इस सरकारी स्कूल को देखकर बदल जाएगी आपकी सोच, फीका पड़ने लगेंगे प्राइवेट स्कूल भी
सीतामढ़ी। आम तौर पर सरकारी विद्यालयों को लेकर लोगों के जेहन में एक अलग ही धारणा रहती है।
सीतामढ़ी। आम तौर पर सरकारी विद्यालयों को लेकर लोगों के जेहन में एक अलग ही धारणा रहती है। लोग सोच लेते हैं कि पढ़ाई नहीं होती होगी, व्यवस्था संतोषजनक नहीं होगी। लेकिन कन्या मध्य विद्यालय भी सरकारी स्कूल है, जिसे देखकर आपकी सोच बदल जाएगी। कोरोना काल से पहले यह स्कूल भी दूसरे विद्यालय सरीखे हुआ करता था। इसकी पहचान भी गिरती दीवारें, टूटी फर्श और नाममात्र के बच्चों से थी, लेकिन आज चमचमाती फर्श, दीवारों पर शानदार पेंटिग, साफ-सुथरे शौचालय और ढेर सारे बच्चों से है। यह सब संभव हो पाया है प्रधानाध्यापक शशिकांत कर्ण की बदौलत। उनके जुनून से न सिर्फ इस विद्यालय की सूरत-सिरत में अमूलचूल बदलाव आया है बल्कि, सरकारी विद्यालय के प्रति लोगों की सोच भी बदली है। सबसे पहले उन्होंने बिल्डिग की दशा सुधारी। अब विद्यालय में पार्क, शौचालय, पंखे, टाइल्स देखकर कोई कह नहीं सकता कि यह सरकारी स्कूल है। यहां के बच्चे स्कूल ड्रेस में होते हैं। यहां का शैक्षणिक माहौल व सुविधाओं के आगे कई निजी विद्यालय भी कहीं नहीं ठहरते। उन सरकारी विद्यालयों के लिए भी एक उदाहरण है जहां के शिक्षक-प्रधानाध्यापक साधन-संसाधन की कमी का रोना रोते हैं।
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बरबस सबका ध्यान आकर्षित कर लेता कन्या मध्य विद्यालय
यह विद्यालय सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है। कमरों की दीवारों पर मिथिला पेंटिग के संदेश, हरियाली युक्त परिसर, बागवानी में रंग-बिरंगे फूल ही नहीं खाली जगह पर सब्जी भी प्रधानाध्यापक उगाते हैं। वे खुद भी झाड़ू लेकर परिसर की सफाई कर दिखते हैं। शौचालय की गंदगी भी खुद ही सफाई कर डालते हैं। विद्यालय परिसर में एक पार्क बना है जिसका नाम शैक्षणिक गतिविधि पार्क रखा गया है। फिलहाल इस तरह का पार्क बिहार के सरकारी स्कूलों में शायद ही कही हो। चेतना सत्र के दौरान इस पार्क में विषयगत गतिविधियों को जोड़ते हुए शिक्षण कार्य किया जाता है। विद्यालय में आमूलचूल परिवर्तन को देखकर ग्रामीण हो या पदाधिकारी हर कोई गदगद है।
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सिर्फ पांच साल में बदल गई विद्यालय की सूरत प्रधानाध्यापक ने वर्ष 2016 में योगदान दिया। उस समय विद्यालय चारों ओर गंदगी और जंगल-झाड़ियों से घिरा था। उनकी पहल पर वहां चौकीदार बाहल हो गया जो आसपास गंदगी फैलाया करते थे। लेकिन हठी लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आ रहे थे। प्रधानाध्यापक ने विद्यालय अवधि से एक घंटा पूर्व पहुंचकर खुद झाड़ू-बेलचा लेकर उसकी सफाई करने लगे। यह देखकर लोगों की चेतना जागी। स्थानीय लोगों ने धीरे-धीरे अपनी आदत बदल डाली। प्रधानाध्यापक के साथ उनके सहयोगी शिक्षकों ने भरपूर योगदान दिया। अपनी कर्तव्यनिष्ठा और प्रेरणदायी कार्य को लेकर समाज के हर वर्ग में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। प्रखंड में स्वच्छता दूत के तौर पर मिसाल बनकर उभरे।
---------------------- अधिकांश बच्चों का होता है विद्यालय में नामांकन
इस वर्ष विद्यालय में 222 से अधिक बच्चे नामांकित हुए हैं। प्रखंड में इतनी संख्या में नामांकन लेने वाला यह पहला विद्यालय है। विद्यालय में पढ़ाई और अनुशासन भी जबरदस्त है। बच्चे विद्यालय में एक बार प्रवेश कर गए तो उन्हें बाहर जाने की अनुमति नहीं होती। प्राइवेट विद्यालय की तरह यहां नियमों का पालन सख्ती से होता है। बीडीओ बोले-दूसरों के लिए उदाहरण हैं प्रधानाध्यापक शिक्षक दिवस के मौके पर जिला प्रशासन ने प्रधानाध्यापक को सम्मानित किया। कई मंचों पर शिक्षा और स्वच्छता के क्षेत्र में उन्हें सम्मान हासिल हुआ है। बीडीओ दिवाकर कुमार का कहना है कि ऐसे शिक्षक भगवान के अवतार होते हैं, जो ईमानदारी से अपना कर्म कर सबका मान बढ़ाते हैं और विद्यालय का नाम रोशन करते हैं। प्राइवेट स्कूलों से बढ़कर बनाना लक्ष्य : प्रधानाध्यापक शशिकांत कर्ण का कहना है कि हमारा लक्ष्य है कि यह विद्यालय किसी प्राइवेट स्कूल से बढ़कर साबित हो। विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हासिल हो। विद्यालय में कंप्यूटर की व्यवस्था करा रहा हूं। ताकि, उनमें कंप्यूटर शिक्षा की ललक जागे।