सुनो भगीरथ, प्रदूषण मुक्ति के लिए गंगा तुझे पुकार रही
समस्तीपुर। मोहनपुर गंगा को अविरल और निर्मल करने को लेकर केंद्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान बनाया। इसके तहत नमामि गंगे योजना की शुरुआत हुई।
समस्तीपुर। मोहनपुर, गंगा को अविरल और निर्मल करने को लेकर केंद्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान बनाया। इसके तहत नमामि गंगे योजना की शुरुआत हुई। पटोरी, मोहनपुर, मोहिउद्दीनगर और विद्यापतिनगर प्रखंड को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया था। गंगा का जल स्वच्छ और पवित्र रहे, इसको लेकर सफाई अभियान की शुरुआत होनी थीा गंगा की सफाई के साथ-साथ जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जाना था। गंगा के तट पर बसे गांवों में शौचालय बनाया जाना था। जिससे वे गंगा किनारे जाकर शौच न करें। गंगा के तट पर शवदाह गृह का निर्माण किया जाना था। जिससे लाश को जल में नहीं बहाया जाए। सरकार ने इस योजना की शुरुआत तो की कितु मोहनपुर में यह दिखाई नही दे रहा है। न तो गंगा का पानी स्वच्छ हुआ और न ही गंगा के किनारे शौचालय समेत अन्य निर्माण कार्य ही हुए। गंगा में गंदगी नहीं फैलाने को लेकर जो जागरूकता प्रोग्राम चलाया जाना चाहिए, वह भी नही चलाया गया। प्रस्तुत है संवाददाता मुकेश कुमार मृदुल की रपट।
--- प्रखंड के दक्षिण दिशा में दस किलोमीटर की दूरी तक बहने वाली पतित पावनी गंगा को देखकर लता मंगेशकर के गाए गीत- 'राम तेरी गंगा मैली हो गयी, पापियों के पाप धोते-धोते' बरबस याद आ जाते हैं। एक समय था जब गंगा का जल महीनों बोतल में बंद रखने के बाद स्वच्छ रहता था। लेकिन, अब यह स्वच्छता खत्म हो गई है। गंगा जल को प्रदूषित करने में जहां तटवासियों की गलती है, वही सरकार और उसकी नीतियां भी कम दोषी नहीं हैं। चौतरफा उपेक्षा के कारण अपने निर्मल जल से तटवासियों को सुंदर स्वास्थ्य के अलावा खेतों की सिचाई कर भरपूर अन्न देने वाली की स्थिति बदतर होती जा रही है। यह स्थिति उसके आंतरिक हिस्से में लगातार गाद के जमते रहने के कारण उत्पन्न हुई है। गर्मी के दिनों में गंगा का जल न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाता है। चापाकल सूखने लगते हैं जिससे, प्यास बुझाने की समस्या से लेकर खेतों की सिचाई तक का संकट उत्पन्न हो जाता है। गंगा के आंतरिक भाग छिछले न होने के कारण ही भयंकर बाढ़ और कटाव की त्रासदी प्राय: हरेक वर्ष तटवासियों को झेलनी होती है। गंगा को लेकर सरकार की ओर से चलाए गए नमामि गंगे योजना केवल वादों एवं कागजों पर सुने जाते रहे हैं, पर धरातल पर बिल्कुल न के बराबर कार्य किया गया है। सांसद, विधायक और जनप्रतिनिधियों ने गंगा को हमेशा से उपेक्षित कर रखा है। शवदाह गृह के अभाव में गंगा में बहाई जातीं हैं लाश
गंगा तट पर शवदाह गृह नहीं होने के कारण लाशों को गंगा के तटों पर ही जलाया जाता है। उसके कचरे को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। लकड़ी पर जलने वाले शव पूरी तरह भष्मीभूत नहीं होते है। जिसके कारण लोग अधजले शव को नदी में बहा देते है। वह नदी में रहते-रहते सड़ता है और पानी को गंदा करता है। प्रखंड क्षेत्र के दस किमी के बाहर पूर्व और पश्चिम में दूर-दूर तक गंगा तट पर आजतक शवदाह गृह का निर्माण नहीं हो सका है। इसके अलावा पशुओं के मर जाने पर भी लोग उसे गंगा में बहा देते है। इससे गंगा का जल प्रदूषित होता है। धार्मिक अंधविश्वास से प्रदूषित होती गंगा
गंगा धार्मिक अंधविश्वास से सर्वाधिक प्रदूषित हो रही है। लोगों द्वारा दुर्गापूजा, सरस्वती पूजा, लक्ष्मीपूजा, विश्वकर्मा पूजा करने के बाद देवी-देवताओं की मूर्तियों का विसर्जन नदी में ही करते हैं। नदी में मूर्तिया विसर्जित होने के कारण नदी के आंतरिक हिस्से में गाद तो बैठता ही है, मूर्तियों में इस्तेमाल किए गए रंगों के रसायन निर्मल जल को प्रदूषित करते हैं। इतना ही नहीं प्राय: लोग अपने घरों में पूजन करने क बाद हवन के अवशेष, फूल-पत्तियां भी गंगा में बहा देते हैं। गंगा में बहाया जाता है कचरा
गंगा के किनारे स्थापित कल-कारखानों से निकलने वाले कचरे को नदी की जलधारा में ही बहाया जाता है। अनेक जगहों पर लोग अपने घर के शौचालय और नालों का पाइप भी नदी में ही खोले हुए हैं। इतना ही नहीं गंगा में स्नान करने वाले लोग साबुन और शैंपू का इस्तेमाल कर गंगा को दूषित करते हैं। समाजसेवियों ने गंगा की स्वच्छता को लेकर की पहल
समाजसेवी भाई रणधीर द्वारा गंगा को स्वच्छ बनाने की दिशा में कुछ सार्थक प्रयास किए गए हैं। अपने मित्रों के सहयोग से रसलपुर के सीढ़ी घाट के सौंदर्यीकरण का प्रयास किया है। इतना ही नहीं गंगा दशहरा के मौके पर साथियों के सहयोग से तटों की सफाई की। स्नान करने आने वाले श्रद्धालुओं को उन्होंने गंगा को स्वच्छ रखने का संकल्प कराते हुए गंगा में गंदगी नहीं फैलाने का निवेदन किया। बाकी अभी तक किसी और का ध्यान इस ओर नहीं गया है। पलायन कर गए पक्षी, कम हो गए जलीय जीव
गर्मी के दिनों में गंगा का जल अत्यधिक कम हो जाने के कारण जलीय पक्षी का पलायन हो गया। अब चकवा, दिघौंच, अधमी, वांक और चाही पक्षियां नदी तट पर किलोल करते नहीं देखे जाते हैं। जलीय जीव सोंस जिसे नदी का गिद्ध कहा जाता है, उसकी कमी हो गयी है। कछुआ भी गंगा में कम दिखाई देता है। सोंस और कछुआ नदी की गंदगी को साफ करने में काफी मददगार हुआ करते थे। जलीय पक्षी भी इस दिशा में सहायक होती थी। बयान
गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए ही नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया गया है। संसद में इसको लेकर आवाज उठायी गई। सरकार ने हमारी बातों को माना और मोहनपुर, मोहिउद्दीननगर, पटोरी क्षेत्र से गुजरने वाली गंगा नदी को स्वच्छ बनाने के लिए कार्य शुरू किया गया है। इसको लेकर कई स्तर पर कार्य होने हैं।
नित्यानंद राय, सांसद, उजियारपुर गंगा मेरी मां है। इसे लोग पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजते हैं। आज इसकी स्थिति देखकर हृदय का विह्वहल होना स्वभाविक है। केंद्र सरकार द्वारा नमामि गंगे अभियान के माध्यम से पैसों का काफी दुरूपयोग किया गया है। गंगा तट पर मेरे विधानसभा क्षेत्र में कहीं भी कोई कार्य नहीं दिखाई दे रहा।
डॉ.एज्या यादव, विधायक, मोहिउद्दीननगर