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संविधान व कानून में स्वविवेक के अधिकार की हो स्पष्ट व्याख्या

संविधान निर्माण के 70 साल में कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। संसद के दोनों सदनों द्वारा कई संशोधन किए गए। बावजूद इसमें और सुधार की जरूरत है। खासकर अंग्रेजों के बनाए गए कानूनों को और सुधार किए जाने चाहिए।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 12:56 AM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 12:56 AM (IST)
संविधान व कानून में स्वविवेक के अधिकार की हो स्पष्ट व्याख्या
संविधान व कानून में स्वविवेक के अधिकार की हो स्पष्ट व्याख्या

समस्तीपुर । संविधान निर्माण के 70 साल में कई प्रकार के बदलाव किए गए हैं। संसद के दोनों सदनों द्वारा कई संशोधन किए गए। बावजूद इसमें और सुधार की जरूरत है। खासकर अंग्रेजों के बनाए गए कानूनों को और सुधार किए जाने चाहिए। समय और परिस्थिति के बदलाव के अनुसार कानून में भी बदलाव करना जरूरी है। इससे आम लोगों को उसका लाभ मिल सके। रोसड़ा व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ताओं ने इस पर अपने-अपने विचार रखे। किसी ने कानून में बदलाव की बात कही तो अधिकतर ने अपनी और गवाहों की सुरक्षा तथा सुविधाओं का सवाल उठाया।

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----------------- संविधान निर्माण के 70 साल में कई प्रकार के बदलाव हुए। न्यायालय को काफी सुविधाएं मिली हैं, लेकिन अधिवक्ताओं की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। सरकार द्वारा नालसा कानून के तहत गरीब असहायों को न्याय दिलाया जाना बेहतर प्रयास है। लेकिन, न्याय दिलाने में अपनी भूमिका निभाने वाले अधिवक्ताओं के लिए भी सोचना जरूरी है।

दीनानाथ नायक बीते 70 साल में कई प्रकार के बदलाव हुए हैं। कोर्ट में अभियोजन मजबूत हुआ है। वीडियो कान्फ्रेंसिग से सुनवाई सुनिश्चित हुई है। 377 और 397 धारा में बदलाव के साथ-साथ दुष्कर्म और एसिड अटैक जैसे कांडों में मुआवजा का प्रावधान हुआ है। लेकिन, आज भी गवाहों और अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाना जरूरी है। अधिवक्ता के प्रशिक्षण की व्यवस्था किए जाने की भी जरूरत है।

भूपेंद्र नारायण सिंह सुमन

विकास की गति काफी तेज है। न्यायालय भी अब पूर्णरूपेण डिजिटल इंडिया से जुड़ता जा रहा। इसमें और तेजी लाने के लिए सभी न्यायालय के साथ-साथ बार में भी इलेक्ट्रॉनिक लाइब्रेरी आवश्यक है। साथ ही, कानून को स्थापित करने में अपनी भूमिका निभाने वाले अधिवक्ताओं के लिए भी बेहतर लाइब्रेरी और इक्युपमेंट होना चाहिए। बीते 70 सालों में कई बदलाव दिखा है। विधिक सेवा समिति और लोक अदालत के माध्यम से मुकदमे का बोझ काफी कम हुआ है। लेकिन, आज भी अंग्रेजों द्वारा बनाए गए कुछ धाराओं में परिवर्तन करने की आवश्यकता है।

शतिकांत सहनी

विधिक सेवा समिति के तहत किए जा रहे कार्य न्यायालय के कांडों के निष्पादन में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। मुफ्त न्यायिक सहायता प्रदान की जा रही है। इससे न्यायालय का बोझ कम हो रहा है। भादवि की धारा 304-ए में परिवर्तन की आवश्यकता है। वाहनों से लैस अंग्रेजों द्वारा अपने हित में बनाए गए इस धारा का आज भी वाहन चालकों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है।

दीपक कुमार शर्मा

संविधान हो या कानून, सभी में स्वविवेक के अधिकार की स्पष्ट व्याख्या के साथ-साथ उसकी सीमा का निर्धारण भी जरूरी है। इसके नहीं रहने से न्यायार्थियों एवं आमलोगों को समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा। अधिवक्ता भी न्यायालय के अधिकारी हैं। इनके आवश्यक कार्य निष्पादन के लिए भी सभी प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

- अवधेश चौधरी

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अध्ययनरत छात्रों ने कहा - न्याय देना और दिलाना है उद्देश्य

विभिन्न विधि महाविद्यालयों में अध्ययनरत रोसड़ा के छात्रों ने अपनी-अपनी पढ़ाई का मूल उद्देश्य कानून की जानकारी होने के साथ-साथ लोगों को समुचित न्याय देना और दिलाना बताया है। भागलपुर में अध्ययनरत गुंजेश गौतम ने कहा कि कानून की पढ़ाई कर लोगों को उनके अधिकारों की जानकारी देने के साथ-साथ समुचित न्याय दिलाने का प्रयास करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है। वहीं बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहे नितिन कुमार ने कहा कि कानून की पढ़ाई बहुत ही रुचिकर है। अभी दो वर्षों में ही काफी कुछ सीखने को मिला है। पढ़ाई पूरी कर राष्ट्रहित और समाज हित में अपना योगदान दूंगा। जबकि, कोलकाता में पढ़ाई कर रही रिम्पी सुमन ने पढाई के तीन वर्ष पूरा होना की बात बताते हुए कहा कि आज भी लोग कानून की जानकारी नहीं रहने के कारण अपने अधिकार से वंचित हैं। खासकर जहां शिक्षा का अभाव है, वहां सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। हालांकि, विधिक सेवा समिति के गठन के बाद लोगों को जानकारी अवश्य मिल रही है, लेकिन इसका समुचित लाभ नहीं मिल पा रहा है।


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