सर्दियों में मास्क करेगा वायु प्रदूषण और कोरोना संक्रमण से दोहरी मदद
जिले में तेजी से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। खासकर शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर और अधिक बढ़ा है। घर से ऑफिस पहुंचते ही सिर में दर्द एलर्जी जैसी समस्याओं से जूझना आम बात हो गई है।
समस्तीपुर । जिले में तेजी से वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। खासकर शहरों में वायु प्रदूषण का स्तर और अधिक बढ़ा है। घर से ऑफिस पहुंचते ही सिर में दर्द, एलर्जी जैसी समस्याओं से जूझना आम बात हो गई है। वैश्विक महामारी कोविड-19 के बीच अब प्रदूषण के रूप में एक और बड़ी चुनौती सामने आ रही है। कोरोना व प्रदूषण का संयुक्त हमला स्वास्थ्य के लिए ज्यादा घातक साबित हो सकता है, क्योंकि प्रदूषण के दुष्प्रभाव से सांस की बीमारियां व हार्ट अटैक का खतरा वैसे भी बढ़ जाता है। ऐसे में प्रदूषण बढ़ने पर सांस व दिल की बीमारियों से पीड़ित मरीजों को कोरोना संक्रमण होने की आशंका ज्यादा बढ़ सकती है। ऐसे में पहले से ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। इसमें मदद कर सकती है मास्क पहनने की आदत। मास्क पहनकर प्रदूषण व कोरोना संक्रमण, दोनों को मात दी जा सकती है। जिले में कहीं भी वायु प्रदूषण मापने की व्यवस्था नहीं है। इसका यंत्र भी नहीं लगाया गया है। इससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है। बदलता मौसम बढ़ा रहा मुसीबत
शहर में जनसंख्या के साथ-साथ सड़कों पर वाहनों का दबाव भी बढ़ता जा रहा है, जिनसे निकलने वाला धुआं फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। लॉकडाउन के दौरान शहरों की आबोहवा भी साफ हो गई थी मगर अनलॉक प्रक्रिया के बाद से वाहनों के आवागमन में आई तेजी से प्रदूषण फिर बढ़ने लगा है। दरअसल, ठंडे मौसम में धूल कण वातावरण में ज्यादा ऊपर नहीं उठ पाते। इस वजह से सूक्ष्म कण व जहरीली गैसें वातावरण में बढ़ जाती हैं। शहर के ओवरब्रिज के दोनों किनारे धूल की मोटी परत जमी हुई है इस वाहनों के गुजरने से हमेशा धूल उड़ते रहते हैं। इसके अलावा कई मुख्य सड़कों का भी यही हाल हैं। जिले में कई ऐसे अद्धनिर्मित सड़कें हैं जहां धूल उड़कर आसपास के वातावरण को प्रभावित करते हैं। लिहाजा, सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन व गले में खराश की तकलीफ शुरू हो जाती है। बच्चों को ज्यादा खतरा
यूं तो प्रदूषण का असर हर उम्र के लोगों पर होता है, लेकिन बुजुर्गों व बच्चों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण उन्हें खतरा अधिक होता है। भले ही कोरोना संक्रमण के मामलों में बच्चों को कम खतरा हो मगर प्रदूषण के चलते उनको अन्य तकलीफें हो सकती हैं। बच्चे यदि लंबे समय तक प्रदूषित वातारण में रहते हैं तो उनके फेफड़ों का विकास प्रभावित होता है और इसकी कार्यक्षमता उतनी नहीं रहती जितनी होनी चाहिए। जिससे 16-17 की उम्र में ही उन्हें सांस संबंधी तकलीफें हो जाती हैं। गर्भवती महिला को पहले से फेफड़े की कोई बीमारी है तो प्रदूषण बढ़ने पर वह बीमारी बढ़ सकती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर ज्यादा नहीं निकलना चाहिए। प्रदूषण से भी बचाव को मास्क जरूरी
दमा के मरीजों के लिए वायु प्रदूषण जहर के बराबर है। ऐसे व्यक्ति के लिए प्रदूषण से बचाव ही एकमात्र इलाज है। प्रदूषण के कारण मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगती है। दम घुटना, सांस लेते समय आवाज होना, सांस फूलना, छाती में कुछ जमा होना व भरा हुआ महसूस होना, बहुत खांसने पर कफ आना इसके लक्षण हैं। प्रदूषण की जगह जाने से बचें। अपनी दवा साथ रखें। अगर परेशानी महसूस करें तो तत्काल चिकित्सक से सलाह लें। अपने मुंह पर मास्क या कपड़ा बांधकर रखें।
डॉ. आरके सिंह
फिजिशियन। सतर्कता है जरूरी
60 साल से अधिक उम्र वाले बुजुर्ग, मधुमेह, दिल व सांस के मरीज भी निमोनिया का टीका लगवा सकते हैं। निमोनिया का एक टीका लगने के पांच साल बाद बूस्टर डोज लगता है। जो लोग पहले निमोनिया का टीका लगवा चुके हैं और पांच साल पूरे नहीं हुए हैं तो उन्हें यह टीका लेने की जरूरत नहीं है।
- सर्दी-खांसी होने पर रात में हल्दी-दूध का सेवन करें।
- सांस व हृदय रोगी डॉक्टर के संपर्क में रहें और दवाएं जारी रखें।
- ठंडी चीजों के सेवन से परहेज करें। सर्दी के मौसम में गुनगुना पानी पीना बेहतर रहेगा।
- खानपान में पौष्टिक चीजों का सेवन करें ताकि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहे।
- प्रदूषण व स्मॉग होने पर सुबह सैर के लिए न जाएं।
- गले में खराश होने पर गर्म पानी से गरारा करें।
- प्रदूषण के कारण सांस लेने में परेशानी हो तो भाप ले सकते हैं।