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कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..!

सीतामढ़ी। देश प्रेम और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हर नागरिक में होता है। फतेहपुर गिरमिसानी के रहने वाले मितन राम में यहीं जज्बा स्कूली दिनों से ही रहा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Sep 2021 11:42 PM (IST)Updated: Sun, 12 Sep 2021 11:42 PM (IST)
कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..!
कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..!

सीतामढ़ी। देश प्रेम और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हर नागरिक में होता है। फतेहपुर गिरमिसानी के रहने वाले मितन राम में यहीं जज्बा स्कूली दिनों से ही रहा। मुफिलीसी में जीवन गुजर रहा था मगर, दिल में देशभक्ति हिलोरें मार रही थीं। गुजरते वक्त के साथ जोश और जुनून बढ़ता ही गया। वर्ष 2006 में आखिरकार एसएसबी में ज्वाईनिग मिली और वर्दी को अपना कर्म और धर्म समझकर चूम लिया। मगर, 15 साल की सेवा में ही यूं दुनिया को अलविदा कह जाना सबके लिए दुखदाई रहा। तीन दिन पहले शुक्रवार सुबह दिल का दौरा पड़ने से सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) के जवान मितन राम (38) की मृत्यु के बाद उनका पार्थिव शरीर शनिवार देररात सीतामढ़ी लाया गया। मध्य कश्मीर के बड़गाम जिले के नागम चदूरा में उनकी तैनाती थी। रविवार सुबह तिरंगा में लपेटे ताबूत में उनका पार्थिव शरीर जैसे ही सीतामढ़ी पहुंचा हर किसी की आंखें नम हो गईं। शहर से गांव तक पूरा इलाका गमगीन रहा। अंतिम दर्शन को उमड़ा जनसैलाब यहीं बता रहा था वतन पे मरने वालों के लिए आम आदमी के दिल में कितनी मोहब्बत और कितना मान-सम्मान होता है। रोड की दोनों तरफ लोगों का तांता लगा हुआ था। भारी भीड़ के चलते रास्ते में टस से मस होने की जगह न थी। भारत माता की जय, मितन राम को शहीद का दर्जा देते हुए लोग जिदाबाद और अमर रहे के नारे लगा रहे थे। कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..जैसे देशभक्ति के गाने भी बज रहे थे जो यह संदेश दे रहे थे कि मितन राम अब नहीं रहे मगर सरहद की सुरक्षा के देश के नौजवानों के भरोसे छोड़ गए हैं। इस मौके पर युवाओं में देशभक्ति का जज्बा देखते ही बन रहा था। सौ मीटर की तिरंगा यात्रा निकाली और भारत माता की जय, मितन राम अमर रहे.. वंदेमातरम के नारों से आसमान को गुंजायमान कर अपने लाडले को अंतिम विदाई दी। रात 12 बजे ही पार्थिव शरीर लाया गया सीतामढ़ी एसएसबी हेडक्वार्टर

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एसएसबी 51वीं बटालियन, राजोपट्टी के डिप्टी कमांडेंट सुनील कुमार सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि पार्थिव शरीर को वह और सशस्त्र बल लेकर देररात में ही पटना से सीतामढ़ी पहुंच गए थे। रात होने की वजह से एसएसबी के हेडक्वार्टर राजोपट्टी में ही उसको रखा गया। सुबह छह बजे एसएसबी का काफिला जवान के घर फतेहपुर गिरमिसानी के लिए रवाना हुआ। सीतामढ़ी के इस सपूत के अंतिम दर्शन के लिए भारी जनसैलाब रास्ते में सड़क के दोनों किनारे उमड़ा हुआ था। हाथों में फूलमाला लेकर लोगों ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी। उन्होंने बताया कि सूचना मिली कि ड्यूटी में ट्रेनिग के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। हवाई जहाज से पार्थिव शरीर को पटना लाया गया और वहां से पूरे सम्मान के साथ ताबूत में रखकर सीतामढ़ी लाया गया। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ फतेहपुर गिरमिसानी में हलेश्वर स्थान महादेव मंदिर के पश्चिम भाग में किया गया। नौ माह के पुत्र आदविका अनम ने पिता की चिता को मुखाग्नि दी। जवानों और हमने ने सलामी दी। स्व. मितन राम की पत्नी सुमन देवी को एक लाख रुपये दाह-संस्कार के लिए दिए गए।

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छह संतानों में पांचवे नंबर पर थे मितन

स्व. जगीर राम की छह संतानों में मितन राम पांचवे नंबर पर थे। उनके तीसरे भाई भोला राम भी गुजर चुके हैं। सबसे बड़े नंदलाल राम, किशोरी राम, जितन राम हैं उसके बाद मितन राम थे तथा उनके छोटे भाई राधेराम हैं, जो बीएमपी में सिपाही हैं। गांव के रहने वाले और हलेश्वर स्थान महादेव मंदिर के सचिव अधिवक्ता सुशील कुमार के अनुसार, पिता ने मेहनत-मजदूी करके परिवार का गुजरा किया। जितन राम पिता की मेहनत-मजदूरी को देखकर स्कूली दिनों से ही आत्मनिर्भर रहने लगे। कोचिग में पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च निकालते और पढ़ाई करते। कहते हैं कि इस परिवार की माली हाजत अत्यंत नाजुक थी। इसलिए नौकरी उनके लिए जरूरी थी। किस्मत ने साथ नहीं दिया जिससे पहली बार ज्वाइनिग होते-होते रह गई। नौकरी में छंट गए। हिम्मत नहीं हारी और अपने दुखों को याद करते हुए दूसरी बार प्रयास किया तो किस्मत ने साथ दिया और वर्दी के रूप में उनका सपना पूरा हो गया।

--------------------- 2006 में नौकरी, तीन साल बाद मेजरगंज के खैरवा में सुमन से हुई शादी

2006 में नौकरी मिली तो तीन साल बाद 2009 में मेजरगंज के खैरवा में सुमन कुमारी से मितन राम की शादी हुई। गरीबी और मुफिलीसी के दिन यहीं से खत्म होने लगे। हालांकि, संतान प्राप्ति के लिए भी 11 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ा। काफी मन्नतों के बाद उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बड़े प्यार से मितन और उनकी पत्नी सुमन ने अपने लाडले का नाम आदविका अनम रखा। वह अभी नौ माह का है। घर के लोग बताते हैं कि छह माह का जब वह हुआ तब मितन छुट्टी पर घर आए थे इस वादे के साथ कि तुरंत आएंगे। मगर, ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। हंसते-मुस्कुराते मितन तो नहीं लौट सके उनका पार्थिव शरीर ही आया।

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डिप्टी कमांडेंट व भाईयों ने दिया पार्थिव शरीर को कंधा

जवान मितन राम के पार्थिव शरीर को डिप्टी कमांडेंट सुनील कुमार सिंह, उनके भाई बीएमपी में सिपाही राधेराम, नंदलाल राम, चचेरे भाई हरिश्चंद्र राम, किशोरी राम ने कंधा दिया। मितन के भतीजा रौशन ऋतिक उर्फ शक्ति ने कहा कि अब हमारे चाचा तो नहीं रहे कम से कम सरकार उनकी यादों को जिदा रखने का काम करे। उनकी स्मृति में गांव-शहर में कहीं स्मारक, स्तंभ और उद्यान वगैरह बनवा दे। ताकि, सरहद की सुरक्षा करते हुए जान गंवाने वाले इस सपूत का नाम अमर रहे।


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