जानकी स्थान तो कुछ पुनौरा धाम बताते हैं। वे इस विवाद को समय-समय पर हवा भी देते रहते हैं, लेकिन समाधान कुछ नहीं निकलता। कौन सा जन्मस्थान असली और कौन नकली है, भक्त इसके बीच नहीं पड़ते। दोनों स्थानों के प्रति उनकी श्रद्धा है।'

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सीतामढ़ी [विभा रानी]। मां जानकी की जन्मस्थली सीतामढ़ी शहर स्थित 'जानकी स्थान' है या फिर शहर से कुछ दूर पुनौरा स्थित 'पुनौरा धाम', इसका फैसला आज तक नहीं हो सका है। वजह, दोनों ही स्थान पर माता जानकी का मंदिर है। दोनों ही जगह उर्विजा कुंड भी है। इस मुद्दे पर साधु-संतों के अपने-अपने तर्क हैं।

विवाद को दी हवा

बात वर्ष 2011 की है। जानकी नवमी पर सीतामढ़ी पहुंचे चित्रकूट के श्री तुलसी पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य ने पुनौरा धाम को मां सीता की वास्तविक जन्मस्थली बताकर विवाद पैदा कर दिया था। तब से लेकर अब तक यह मामला थमा नहीं है। स्वामी रामभद्राचार्य के अनुसार मां जानकी पुनौराधाम में ही अवतरित हुई थीं। इसका उल्लेख पुराणों में भी है।

अंग्रेजों की अदालत में गया मामला

दूसरी ओर जानकी स्थान के महंत विनोद दास इसका पुरजोर विरोध करते हैं। वे कहते हैं, जानकी स्थान ही मां सीता की प्राकट्य स्थली है। इसके प्रमाण और पर्याप्त भी सबूत हैं। उनके अनुसार यहां पहले शिष्य परंपरा थी। गुरु के परलोक सिधारने के बाद चेला ही महंत बनते थे।

एक महंत के परलोक जाने के बाद उनके दो शिष्यों में भिड़ंत हो गई। दोनों ही मंदिर का महंत बनने का दावा करने लगे। स्थानीय संतों की पहल पर भी मामले का निदान नहीं हो सका। तब शासन अंग्रेजों का था। मामला कोर्ट गया। लंदन की प्रीवी काउंसिल ने जानकी स्थान को ही जानकी की प्राकट्य स्थली होने का फैसला सुनाया था।

इसके बाद दूसरे शिष्य ने पुंडरिक ऋषि के मठ पुनौरा में जाकर मंदिर बना लिया। यही पुनौरा मठ बाद में राम जानकी मंदिर बन गया। बताते हैं कि पुनौरा में पुंडरिक ऋषि का आश्रम था। यहीं पर वे तप करते थे।

महंत के अनुसार 19वीं शताब्दी में बिरला समूह ने जानकी स्थान मंदिर का जीर्णोद्धार कराना चाहा, लेकिन तत्कालीन महंत ने मंदिर का नाम बिरला मंदिर पड़ जाने की आशंका को लेकर ऐसा नहीं होने दिया। तब बिरला की टीम पुनौरा पहुंची और वहां मंदिर का जीर्णोद्धार कराया।

सांपों के आतंक से कराया मुक्त

पंडित गिरधर गोपाल चौबे बताते हैं कि वर्ष 1599 में यूपी के शाहाबाद जिले के मिश्रौलिया गांव निवासी हीराराम दास अयोध्या से लौटकर मिथिला के तत्कालीन राजा नरपत ङ्क्षसह देव से मिले। उनसे एकांतवास के लिए जगह मांगी। राजा ने उन्हें सुलक्षणा नदी का इलाका सौंपा। तब यह इलाका बीहड़ जंगल था, जहां सांपों का आतंक था। लेकिन, बाबा ने अपने चमत्कार की बदौलत सर्पों को विषहीन कर दिया।

कालांतर में इन सर्पों ने इसी उर्विजा कुंड के पास अपने प्राण त्याग दिए। बाद में इस स्थल की खुदाई के दौरान राम-जानकी की प्रतिमा मिली, जिसे हीराराम दास ने जानकी स्थान में स्थापित किया।

दोनों स्थान आस्था के केंद्र

रेवासी निवासी पंडित नागेंद्र झा बताते हैं कि दोनों स्थान स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा व आस्था का केंद्र हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर किसी भी तरह का विवाद नहीं होना चाहिए।


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