लोगों की लापरवाही के कारण पटोरी में कचरे का अंबार
पटोरी जिले का एकमात्र ऐसा अनुमंडल मुख्यालय है जिसे नगर पंचायत का दर्जा नहीं मिल सका। लिहाजा न तो बाजार और न ही सघन आबादी वाले क्षेत्र में सफाई का कोई प्रबंध है। और तो और पंचायतों के पास सफाई के लिए कोई अतिरिक्त राशि है ही नहीं।
समस्तीपुर । पटोरी जिले का एकमात्र ऐसा अनुमंडल मुख्यालय है, जिसे नगर पंचायत का दर्जा नहीं मिल सका। लिहाजा न तो बाजार और न ही सघन आबादी वाले क्षेत्र में सफाई का कोई प्रबंध है। और तो और पंचायतों के पास सफाई के लिए कोई अतिरिक्त राशि है ही नहीं। नतीजा रोंगटे खड़े कर देने वाला। सड़कों के किनारे गड्ढे, कर्पूरी पार्क, नाली आदि सब कूड़ेदान में तब्दील हो चुके हैं। कई मुहल्लों में दुर्गंध के कारण गुजरना मुश्किल हो गया है। कचरों के अंबार से बाजार की सूरत बिगड़ गई है। प्रशासन की उदासीनता व लोगों की लापरवाही ने पूरे क्षेत्र में गंदगी का साम्राज्य स्थापित कर दिया है। सरकारी कार्यालयों के शौचालय और परिसर पटोरी में स्वच्छता अभियान की दुर्दशा की कहानी कहती है। स्कूलों में शायद ही साफ-सफाई पर कभी चर्चा होती।
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सफाई के लिए नहीं है पंचायतों में राशि
17 पंचायतों वाले पटोरी प्रखंड में ग्राम पंचायत के पास सफाई की कोई अतिरिक्त राशि उपलब्ध नहीं है। पटोरी और इसके आसपास के शहरी क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन की कोई अन्य व्यवस्था भी नहीं हो सकी। यह न तो नगर पंचायत बन सका और न ही पंचायतों के पास राशि उपलब्ध है। नतीजा यह कि पूरे क्षेत्र में गंदगी का अंबार है।
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नदी में बहाया जाता शौच
17 पंचायतों वाले पटोरी प्रखंड में आधे से अधिक पंचायत वाया तथा गंगा नदी के किनारे अवस्थित है। लोग अपने घरों का नाला और शौचालय की टंकी का पानी सीधे इन्हीं नदियों में बहाते हैं। प्रशासन जानकारी के बावजूद इस ओर कोई कदम नहीं उठाता और लोगों के द्वारा नदियों के जल को खुलेआम प्रदूषित किया जा रहा है। इतना ही नहीं क्षेत्र के लोग तथा बाजार के अधिकांश दुकानदार सड़कों पर ही घर के नाले का पानी बहाते हैं।
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सड़क के किनारे और रेलवे की भूमि पर कचरे का अंबार
लोग अपने-अपने घरों से कचरे को निकाल कर सार्वजनिक जगहों पर खुलेआम फेंक देते हैं। सड़क के किनारे, नाले के अंदर, रेलवे की बेकार पड़ी भूमि आदि पर इन कचरों का अंबार लगा रहता है। इन कचरों में अधिकांश पॉलिथीन से बने पदार्थ रहते हैं। दुर्गंध के कारण इन क्षेत्रों से गुजरना मुश्किल रहता है।
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ओडीएफ घोषित होने के बावजूद खुले में शौच
पटोरी प्रखंड को इस वर्ष आरंभ में ही ओडीएफ घोषित कर दिया गया था, कितु सड़क, नदियों के किनारे, रेलवे लाइन के किनारे आज भी काफी संख्या में लोग शौच करते हैं। खुले में शौच क्षेत्र में प्रदूषण का मुख्य कारण है।
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प्लास्टिक का प्रयोग हो रहा धड़ल्ले से
पटोरी में व्यापक पैमाने पर घटिया किस्म के प्लास्टिक का प्रयोग किया जाता है। कचरा में सबसे अधिक मात्रा प्लास्टिक की होती है। लोग कभी-कभी इन कचरों को जला देते हैं और खुले में जलाने के कारण इससे वायु में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इस पर प्रशासन का बिल्कुल ही लगाम नहीं।
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भोज में प्लास्टिक के पत्तल व गिलास के प्रयोग ने बिगाड़ी स्वच्छता की सूरत
सार्वजनिक भोज, वैवाहिक समारोह व अन्य कार्यक्रमों में प्लास्टिक के पत्तल व गिलास का प्रयोग धड़ल्ले क्षेत्र में होता है और उपयोग के बाद इन कचरों को खुले में फेंक दिया जाता है। इससे भी क्षेत्र में काफी अधिक प्रदूषण फैलता है। लोग हैं लापरवाह, स्कूलों में नहीं थी जाती शिक्षा
विश्व स्तर पर प्रदूषण की बढ़ती समस्या से वाकिफ यहां के लोग न सिर्फ लापरवाह हैं, बल्कि इस प्रदूषण के प्रति जिम्मेवार भी हैं। इसके लिए भी लोगों में जागरूकता है ही नहीं। इतना ही नहीं अधिकांश विद्यालयों में स्कूली बच्चों को इससे संबंधित शिक्षा नहीं दी जाती। किसी भी कार्यालय और सार्वजनिक जगहों पर भी कचरा जमा करने के लिए कचरे का कोई डिब्बा दिखाई नहीं देता।
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जागरूकता से ही प्रदूषण से मिलेगी मुक्ति
वनस्पति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्राध्यापक व पर्यावरणविद् प्रो.प्रभाकर महतो का मानना है कि पूरे क्षेत्र में प्रतिवर्ष घरेलू कचरे का उत्पादन काफी अधिक मात्रा में होता है, जिसे लोग यत्र-तत्र फेंक देते हैं। इसमें अधिकांश पदार्थ ऐसे होते हैं जिनका रीसाइक्लिग नहीं हो पाता। ऐसे पदार्थ भू-प्रदूषण के अतिरिक्त वायु प्रदूषण के मुख्य कारण माने जाते हैं। ऐसे प्रदूषण का प्रभाव मानव सहित अन्य सजीवों पर पड़ता है। गंदगी एवं दुर्गंध मिट्टी के छिद्र अवरुद्ध कर देते हैं। वायु एवं जल प्रदूषण से दमा, पीलिया, हैजा, पेचिश, नेत्र रोग आदि व्यापक रूप से फैल रहे हैं। प्रदूषण दूर करने का एकमात्र उपाय लोगों में जागरूकता का होना है जो कि क्षेत्र में दिखाई नहीं देता। सरकार को ऐसी पहल करनी चाहिए ताकि लोगों को कचरा के प्रति जागरूक किया जा सके और प्रदूषण हटाने के लिए प्रेरित किया जाए। भारत सरकार ने 1975 में शिवराजन कमंटी का गठन इसके लिए किया था। जिसमें बड़े-बड़े कूड़ा दान की व्यवस्था, शौच का उचित प्रबंधन, प्लास्टिक के उपयोग कम करने, भूमि व अन्य प्रदूषण को दूर करने के लिए कचरे को जमीन में गाड़ने आदि की बातें बताई गई थीं। लोगों को इसके लिए जागरूक कर कचरा प्रबंधन की जानकारी देना आवश्यक है।