जवान का शव पहुंचते ही गम में डूबे लोग
शाहपुर पटोरी में बीएमपी जवान सुधीर कुमार मांझी (36) का शव आते ही उसके पैतृक गांव हथरुआ में कोहराम मच गया। काफी संख्या में ग्रामीण एवं आसपास के लोग उसके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े।
समस्तीपुर । शाहपुर पटोरी में बीएमपी जवान सुधीर कुमार मांझी (36) का शव आते ही उसके पैतृक गांव हथरुआ में कोहराम मच गया। काफी संख्या में ग्रामीण एवं आसपास के लोग उसके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े। घटना की सूचना मिलते ही पटोरी थाना पुलिस थाना अध्यक्ष मुकेश कुमार के नेतृत्व में पहुंचकर श्रद्धा सुमन अर्पित किया। उसका अंतिम संस्कार पटोरी के गंगा घाट पर शुक्रवार की शाम कर दिया गया। वह मुजफ्फरपुर में ड्यूटी के दौरान अपराधियों की गोली का शिकार 6 माह पूर्व हो गया था। उसकी चिकित्सा पटना में कराई जा रही थी। चिकित्सा के दौरान गुरुवार की देर शाम उसकी मौत हो गई। पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सुधीर बीएमपी 13 में कार्यरत था। वर्तमान में दरभंगा की दंगा कंपनी में उसे पदस्थापित किया गया था। निर्वाचन कार्य के दौरान उसकी ड्यूटी मुजफ्फरपुर में लगाई गई थी। जहां इसी वर्ष 17 मार्च को फ्लैग मार्च के बाद मोटरसाइकिल सवार अपराधियों ने जवानों पर हमला कर दिया था। उसी हमले में सुधीर को गोली लग गई थी। बाद में उसे चिकित्सा के लिए पटना में भर्ती कराया गया था। उसके निधन के पश्चात शुक्रवार की सुबह उसका शव लाया गया। उसकी अंतिम यात्रा में काफी संख्या में लोग शामिल हुए तथा अश्रुपूरित नयन से क्षेत्र के इस जांबाज बेटे को अंतिम विदाई दी। उसके अंतिम दर्शन के लिए पटोरी प्रखंड प्रमुख प्रियंका सुमन, थानाध्यक्ष मुकेश कुमार, प्रभाष चंद्र राय, मुखिया मोहन ठाकुर के अतिरिक्त कई स्थानीय पंचायत प्रतिनिधि व क्षेत्र के गण्यमान्य उसके घर पहुंचे तथा परिजनों को ढांढस बंधाया।
परिजनों की चीत्कार से माहौल गमगीन
सुधीर की मौत के बाद पूरे गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया है। बीच-बीच में पत्नी मधुकला देवी की चीत्कार से उपस्थित लोगों की आंखें नम हो जाती हैं। पिता लालू मांझी और उसकी मां का रो-रो कर बुरा हाल है। भाई चंदन कुमार मांझी नम आंखों से शून्य को निहारे जा रहा है। पुत्र आशुतोष (16) और अतिश (8) के सिर से पिता की छाया सदा के लिए उठ गई। बेटी नेहा (13) रोए या मां-दादी को संभाले, समझ नहीं पा रही। कुल मिलाकर विपत्ति का पहाड़ उस परिवार पर टूट पड़ा है। इमनसराय पंचायत के हथरुआ गांव में उसका बचपन बीता था। लिहाजा काफी संख्या में उसके सहपाठियों ने भी अपने अजीज मित्र को गीले नयन के साथ कंधा दिया। सुधीर वर्ष 2008 में बीएमपी में नौकरी शुरू की और अपने पिता का सहारा बन गया। वह अपने जीवन में काफी संघर्ष कर यह मुकाम हासिल किया था और क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गया था। उसके निधन के पश्चात पूरे मोहल्ले में चूल्हे नहीं जले।