सदर अस्पताल में लाइफ से¨वग दवाओं का टोटा
कहने को तो सदर अस्पताल आइएसओ सर्टिफाइड हो चुका है लेकिन सुविधाओं के नाम पर आज भी यहां खानापूर्ति की जाती है। अगर लाइफ से¨वग दवाओं की बात करें तो सदर अस्पताल में गिनी-चुनी दवाएं हैं।
सुनील, छपरा : कहने को तो सदर अस्पताल आइएसओ सर्टिफाइड हो चुका है लेकिन सुविधाओं के नाम पर आज भी यहां खानापूर्ति की जाती है। अगर लाइफ से¨वग दवाओं की बात करें तो सदर अस्पताल में गिनी-चुनी दवाएं हैं। यूं कहें कि सदर अस्पताल में लाइफ से¨वग दवाओं का भी टोटा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि विषपान करने वाले रोगियों के लिए यहां रेफर के सिवा कोई दूसरी दवा उपलब्ध नहीं है। प्राथमिक तौर पर ऐसे रोगियों के पेट की सफाई कर दी जाती है। लेकिन स्थिति बिगड़ने पर उसे रेफर ही किया जाता हैं क्योंकि यहां पाम जैसी जीवन रक्षक दवाएं भी अनुपलब्ध है।
लाइफ से¨वग दवा जाइलोकार्ड अनुपलब्ध हैं। अगर हार्ट का कोई रोगी गंभीर स्थिति में सदर अस्पताल पहुंचता है तो उसे जाइलोकार्ड भी बाहर से खरीदकर लाना पड़ेगा।
सेसेटिव मेडिसिन के तौर पर मिडाजोलम का प्रयोग भी अति आवश्यक होता है जबकि सदर अस्पताल में यह जीवन रक्षक दवा भी अनुपलब्ध है। ऐसी स्थिति में देर रात सदर अस्पताल पहुंचने वाले रोगियों के लिए समय पर दवा खोज लेना और अपने परिजनों की जान बचा लेना काफी दुष्कर हैं। वहीं कैल्शियम ग्लूकोनेट दवा भी उपलब्ध नहीं हैं। जीवन रक्षक दवाओं में एडरनेलिन, एट्रोपिन, सोडा बाइकार्बोनेट, डयजीपाम ही उपलब्ध हैं।
सदर अस्पताल के लिए इनडोर मेडिसिन की 112 दवाओं में से मात्र 90 दवाएं उपलब्ध है। आउटडोर के लिए 33 दवाओं की सूची में 27 दवाई उपलब्ध है जबकि अन्य दवाएं सूची तक ही सीमित हैं। कहते हैं अस्पताल उपाधीक्षक
अस्पताल उपाधीक्षक डॉ.शंभू नाथ ¨सह ने बताया कि सदर अस्पताल में स्वास्थ्य समिति की सूची के अनुरूप अधिकांश दवाएं उपलब्ध हैं। जो दवाएं उपलब्ध नहीं है उनके लिए स्वास्थ्य विभाग को लिखा गया है। जीवन रक्षक दवाओं की अनुपलब्धता पर उन्होंने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर बाजार से खरीदकर उपलब्ध कराया जाता है।