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11 डिसमिल जमीन बना विवाद का कारण

कई जिलों में खौफ का पर्याय बने गैंगस्टर संतोष झा के परिजन को पुरनहिया के दोस्तियां गांव में अभी एक अदद आश्रय स्थल की तलाश में है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Sep 2018 12:12 AM (IST)Updated: Mon, 03 Sep 2018 12:12 AM (IST)
11 डिसमिल जमीन बना विवाद का कारण
11 डिसमिल जमीन बना विवाद का कारण

शिवहर। कई जिलों में खौफ का पर्याय बने गैंगस्टर संतोष झा के परिजन को पुरनहिया के दोस्तियां गांव में अभी एक अदद आश्रय स्थल की तलाश में है। नतीजतन उन लोगों ने अपनी जमीन में बने सामुदायिक भवन को अस्थायी ठिकाना बना रखा है। उक्त जमीन संतोष के पिता चंद्रशेखर झा ने करीब 30 वर्ष पूर्व पंचायत भवन निर्माण के लिए सरकार को निबंधित कर दिया था। कहते हैं कि इसी के बाद नवलकिशोर यादव के परिवार से अदावत हुई थी। क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि पंचायत भवन का निर्माण बभनटोली में हो।इसके जबाब में नवलकिशोर यादव ने आनन- फानन में दोस्तियां बाजार पर जमीन रजिस्ट्री करवाकर वहाँ पंचायत भवन बनवा दिया। बताते हैं कि बस यहीं से दोनों के बीच खुन्नस की शुरुआत हुई। पंचायत भवन के लिए वही 11 डिसमिल जमीन देनेवाले चंद्रशेखर झा अब निराश हो चुके थे। तभी इसी बीच हनुमान आराधना के दिन पिता के अपमान ने 14 वर्षीय किशोर संतोष झा के मन में बदले की आग की सुलगा दी। वहीं तीसरी वजह सड़क निर्माण को लेकर स्वाभिमान की लड़ाई थी। जो बभनटोली वासियों को मुख्य पथ से जोड़ती है। - संपर्क पथ पर हुई अदावत उक्त संपर्क पथ को लेकर 2001 में दोनों पक्षों में खूनी संघर्ष की नौबत आ गई। बावजूद इसके उस खाली पड़ी जमीन होकर सड़क बन ही गयी।फिर क्या था उस सड़क का बनना जहां एक ओर ओर बभनटोलीवासियों के लिए वरदान साबित हुआ वहीं दूसरी ओर जंग की पृष्टभूमि तैयार हो गई ।अब तक संतोष झा अपनी ताकत बढ़ाने के लिए नक्सली गौरीशंकर झा के साथ नक्सली रंग में रंग चुके थे। जिसकी शुरुआत डायनामाइट के धमाके से हुई। 03 मार्च 2003 को मुखिया नवलकिशोर का घर डायनामाइट से उडा़ दिया गया। हालांकि मुखिया किसी तरह जान बचाकर भागने में कामयाब रहे।मुखिया ने नक्सलियों से दोस्ती कर ली। इसका करारा जबाब देने के लिए मुखिया नवलकिशोर राय ने नक्सली मैनुद्दीन उर्फ रवि जी से नजदीकी बढ़ाई जिसने मुखिया को सुरक्षा का आश्वासन दिया। इसी मुद्दे पर नक्सली संगठन में आपसी अनबन का दौर प्रारंभ हो गया था। बताया जाता है कि आपसी तकरार इस कदर बढ़ी कि 24 दिसंबर 2003 को संतोष झा अपने साथियों के साथ सीतामढ़ी मारने जा रहा था कि इसी बीच बैंक लूट के असफल ह़ोने पर पुलिस से उसकी मुठभेड़ हो गई। इसमें उसे गोली भी जिसे मुजफ्फरपुर में ऑपरेशन कर निकाला गया। मगर अब पुलिस से बचना आसान नहीं था और आखिरकार 2004 में संतोष पुलिस के हत्थे चढ़ ही गया। जेल से निकलकर 2009 में संतोष झा ने अपनी स्वयं की आर्मी सेना बनाई और अन्हारी बैंक लूट कांड को अंजाम दिया। उसके बाद पिपराही पुल निर्माण कार्य को बाधित कर लेवी के रुप में मोटी रकम वसूल की। वहीं सीतामढ़ी में नवल किशोर यादव को की नींद सुलाकर अपना बदला पूरा किया। इसके बाद संतोष झा की सेना कंस्ट्रक्शन कंपनियों से लेवी के रुप में करोड़ो की रकम उगाही की जिसमें मुकेश पाठक की खास भूमिका रही। - सामुदायिक भवन में ली है शरण कालचक्र ऐसा कि करोड़ों की बेशुमार संपत्ति इकट्ठा करनेवाले संतोष झा के पारिवारिक सदस्यों को आज सामुदायिक भवन में आश्रय लेना पड़ रहा है। जहां बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। यह अलग बात है कि पास के ही एक बड़े भूखंड में आलीशान भवन बनाने की तैयारी चल रही थी जिस पर अब ग्रहण लग गया है। हालांकि अवशेष के रुप में एक गोशाला सलामत है। बता दें कि संतोष झा का परिवार दोस्तियां में अब नहीं रहता। लोगों की माने तो अब श्राद्धकर्म के बाद सभी दोस्तियां से कूच कर जाएंगे। - असुरक्षित है मेरा परिवार : चंद्रशेखर संतोष झा के पिता चंद्रशेखर झा ने शनिवार को बताया कि मेरा परिवार पूरी तरह असुरक्षित है। जिस तरह कोर्ट में पुलिस की अभिरक्षा में मेरे बेटे की निर्मम हत्या हुई है वह प्रशासनिक विफलता का परिणाम है। संतोष की मौत ने मुझे बुरी तरह डरा दिया है कि न जाने कल्ह क्या हो? यहाँ यह बात गौर करने की है कि कई जिलों में खौफ का पर्याय बने संतोष झा के पिता आज खौफ के साए में जीने को मजबूर हैं।

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