समर्थकों के साथ पैदल ही प्रत्याशी गांव-गांव मांगते थे वोट
लोकसभा चुनाव को ले जिले में चुनाव चिन्ह आवंटन के साथ ही विभिन्न प्रत्याशी की चर्चा व प्रचार जोर पकड़ने लगा है।
सीतामढ़ी। लोकसभा चुनाव को ले जिले में चुनाव चिन्ह आवंटन के साथ ही विभिन्न प्रत्याशी की चर्चा व प्रचार जोर पकड़ने लगा है। इलाके में चहुओर चुनावी शोर मचा है। वृद्ध हो या युवा, महिला हो या पुरुष मतदाता प्रत्याशी को तौलना शुरू कर दिया है। सभी में सटीक प्रत्याशी चुनने का उत्साह दिखने लगा है। इधर, प्रशासन शतप्रतिशत मतदान कराने को ले शहर, गांव व गली तक विभिन्न माध्यमों से मतदाता जागरूकता अभियान चला रहा है। आगामी 6 मई को मतदान होना है। चुनाव दर चुनाव प्रचार एवं व्यवस्था के साथ ही मतदाताओं की सोच में भी बदलाव आ रहा है। सीतामढ़ी लोकसभा के लिए पहले चुनाव से अबतक हर चुनाव में मतदान करने वाले 88 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रामचन्द्र ठाकुर उर्फ कविजी इस बार भी मतदान को लेकर उत्साहित हैं। पुरानी बातों को याद करते बताते हैं वे वर्ष 1952 के आजाद भारत के प्रथम चुनाव से ही मतदान कर रहे हैं। उस समय मुजफ्फरपुर जिला था और लोकसभा पुपरी था। प्रथम चुनाव में मुजफ्फरपुर के पवनधारी बाबू की जीत हुई थी। वर्ष 1957 में सीतामढ़ी लोकसभा वजूद में आया था। उन्होंने बताया कि पहले वोट में जाती पाती का नमो निशान नहीं था। उस जमाने के मतदान में महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर थी, न ध्वनि विस्तारक कोई यंत्र और नहीं प्रचार प्रसार का साधन था। लोग समूह बनाकर उम्मीदवार के साथ पैदल गांव-गांव घूमकर वोट मांगते थे। वर्ष 1957 से पूर्व जय प्रकाश नारायण द्वारा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया। उसका चुनाव चिन्ह बरगद का वृक्ष था और कांग्रेस का जोड़ा बैल था। नागेंद्र प्रसाद कांग्रेस से और ठाकुर युगल प्रसाद सिंह सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे। उस समय लाल और पिला रंग के लकड़ी के बक्से को कमरे में रख दिया जाता था और मतदान कर्मी से मिले टिकट को अपने पसंद के प्रत्याशी के बक्से में गिरा दिया जाता था। पहले इतनी जागरूकता भी नहीं थी, लोगों में पक्षपात व विवाद का नामोनिशान नहीं था। लोग एक विचार कर अच्छे उम्मीदवार को चुनते थे। अब तो शिक्षा के साथ सब कुछ बदल गया है। जागरूकता बढ़ गई है, लेकिन नैतिकता गिर गई है। सार्वजनिक हित की सोच अब नहीं रही। लेकिन, इसबार राष्ट्रवाद व सुरक्षा की सोच हावी है।