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श्रावण मास पर कोरोना वायरस की अमावस छाया

समस्तीपुर। श्रावण मास पर कोराना वायरस की अमावस छाया पड़ गई है। एक माह तक चलने वाले श्रावणी मेला स्थगित होन से जहां एक ओर श्रद्धालुओं में मायूसी छाई है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2020 12:55 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jul 2020 12:55 AM (IST)
श्रावण मास पर कोरोना वायरस की अमावस छाया
श्रावण मास पर कोरोना वायरस की अमावस छाया

समस्तीपुर। श्रावण मास पर कोराना वायरस की अमावस छाया पड़ गई है। एक माह तक चलने वाले श्रावणी मेला स्थगित होन से जहां एक ओर श्रद्धालुओं में मायूसी छाई है। वहीं दूसरी ओर सीजनल कारोबारियों पर भी इसका गहरा असर पड़ा है। मंदिरों के कपाट बंद हैं। बाजार में बंदी छायी है। श्रावणी मेला हर वर्ष बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराता रहा है। मार्च के बाद से अबतक कोरोना के चलते भारी नुकसान झेल रहे कारोबारियों ने सावन में उम्मीद लगा रखी थी। लेकिन, कोराना के बढ़ते संक्रमण ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। फूल के अलावे जलाभिषेक से जुड़े कांवर, गमछा, गंजी व अन्य परिधान, प्रसाद व अन्य कारोबार प्रभावित हुआ। बाजार में मंदी छायी है। जिले में व्यापक रुप से श्रावणी मेला का आयोजन किया जाता था। मिट्टी से लेकर कांवर की हजारों दुकानों सज जाती थी। कांवरियां पथ पर हजारों लोगों को रोजगार मिलता था। एक महीने के मेले के रोजी से हजारों परिवारों को साल भर तक रोटी मिलती थी। मेले का हर किसी को इंतजार रहता था। श्रावण मास में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते थे। एक माह में करोड़ो का कारोबार होता था। लेकिन इस बार उम्मीदों पर पानी फिर गया है। सरकार ने श्रावण मास तक शिवालयों को भी बंद रखने का आदेश जारी कर दिया।

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सीजनल कारोबार प्रभावित

श्रावणी मेला में करोड़ो का कारोबार यहां होता है। इसमें होटल, रेस्टोरेंट, कपड़ा, पंडा, कांवर, डिब्बा, फल-फूल, अगरबत्ती, पूजा पाठ सामग्री आदि व्यवसाय की तैयारी कई महीनों से होती है। महेश झा की थानेश्वर स्थान मंदिर के पास फूल व पूजन सामग्री बेचने का काम करते हैं। इनका कहना है कि श्रावणी मेला में श्रद्धालुओं की तांता लगा जाता है। सैकड़ों अस्थायी दुकान खुल जाते हैं। एक कांवरियां न्यूनतम 100 से 200 रुपये खर्च करते हैं। चाय, नाश्ता आदि में न्यूनतम 50 रुपये खर्च करते हैं।

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फूलों के बाजार में नहीं आई बहार

लॉकडाउन के बाद फूल कारोबारी मंदी से उबर नहीं पाए। जाफरानी, वेली, गुलाब और रजनीगंधा की खुशबू संग फूलों का बाजार सजता था। लेकिन, मंदी के कारण बाजार बेजार हो गया है। कारोबारियों ने सावन में उम्मीद लगा रखी थी। लेकिन श्रावणी मेला स्थगित होने से फूलों की बिक्री ऐसी प्रभावित हुई कि लागत भी नहीं निकल पा रहा है। गेंदा के अलावे ज्यादातर फूल बंगाल और कलकत्ता से आते थे। गोला बाजार स्थित फूल कारोबारी हिमांशु कहते हैं कि दिन भर में हाथ खर्च निकलना भी मुश्किल है। ऐसे में हालात में परिवार पालना भी मुश्किल हो रहा है। फूलों की बिक्री क्या घटी, कीमत भी जमीन पर आ गई। फूलों के राजा गुलाब की कीमत पचास फीसदी तक घट गई। गुलाब के अलावा गेंदा और रजनीगंधा जैसे फूलों की बिक्री ही नहीं रह गई है। 200 रुपये बिकने वाले गेंदा की डाली 100 रुपये में बिक रही है। वहीं 300 रुपये बंडल का गुलाब और रजनीगंधा 150 रुपये में बिक रहा है।

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कपड़ा व्यवसाय भी प्रभावित

कपड़ा और रेडिमेड व्यवसाय पर गहरा असर पड़ा है। मार्च के बाद दो माह लॉकडाउन के बीत गए। अप्रैल में लगन व रमजान को लेकर कुछ तेजी आई। कारोबारी श्रावण माह को लेकर उम्मीद लगाए थे। लेकिन कोरोना के कहर से व्यवसायियों की उम्मीद धराशाई हो गई। कपड़ा व्यवसाइयों ने बताया कि लॉकडाउन के बाद कपड़ा व्यवसाय काफी प्रभावित हुआ है।


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