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अतिक्रमण व उपेक्षा से मिट रहा तालाब का वजूद

सारण। रिविलगंज जिले के प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में शामिल है। इस कारण यहां कई राजाओं एवं धन

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jun 2018 04:33 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jun 2018 04:33 PM (IST)
अतिक्रमण व उपेक्षा से मिट रहा तालाब का वजूद
अतिक्रमण व उपेक्षा से मिट रहा तालाब का वजूद

सारण। रिविलगंज जिले के प्रमुख धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में शामिल है। इस कारण यहां कई राजाओं एवं धनवान लोगों द्वारा तालाब और कुंए की खुदाई कराई गई। महर्षि गौतम एवं श्रृंगी ऋषि के तपोभूमि होने से कार्तिक महीने में दूर दूर से लोग यहां आकर पूर्णिमा के अवसर पर सरयू नदी मे स्नान कर पूजा अर्चना किया करते हैं। वर्षो पहले जब गाड़ी का साधन नहीं था तो लोग पैदल चलकर आया करते थे। धार्मिक स्थल के आसपास एवं यहां तक पहुंचने के मार्ग में धनी लोग लोकहित में कुआं और तालाब की खुदाई कर पुण्य का काम करते थे। आज हालात बदल गए हैं। समाज के धनवान, दबंग, जनप्रतिनिधि और रसूख वाले लोग तालाबों की सुरक्षा के प्रति उदासीनता दिखा रहे हैं। तालाबों के जमीन में मिट्टी भर कर कब्जा जमाने की होड़ सी लगी है।

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ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग सभी गांव में तालाब हैं। सरकारी व गैरमजरूआ जमीन होने के कारण कई जगह लोगों ने कब्जा कर लिया गया है। जो बचे वे बदहाल स्थिति में हैं। बिहार सरकार गांव की ओर से मनरेगा के तहत पोखर की खुदाई कराने व घाट बनवाने के साथ ही चारों तरफ से पेड़ लगवाने का अभियान चलाया गया था। पोखर व तालाबों के जीर्णोद्धार की जिम्मेवारी पंचायतों के मुखिया को दिया गया। पंचायतों के माध्यम से किए गए कार्य फाइलों तक ही सीमित रहे । अगर इसकी निष्पक्ष जांच कराई जाय तो कई पूर्व व वर्तमान पंचायत प्रतिनिधियों की परेशानी बढ़ जाएगी।

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देख रेख के अभाव में वजूद मिटने के कगार पर

संसू, रिविलगंज : एनएच 85 छपरा - सिवान मुख्य मार्ग पर टेकनिवास बाजार से दक्षिण स्थित ऐतिहासिक जलाशय का अस्तित्व मिट रहा है। मिली जानकारी के अनुसार सन 1542 ई. में बादशाह शेरशाह शूरी ने इस तालाब की खुदाई कराई थी। रिविलगंज की एक धनवान विधवा द्वारा इसका पक्कीकरण 19 वीं शताब्दी में कराया गया। स्थानीय व दूर दराज के दर्जनों गांवों के लोगों के लिए धार्मिक नगरी गौतम स्थान आने-जाने के क्रम में विश्राम स्थल हुआ करता था। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते है कि पचास वर्ष पूर्व तक इसका पानी इतना साफ था कि लोग इसे पीने के साथ सतू का निवाला बनाकर खाया करते थें। किन्तु अब यह पोखरा इतना प्रदूषित हो गया है कि इस पोखरे के पानी में स्नान करने से भी लोग परहेज करते हैं। पोखरे के चारों ओर गंदगी का अंबार फैला है। पुराने सीढ़ी ध्वस्त हो गई तथा इसका मलबा गिर कर पोखरा का गर्भ भर दिया है। लोगों का कहना है कि इस जन उपयोगी पोखरा के जीर्णोद्धार के लिए सालों पूर्व से संबंधित विभाग के पदाधिकारियों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों का ध्यानाकर्षित कराया जाता रहा है । लेकिन अभी तक आश्वासन ही प्राप्त हुआ है। पौराणिक धार्मिक एवं सामाजिक सरोकार का केंद्र इस पोखरे का जीर्णोद्धार कराने का जहमत किसी ने अभी तक नहीं उठाई।


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