्रकिसानों की पाठशाला बना कृषि विवि का मैदान
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा का मैदान किसानों के लिए पाठशाला बना रहा। हर ओर किसान और उन्हें जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक व विशेषज्ञ।
समस्तीपुर । डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा का मैदान किसानों के लिए पाठशाला बना रहा। हर ओर किसान और उन्हें जानकारी देते कृषि वैज्ञानिक व विशेषज्ञ। विश्वविद्यालय द्वारा लगाए गए विभिन्न स्टॉलों व निजी स्टॉलों पर किसानों की काफी भीड़ दिखी। किसान नवीनतम तकनीक की जानकारी के साथ खुद को अपडेट कर रहे थे। दूसरे-दूसरे क्षेत्र से आए किसान अपने-अपने क्षेत्र में होनेवाले कृषि कार्य व उसमें आनेवाली समस्या आदि के बारे में जानकारी हासिल करते रहे। विश्वविद्यालय द्वारा लगाई उद्यान, मशरूम, जल प्रबंधन, भूजल पुनर्भरण सह जल निकासी इकाई आदि लोगों के लिए आकर्षण के केंद्र रहे। जल प्रबंधन, केले की खेती, पुष्प उत्पादन में ड्रिप सिचाई का प्रयोग सहित ईख अनुसंधान केंद्र द्वारा लगाई गई प्रदर्शनी, जिसमें किसानों को ईख रोपाई की नवीनतम तकनीक से लेकर विश्वविद्यालय द्वारा विकसित प्रभेद व उनमें आनेवाली बीमारियों के संबंध में भी मौजूद वैज्ञानिकों ने किसानों को जानकारी दी।
---------------------------किसानों ने निजी स्टाल पर भी ली जानकारी
गृह विज्ञान महाविद्यालय द्वारा लगाए गए स्टॉल, जहां केले के रेशे से बने विभिन्न उत्पाद जैसे थैला सहित अन्य कई सामग्री आकर्षण बनी रही। निजी स्टालों पर नर्सरी में विभिन्न पौधों की जानकारी एवं बीच के संबंध में भी किसानों ने जानकारी प्राप्त की। किसानों ने कृषि की नवीनतम यंत्रों का भी निरीक्षण किया एवं उसके संबंध में विस्तार पूर्वक जानकारी प्राप्त की। मेला के पहले दिन तक लगभग 2500 किसानों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवाया था। किसान मेले में समस्तीपुर के अलावा मुजफ्फरपुर, वैशाली, शिवहर, दरभंगा, मधुबनी, बेगूसराय, शिवहर, सिवान, मोतिहारी आदि जिलों के भी किसान मौजूद थे। ज्ञात हो कि मेले में कुल 150 स्टॉल लगाए गए हैं, जिनमें 55 स्टॉल विश्वविद्यालय सहित अन्य विभागों के हैं।
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इनसेट : 01 ग्रीन विश्वविद्यालय में गोल्फ कार्ट पर मंत्री व कुलपति ने की सवारी
पूसा, संस : किसान मेले के उद्घाटन के बाद मंत्री एवं कुलपति ने गोल्फ कार्ट से भ्रमण किया। मंत्री ने सभी स्टॉल का निरीक्षण किया। कुछ स्टॉल पर रुक कर भी विभिन्न फसलों और तकनीक के बारे में संबंधित वैज्ञानिक से जानकारी प्राप्त की। विश्वविद्यालय में पहली बार किसी मंत्री को गोल्फ कार्ट पर मेला परिसर का भ्रमण करते हुए लोगों ने देखा।
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इनसेट : 02 अरहर के डंठल व केले के रेशे के उत्पाद मेला में आकर्षक का बड़ा केंद्र
-मुख्य अतिथि को भी इसी के उत्पाद से किया गया सम्मानित
-अरहर की डंठल से तैयार कैलेंडर व मेमेंटो किया गया भेंट
पूसा, संस : तीन दिवसीय मेले में मुख्य आकर्षक का केंद्र केले के रेशे से बने विभिन्न उत्पाद एवं अरहर की डंठल से बने सजावटी सामान मुख्य आकर्षण का केंद्र बने रहे। मेले में आए मुख्य अतिथि को भी केले के रेशे से बने सामान एवं अरहर की डंठल से तैयार कैलेंडर व मेमेंटो कुलपति द्वारा दिया गया। मंत्री सहित अन्य मुख्य अतिथि इसकी सुंदरता देखकर काफी प्रभावित हुए। उन्होंने इस कार्य को आगे बढ़ाने की बात कुलपति से कही। मुख्य अतिथि योजना एवं विकास मंत्री माहेश्वर हजारी ने कहा कि उत्तर बिहार में केले की खेती काफी अधिक होती है। हमें इसे बढ़ावा देकर गांव-गांव तक इसका प्रचार प्रसार कर रोजगार से जोड़ना चाहिए। केले का फल प्राप्त करने के बाद इससे रेशे निकाले जाते हैं। रेशे से हस्तनिर्मित कई सामान बनाए गए हैं जो ग्रामीण महिलाओं के लिए अच्छी रोजगार का सृजन होगा।
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इनसेट : 03 विश्वविद्यालय ने गांवों को स्वच्छ बनाने का लिया संकल्प : कुलपतिपूसा, संस : डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव ने कहा कि पर्यावरण स्वच्छ बनाने के लिए सर्वप्रथम स्वयं को तैयार करना होगा। देश के सभी लोग इस पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देंगे, तभी स्वच्छ भारत बन पाएगा। विश्वविद्यालय द्वारा इसी स्वच्छ पर्यावरण के लिए फसल अवशेष एवं कार्बनिक अपशिष्ट प्रबंधन की योजना बनाई है। इसके अंतर्गत विश्वविद्यालय परिसर में विभिन्न आवासों से आए घरेलू कूड़े से जैविक खाद बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि देवघर से लेकर मुजफ्फरपुर के गरीबस्थान तक विश्वविद्यालय ने एक नई पहल शुरू की है। इसी तरह गांव का भी चयन कर एक यूनिट बनाई जाएगी। जहां गांव-घर में से कूड़े जमा किए जाएंगे। खाद बनाकर किसानों के साथ बिक्री किए जाने की योजना बनाई गई है। ग्रामीण स्तर पर यूनिट की स्थापना होने से रोजगार के साथ-साथ गांव की साफ-सफाई भी रहेगी और आमदनी भी प्राप्त होगी। उन्होंने कहा विश्वविद्यालय के द्वारा जल प्रबंधन पर भी कई योजनाएं बनाई गई हैं जो किसानों के लिए काफी लाभदायक है। देश के उत्तर एवं पूर्वी राज्यों विशेषकर हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा व आसाम आदि में किसानों द्वारा फसल अवशेषों को जलाने का चलन बढ़ता जा रहा है। इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि कृषि कार्य के मुख्य स्त्रोत एवं संसाधन जैसे जल-जमीन-जंगल-जलवायु पशुपालन आदि का भी तेजी से नुकसान हो रहा। हमें इसे बचत की ओर ध्यान देना आवश्यक है, नहीं तो आनेवाले समय में यह एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर रह जाएगी।
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