फोटोग्राफी के शौक में भारत आए विक्टर ने छपरा के क्वारंटाइन सेंटर में सीखी हिंदी, हेलो नहीं अब कहते हैं नमस्ते
हंगरी से दार्जिलिंग तक साइकिल यात्रा पर निकले पर्वतारोही विक्टर जिको लॉकडाउन के कारण छपरा में क्वारंटाइन किए गए तो उन्होंने हिंदी सीख ली। जानें क्या-क्या बोलते हैं अब।
राजीव रंजन, छपरा। हंगरी से दार्जिलिंग तक साइकिल यात्रा पर निकले पर्वतारोही विक्टर जिको लॉकडाउन के कारण छपरा में फंसे हैं। यहां वह 45 दिनों से क्वारंटाइन हैं। फिर भी विक्टर का इरादा फौलाद की तरह है। वह दार्जिलिंग तक की यात्रा पूरी करके ही स्वदेश लौटेंगे। छपरा में इतने दिनों से रहने का उन्होंने फायदा उठाया, हिंदी सीख ली। कुछ-कुछ बोल लेते हैं।
चलो ठीक है...क्या हाल है...
विक्टर ने गर्म चाय, चलो ठीक है, क्या हाल है, नमस्ते जैसे शब्द सीख लिए हैं। सदर अस्पताल में रहने के दौरान सामान चोरी होने के बाद नया शब्द चोर व चोरी भी सीख लिया है। विक्टर सुबह छह बजे उठकर सबसे पहले कमरे की सफाई करते हैं। चोरी की घटना के बाद अस्पताल के कमरे में किसी बाहरी को प्रवेश नहीं करने देते हैं। सफाई के बाद योगा, फिर नाश्ता व कैंपस में साइकिलिंग उनकी दिनचर्या में शामिल है।
पर्वतारोहण व फोटोग्राफी के शौक ने पहुंचाया भारत
बुडापेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड इकोनॉमिक्स कॉलेज के इंजीनियरिंग के छात्र विक्टर जिको को पर्वतारोहण एवं फोटोग्राफी का शौक है। इसी शौक में वह पहाड़ों को पार कर फोटोग्राफी करते हुए भारत में पाकिस्तान के रास्ते बाघा बार्डर से पहुंचे। वहां से लद्दाख व हिमाचल प्रदेश होते हुए यूपी के रास्ते बलिया होते हुए छपरा पहुंचे। छपरा आने पर लॉकडाउन में फंसकर रह गए। वह हंगरी से करीब 63 हजार किमी की दूरी साइकिल से तय कर पहुंचे हैं। 15 जुलाई 2019 को हंगरी से अपनी यात्रा शुरू की थी। वह अपना गुरु एलेक्जेंडर सोमा को मानते हैं। जिन्होंने पहली बार हंगरी से दार्जङ्क्षलग तक की 1842 में यात्रा की थी। दार्जिलिंग में ही उनकी बीमारी के कारण मौत हुई थी। गुरु की तरह वह भी दार्जिलिंग पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि देना चाहते हैं।