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पहले वशिष्ठ नारायण को जेल से भगाया फिर जेपी व लोहिया को

जरा याद करो कुर्बानी ------------ -आजाद हिद दस्ते ने दिया था दोनों को घटना को अंजाम -ज

By JagranEdited By: Published: Thu, 13 Aug 2020 12:53 AM (IST)Updated: Thu, 13 Aug 2020 06:14 AM (IST)
पहले वशिष्ठ नारायण को जेल से भगाया फिर जेपी व लोहिया को
पहले वशिष्ठ नारायण को जेल से भगाया फिर जेपी व लोहिया को

जरा याद करो कुर्बानी

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-आजाद हिद दस्ते ने दिया था दोनों को घटना को अंजाम

-जेपी को अपने कंधे पर बिठाकर भागे थे वशिष्ठ नारायण

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डॉ. मुकेश कुमार, समस्तीपुर : सुभाष चंद्र बोस के आजाद दस्ता के गठन के आह्वान के बाद से जिले के छात्र एवं युवा राष्ट्र की बलिवेदी पर बलिदान होने को तैयार थे। अंग्रेजों ने जय प्रकाश नारायण और डॉ. राममनोहर लोहिया को गिरफ्तार कर नेपाल के हनुमाननगर जेल भेज दिया था। वहीं, वशिष्ठ नारायण सिंह को दरभंगा जेल में। गिरफ्तारी अक्टूबर 1943 में हुई थी। आजाद दस्ता ने जेपी और लोहिया को जेल से निकालने की योजना बनाई, ताकि आंदोलन तेज हो सके। इसके लिए जरूरी था कि पहले वशिष्ठ नारायण को जेल से निकाला जाए।

दरभंगा जेल से वशिष्ठ बाबू को भगाने का जिम्मा समस्तीपुर के चकसलेम निवासी कृष्णचंद्र सिंह उर्फ राधे बाबू को दिया गया था। सरकारी कर्मचारी राम सरोवर शर्मा क्रांतिकारियोंकी मदद करते थे। उन्हीं के पारिवारिक सेवक बबजिया, आंदोलनकारी राजेंद्र नारायण शर्मा एवं अन्य साथियों के सहयोग से राधे बाबू ने इस मुश्किल काम को अंजाम दिया था। जेल का अस्पताल बाहर था। उसमें भर्ती होने के लिए वशिष्ठ बाबू ने सब्जी काटने वाले चाकू से अपनी जांघ चीर ली थी। देव नारायण गुरमैता ने दस्त होने की दवा खा ली थी। उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया। जेल से बाहर निकलने का समय रात 12 बजे तय किया गया, क्योंकि उस समय टॉवर के पहरेदार की ड्यूटी बदलती थी। इसमें पांच मिनट लगता था। तय हुआ था कि बाहर से राधे बाबू बांसुरी बजाएंगे तो भीतर से वशिष्ठ बाबू खांसकर संकेत देंगे। तब बाहर से रस्सा फेंका गया। जिसके सहारे वशिष्ठ बाबू और गुरमैता बाहर निकल आए। इसी बीच सिपाही ने देख लिया। सीटी बजा दी। बड़ी कठिनाइयों से बचते-बचाते दोनों समस्तीपर आए थे।

इसके बाद लोहिया और जेपी को निकालने की योजना बनी। वशिष्ठ बाबू और शारदानंदन झा के नेतृत्व में आजाद दस्ते के 25 साथियों को इसमें लगाया गया। सभी ने संयुक्त रूप से हनुमाननगर जेल पर हमला कर लोहिया, जेपी, बैद्यनाथ झा सहित उस जेल में बंद सभी साथियों को आजाद करा लिया था। बाद में शारदानंदन को फांसी की सजा सुनाई गई, लेकिन देश के आजाद होने के कारण वे बच गए। वहीं, वशिष्ठ नारायण सिंह आजाद भारत में विधायक भी बने।

इतिहासकार डॉ. नरेश कुमार विकल बताते हैं कि 24 मई 1945 को वशिष्ठ बाबू को फिर एक माह के अंदर ही जेल पर हमला कर लोहिया और जेपी को भगाया गया था। उस समय वशिष्ठ बाबू ही जेपी को कंधे पर बिठाकर खेत होते हुए भागे थे।

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