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एमपी हाई स्कूल में बनती थी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की रणनीति

सीतामढ़ी। जिले के कई ऐसे स्थल आज भी गवाह के रूप में खड़ा है जहां आजादी के दीवाने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की रणनीति तय किया करते थे।

By JagranEdited By: Published: Fri, 24 Jan 2020 12:07 AM (IST)Updated: Fri, 24 Jan 2020 06:17 AM (IST)
एमपी हाई स्कूल में बनती थी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की रणनीति
एमपी हाई स्कूल में बनती थी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की रणनीति

सीतामढ़ी। जिले के कई ऐसे स्थल आज भी गवाह के रूप में खड़ा है जहां आजादी के दीवाने अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की रणनीति तय किया करते थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान यहां स्वतंत्रता सेनानी आश्रय पाते थे । इन स्थानों से स्वाधीनता संग्राम की लौ जलती रही। शहर सनातन धर्म पुस्तकालय, एमपी हाई स्कूल डुमरा, गीता भवन डुमरा, विद्यालय, बाजपट्टी के रामफल मंडल चौक, बथनाहा के माधोपुर आदि स्थानों से अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में संग्राम की रणनीति तय होती थी। एमपी हाई स्कूल डुमरा : एमपी हाई स्कूल की स्थापना सन 1898 में हुई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां क्रांतिकारियों एवं भारतीय नेताओं की आश्रय स्थली रहीं। आजादी से जुड़े कई नेता यहां आते थे। इसके बाद इस क्षेत्र का विकास हुआ और वर्तमान में यहां प्रखंड कार्यालय से लेकर समाहरणालय का निर्माण कराया गया।

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सनातन धर्म पुस्तकालय : इस पुस्तकालय की स्थापना अंग्रेजी हुकूमत के समय वर्ष 1925 में हुई थी। यही वह स्थल है जहां पठन पाठन का केंद्र बना था। किताब पढ़ने के बहाने यहां स्वतंत्रता सेनानियों का जमावड़ा होता था और यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तय की जाती है। यहां अंग्रेजी हुक्मरान के लोग भी आते थे। यह केंद्र स्वतंत्रता सेनानियों के लिए संदेश देने का कार्य करता था। बुद्धिजीवियों के जमावड़े के दौरान यहां नीतिगत चर्चाएं होती रहती थी।

गीता भवन डुमरा : यह पहले स्व. मथुरा प्रसाद का आवास था। आजादी की लड़ाई के क्रम में यहां स्वतंत्रता सेनानियों को आना जाना होता था। राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को इस जगह से लगाव था। पत्राचार से लेकर यहां गोष्ठी का आयोजन हुआ करता था। कालांतर में यह संतों का आश्रय स्थली बनी और इसे गीता भवन का रूप दिया गया।

शहीद रामफल मंडल चौक : बाजपट्टी स्थित शहीद रामफल मंडल चौक अगस्त क्रांति का गवाह बना हुआ है। 23 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी अफसर एसडीओ समेत चार अधिकारियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस घटना को लेकर 23 अगस्त 1943 को रामफल मंडल को भागलपुर के जेल में फांसी दी गई थी।


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