हर चेहरे पर अमन, सीने में अगन
ये धरा अमन की..। अंबर अमन का..। बात अमन की..। जज्बात अमन के..। गंगा की अविरल धारा अमन की..। मिट्टी का लाल आज आसमानी हो गया। उसकी शहादत पर मेघों का अलाप मां का विलाप और पत्नी का संताप..फट पड़ा बादलों का कलेजा। बह चली अश्रुधारा।
समस्तीपुर । ये धरा अमन की..। अंबर अमन का..। बात अमन की..। जज्बात अमन के..। गंगा की अविरल धारा अमन की..। मिट्टी का लाल आज आसमानी हो गया। उसकी शहादत पर मेघों का अलाप, मां का विलाप और पत्नी का संताप..फट पड़ा बादलों का कलेजा। बह चली अश्रुधारा। शब्द खामोशी ओढ़े निशब्द थे। भावनाएं प्रबल थीं। पिता सुधीर सिंह की आंखें नम थीं, लेकिन चेहरे पर गर्व भी। बेटे के बलिदान से मां अलौकिक त्याग का प्रतिमान बन चुकी हैं। भाई-बहन बचपन की यादों के अथाह सागर में डूबे हैं। पत्नी मीनू अचेत है, निष्प्राण है, बेसुध है..सामने शून्य है। ..बस अमन नहीं है। बच्चा-बच्चा अमन है..
तिरंगे मे लिपटा शहीद अमन.. सीने में अगन पैदा कर गया। बच्चा-बच्चा बोल उठा.. भैया तेरी कुर्बानी बर्बाद नहीं होगी। देख लो, बच्चा-बच्चा अमन है। भाई, तेरी शहादत को बदला तो ले के रहेंगे। लड़कपन के दोस्त खामोश हैं..सीने में जल रही ज्वाला की तपिश लिए। आंखें नम हैं, पर मन में उबाल है, उद्वेग है। अमन कभी घर आता तो अकेला कहीं नहीं जाता। दोस्त साथ होते। यह ख्याल आया, इसलिए पटना से लेकर गंगाघाट तक साथ नहीं छोड़ा..पल-पल, हरपल। पर, गंगा किनारे संग छूट गया.. आज अमन को क्या हो गया..अकेला निकल गया। दूर..बहुत दूर..सबसे दूर। कांपते हाथों से सैल्यूट..भाई जय हिद
कांपते हाथ, मन में अथाह वेदना..। बहन मौसम कुमारी की भाई को राखी की दुहाई। हे ईश्वर, इतना दुख..। लेकिन, बहन ने भाई की शहादत को सलाम किया। कांपते हाथों से सैल्यूट..भाई, जय हिद। तेरी राखी उधार रही। फूट-फूट कर रोई ममता
पुत्री का सुहाग उजड़ने से विचलित मीनू के माता-पिता की ममता कलप उठी। खुद को सहेज पाने में असमर्थ अपनी पुत्री मीनू को ढांढ़स बंधा रहे थे। मीनू के पिता अक्षय कुमार सिंह व माता बिदु देवी पुत्री की पीड़ा और दामाद की शहादत विचलित कर रहा था। मीनू बार-बार मां से कहती, उसके अमन को कोई लौटा दे।