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तीन बार हारे तो चार बार विधायकी का चुनाव जीते, ठुकरा दिया मंत्री पद

सीतामढ़ी। पूर्व भाजपा विधायक दिनकर राम के बारे में जानने वालों का कहना है कि उनका पूरा

By JagranEdited By: Published: Sun, 06 Dec 2020 12:24 AM (IST)Updated: Sun, 06 Dec 2020 12:24 AM (IST)
तीन बार हारे तो चार बार विधायकी का चुनाव जीते, ठुकरा दिया मंत्री पद
तीन बार हारे तो चार बार विधायकी का चुनाव जीते, ठुकरा दिया मंत्री पद

सीतामढ़ी। पूर्व भाजपा विधायक दिनकर राम के बारे में जानने वालों का कहना है कि उनका पूरा राजनीतिक सफर बेदाग रहा। वे सरल स्वभाव के थे और सर्वसुलभ थे। एक आम आदमी की कॉल भी उनके मोबाइल पर जाती तो वे स्वयं रिसीव करते और समस्या सुनकर उचित कार्रवाई करते थे। कभी किसी को धोखे में नहीं रखते और झूठ से कोसों दूर रहते थे। होली के दौरान वे अपने क्षेत्र के गांवों में घूमते थे। लोगों के साथ डंफ व ढ़ोलक की थाप पर होरी गाया करते थे। उनका यह अंदाज लोगों को बेहद पसंद आता। यही कारण था कि जबतक वे स्वस्थ थे, तब तक पार्टी ने उनपर ही भरोसा जताया और वे लगातार भरोसे पर खरा उतरे। उनके मीठे बोल व सजह स्वभाव के कारण क्षेत्र की आम जनता के दिलों में उनके प्रति काफी आदर भाव था। उनके साथ अर्से तक काम कर चुके भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री सुरेंद्र झा ने कहा कि पार्टी ने एक स्वच्छ छवि के ईमानदार नेता खो दिया है। वे मिलनसार और सर्वसुलभ नेता थे। भाजपा के जिला उपाध्यक्ष माधवेंद्र सिंह कुशवाहा,बथनाहा मंडल अध्यक्ष रामेश्वर दास, सुधीर झा, सत्येंद्र सिंह, वीरेंद्र सिंह ने पार्टी के लिए अपूरणीय क्षति बताया। तीन हार के बाद चार बार विधायक बने थे दिनकर राम

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उनका राजनीतिक सफर जिला को-ऑपरेटिव के कार्यकारिणी सदस्य से शुरू हुआ था। वे किसान भी थे। बाद में वे मेजरगंज विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1970 के दशक से लेकर 90 के दशक तक जनता पार्टी, समता पार्टी व राजद के टिकट पर तीन बार विधानसभा चुनाव लड़े, मगर जीते नहीं। वर्ष 2005 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 2005 में दो बार और 2010 तथा 2015 में दो बार जीते। चर्चा यह भी है कि तीसरी बार जब वे चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे तो उन्हें मंत्री पद का ऑफर भी हुआ लेकिन उन्होंने अपनी अस्वस्थता का हवाला देकर मंत्री पद सहजता से ठुकरा दिया।


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