डीसीएलआर, सब इंस्पेक्टर, पेशकार चढ़ चुके हैं निगरानी के हत्थे
शेखपुरा जिले में डीसीएलआर सब इंस्पेक्टर शिक्षा विभाग का कर्मचारी सहकारिता पदाधिकारी पेशकार और बिजली विभाग के कनीय अभियंता को निगरानी विभाग भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार कर चुकी है। कुछ साल पूर्व निगरानी विभाग के द्वारा सदर अस्पताल परिसर में सदर थाना क्षेत्र में तैनात सब इंस्पेक्टर अरुण कुमार सिंहा को एक केस के सिलसिले में छह हजार घूस लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया।
जासं, शेखपुरा : शेखपुरा जिले में डीसीएलआर, सब इंस्पेक्टर, शिक्षा विभाग का कर्मचारी, सहकारिता पदाधिकारी, पेशकार और बिजली विभाग के कनीय अभियंता को निगरानी विभाग भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के आरोप में गिरफ्तार कर चुकी है। कुछ साल पूर्व निगरानी विभाग के द्वारा सदर अस्पताल परिसर में सदर थाना क्षेत्र में तैनात सब इंस्पेक्टर अरुण कुमार सिंहा को एक केस के सिलसिले में छह हजार घूस लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया गया। निगरानी की टीम अनुमंडल कार्यालय में तैनात खुर्शीद आलम नामक पेशकार को भी रंगे हाथ गिरफ्तार कर चुकी है। इसी सिलसिले में जिले में वरीय उप समाहर्ता एवं प्रभारी भू अर्जन पदाधिकारी कामिल अख्तर को भी निगरानी विभाग की टीम गिरफ्तार कर चुकी है। शिक्षा विभाग के क्लर्क और प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी को भी निगरानी अपने शिकंजे में ले चुकी है। जबकि बरबीघा विद्युत विभाग के कनीय अभियंता रामाश्रय राम को भी निगरानी विभाग पकड़ चुकी है
—- विकास कार्यों में कमीशन खोरी की चर्चा आम
कार्यपालक पदाधिकारी के द्वारा सभापति को देख लेने की घमकी देते हुए कार्यालय से निकलना और सभापित को गाली देने से
बरबीघा नगर परिषद में विकास कार्यों में होने वाले निर्माण कार्य में कमीशन खोरी की चर्चा अब खुलकर सतह पर आ चुकी है। नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी विजय कुमार और नगर परिषद के सभापति रौशन कुमार के बीच इसी कमीशन को लेकर अनबन की बात चर्चा में है। कहा जाता है कि कार्यपालक पदाधिकारी खुद हमेशा कटने वाले 16 प्रतिशत कमीशन पर अपनी दावेदारी कर दी। इस वजह से अनबन शुरू हुई और फिर बात बढ़ते-बढ़ते यहां तक पहुंच गई। चर्चा यह है कि सभापति के द्वारा ही कार्यपालक पदाधिकारी को निगरानी के शिकंजे में लेने के लिए सारी कार्ययोजना बनाई गई और जाल बुना गया। फिर उसी कमीशन खोरी के चक्कर में कार्यपालक पदाधिकारी निगरानी के शिकंजे में आ गए। चर्चा यह भी रही कि संवेदक संघ कार्यपालक पदाधिकारी के विरोध में ही लगा हुआ था। जबकि एक संवेदक कार्यपालक पदाधिकारी के पक्ष में काम कर रहे थे। पहले भी कई संवेदकों के द्वारा पैसे देने की बात हुई परंतु कार्यपालक पदाधिकारी खुद पैसा नहीं ले रहे थे। इसी बीच जाल बिछाकर आखिरकार निगरानी के कब्जे में विजय कुमार को ले लिया गया।
—