संगीत एक साधना, शॉर्टकट से नहीं मिलती सफलता : मैथिली
समस्तीपुर। मैथिली ठाकुर विलक्षण सुर और राग की मल्लिका के रूप में उभरी हैं। शास्त्रीय गीत-संगीत का जमाना जबकि अब पुराना हो चुका है आधुनिक धुनों की दीवानगी नई पीढ़ी में कुछ ज्यादा ही लोकप्रियता हासिल कर ली है परंतु मैथिली ने इसे झूठा प्रमाणित करते हुए अपनी विशिष्ट गायकी से शास्त्रीय गायन शैली को नया जीवन देने का कार्य किया है।
समस्तीपुर। मैथिली ठाकुर विलक्षण सुर और राग की मल्लिका के रूप में उभरी हैं। शास्त्रीय गीत-संगीत का जमाना जबकि अब पुराना हो चुका है, आधुनिक धुनों की दीवानगी नई पीढ़ी में कुछ ज्यादा ही लोकप्रियता हासिल कर ली है, परंतु मैथिली ने इसे झूठा प्रमाणित करते हुए अपनी विशिष्ट गायकी से शास्त्रीय गायन शैली को नया जीवन देने का कार्य किया है। वे अपनी विशिष्ट गायन-शैली के चलते गीत-संगीत से सम्मोहन पैदा करने की शक्ति रखती हैं। आज भक्ति गीतों, भजन व लोक गीतों को सरलता और सफलता से जनमानस के दिल व आम घरों तक पहुंचाने का बहुत बड़ा श्रेय मैथिली को जाता है। संगीत जगत में उनकी मीठी व सुरीली आवाज ने विशेष पहचान बना ली हैं। विद्यापतिधाम में आयोजित सातवां विद्यापति राजकीय महोत्सव के दौरान भजन संध्या कार्यक्रम की प्रस्तुति देने के लिए आई हुई थीं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश :
-अपनी शुरुआती समय के बारे में कुछ बताइए?
घर में संगीत के परिवेश में पली-बढ़ी होने के कारण बचपन से ही संगीत से लगाव रहा। मेरे दो भाई ऋषभ (14) और आयाची (10) भी शास्त्रीय संगीत में निपुण हैं। संगीत एक साधना है। संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कोई शॉर्टकट नहीं हो सकता।
-लोक गीत-संगीत से पहला परिचय कब और कैसे हुआ?
हम जहां पैदा होते हैं व हमारा बचपन जहां बीतता है, वो परिवेश हमारे जीवन पर काफी असर डालता है। मेरे साथ स्थिति ये रही कि मेरा पूरा बचपन मिथिलांचल की धरती पर बीता है। निस्संदेह दादाजी और पिताजी मेरे गुरु हैं। गाने के अंदाज से लेकर संगीत की बारीकियां हर कुछ मैंने इन्हीं से सीखा है।
-मिथिला से इतना लगाव कब से हुआ ?
बचपन से ही मुझे विद्यापति स्मृति पर्व समारोहों में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता रहा है। सचमुच ऐसे मौकों पर जब बड़े-बुजुर्गों से मिथिला की प्राचीनता, ऐतिहासिक उपलब्धियां, एक से बढ़कर एक विद्वानों, ऋषि-मुनियों, विदैही जनक, माता जानकी से लेकर आजतक जो शिक्षा, संस्कार और स्वाभिमान का सद्गुण मिथिलावासियों में मुझे दिखा है, यह अविस्मरणीय छाप मेरे मानसपटल पर सदैव प्रतिबिबित होता रहता है।
- मिथिला की बेटी कहकर जब बुलाया जाता है कैसा लगता है?
आज मिथिला भूगोल में सिर्फ भावनाओं में जिदा है, परंतु मुझे हमेशा यहीं प्रेरणा मिलती रही कि अपनी मातृभूमि और मातृभाषा के लिए विश्वस्तर पर नाम को बढ़ाना है। हमारे यहां की गीतगायनी परंपरा और एक से बढ़कर एक लोकगीत जिसे मैं बचपन से गाती आ रही हूं और इसे सुनकर मुझे अक्सर लोगों ने खूब वाहवाही-शाबाशी दिए, यही वजह है कि मैं मिथिलाभाव में खो सी गई हूं। मुझे अपने मातृभूमि मिथिला के लिए अभी और भी बहुत कुछ करना है।
-लोकगीत को आप कैसे परिभाषित करती हैं?
लोकगीत महज संगीत नहीं होते, बल्कि हमारे समाज के तमाम रस्मों, रिवाजों, संस्कारों एवं पर्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोकगीत के बारे में यह कहना सर्वाधिक उचित होगा कि ये समाज से जुड़ी सर्वाधिक सार्थक संगीत है। हमारे समाज के तमाम पहलुओं को संगीत के माध्यम से अगर प्रस्तुत किए जाने की बात हो तो लोकगीत ही सर्वाधिक सुलभ व सहज माध्यम के रूप में नजर आते हैं।
-वर्तमान दौर में लोक गीत-संगीत के वजूद पर खतरा उत्पन्न हो गया है?
लोकगीत हमेशा से कालजयी है और भविष्य में भी रहेगा। ऐसे में इसे बचाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि युवा पीढ़ी लोकगीतों की परंपरा को बचाने की कमान थामे। लेकिन, जब देखा युवा पीढ़ी लोक संगीत से दूर हो रही है तो मैंने इस जिम्मेदारी को निभाने का निर्णय लिया। इसलिए लोक संगीत के लिए खुद को समर्पित कर दिया है।
-क्या भाइयों में भी संगीत और गायकी के प्रति आपकी तरह ही रुचि हैं?
मेरे दो छोटे भाई हैं। दोनों तबला बजाते हैं। वे भी मेरी तरह संगीत में उतनी ही रुचि रखते हैं। उन्हें भी दादाजी और पिताजी से सब कुछ सीखने को मिला है। जब मैं गाती हूँ तो वो तबला बजाकर संगीत का धुन पूरा करते हैं। हमलोग परिवार में ही संगीत की पूरी टोली मौजूद रहते हैं।
-आपकी अभिरुचि गायन के अलावा पढ़ाई में भी है?
यूपीएससी की तैयारी करूंगी। कुशल प्रशासक बनने का लक्ष्य है। गायन के क्षेत्र में तो करियर आगे बढ़ाना है ही। कुशल प्रशासक बनकर देश सेवा करना चाहती हूं।
-आपने कठिन परिश्रम से बहुत कुछ पाया है?
किसी भी लक्ष्य के लिए परिश्रम करना बहुत जरुरी होता है। चाहे पढ़ाई हो या कला विकास, हमें अपने लक्ष्य को पाने के लिए हर संभव मेहनत करनी चाहिए।