प्रशासनिक उदासीनता की भेंट चढ़ा चकदेवी पोखर
धर्म शास्त्रों में तालाब का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। तालाब खुदवाना कुआं खुदवाना आदि बहुत बड़ा पुण्य का काम माना जाता था। इससे जहां लोगों को पीने का पानी मिल जाता था वहीं पशु-पक्षी भी इसमें जलक्रीड़ा करते थे। पर्यावरण भी संतुलित रहता था।
समस्तीपुर । धर्म शास्त्रों में तालाब का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। तालाब खुदवाना, कुआं खुदवाना आदि बहुत बड़ा पुण्य का काम माना जाता था। इससे जहां लोगों को पीने का पानी मिल जाता था, वहीं पशु-पक्षी भी इसमें जलक्रीड़ा करते थे। पर्यावरण भी संतुलित रहता था। पर्यावरण प्रदूषण नाम की कोई चीज नहीं थी। खेतों की सिचाई भी लोग आसानी से कर लेते थे। यही वजह थी कि प्राय: सभी राजा-महाराजा अपने-अपने राज्य में तालाब खुदवाते थे। आज से कई सौ वर्ष पहले उन राजा-महाराजाओं को भविष्य की चिता थी। आने वाली पीढ़ी की चिता थी। पर आज हमलोगों को सिर्फ अपनी चिता है, आने वाली पीढ़ी की नहीं। जो तालाब, कुआं, नहर आदि है भी उसकी भी हम सही से देखरेख नहीं कर पाते हैं। आज जगह-जगह खुदवाए गए तालाब, कुआं आदि अपने अस्तित्व संकट से जुझ रहा है। यही कारण है कि आज हम जलसंकट, पर्यावरण प्रदूषण सहित अन्य प्राकृतिक आपदा से जुझ रहे हैं। तालाबों का संरक्षण करने के प्रति हम सजग नहीं है।
दस बीघे के भूखंड पर हुआ था तालाब का निर्माण
प्रखंड के रामपुर जलालपुर पंचायत के रोसड़ा पथ के किनारे स्थित है चकदेवी पोखर। इस तालाब का जीर्णोद्धार कराने की सख्त आवश्यकता है। आज से करीब दो सौ वर्ष पूर्व पटना के जमींदार बालदेव बिहारी ने यहां की एक लड़की रामपुर जलालपुर की रहने वाली देवी माई के कहने पर लगभग 10 बीघे के भूखंड पर तालाब का निर्माण करवाया था। आज यह तालाब सरकारी है, जिसकी देखरेख अंचल कार्यालय के जिम्मे है। लेकिन यह भगवान भरोसे है। कभी लोगों की प्यास बुझाने बाली चकदेवी पोखर प्रशासनिक उदासीनता के करण पिछले कुछ वर्षों से खुद प्यासी है। पोखर के पास रहने वाले राजकुमार पंडित बताते हैं कि तालाब अपने आप में एक इतिहास है। जब मैं बहुत छोटा था, उस समय बड़े-बुजुर्ग कहते थे कि इस तालाब के जल में पीतल का बर्तन रहता था। जिसका इस्तेमाल व्यापारी अपने खाना बनाने के लिए करते थे। लेकिन एक दिन किसी एक व्यापारी द्वारा बर्तन चुरा लिए जाने के बाद बाकी बचे बर्तन भी जल में विलीन हो गए। उसके बाद धीरे-धीरे इस तलाब का अस्तित्व ही मिटता चला गया। आज इस तालाब मे एक बूंद पानी भी नही बचा है। जहां एक समय लोगों की भीड़ इस तालाब पर रहती थी, वहां अब मवेशी बांधा जाता है।
बुजुर्गों और युवाओं ने जताई चिता
तालाब के किनारे स्थित महावीर मंदिर के पुजारी बुजुर्ग दीवान झा बताते हैं कि एक समय था जब इस तालाब के निर्मल जल से आसपास के लोग अपने घर का सारा काम करते थे। शहर जाने वाले व्यापारी जो उस समय बैलगाड़ी का इस्तेमाल करते थे, गर्मी के दिनों में जब वे थक जाते थे तो यहीं पर विश्राम कर तालाब के पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। इस पानी का इस्तेमाल ग्रामीण दाल बनाने, कपड़ा धोने और स्नान करने के लिए भी करते थे। भूट्टू पंडित बताते हैं कि पहले लोगों में तालाब और पोखर के प्रति धार्मिक आस्था थी। कहा जाता है कि एक तालाब खुदवाना कई यज्ञ कराने के बराबर होता था। इसलिए लोग तालाब के रखरखाव और उसकी शुद्धता पर ध्यान रखते थे। परंतु बढ़ती आबादी और संसाधन के प्रयोग की वजह से तालाब का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। वहीं शहर में रह रहे अंतेश कुमार सिंह ने कहते हैं कि तालाब हमारा पूर्वज है, हमें अपने पूर्वजों को संरक्षित रखना चाहिए।
अंधाधुंध विकास की भेंट चढ़ा तालाब
कई बुजुर्गो का कहना है कि पहले इतने बड़े पैमाने पर अत्याधुनिक यंत्रों का इस्तेमाल नहीं होता था। लोग पीने का पानी का उपयोग कुआं या फिर जलाशय से करते थे। इस कारण जल संचय के प्रति लोग काफी गंभीर रहते थे। त्योहारों के मौके पर तालाबों के किनारे मेले और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन होता था। लेकिन लोगों की अनदेखी का शिकार हुए इस तालाब की अब वह रमणीयता नही रही। न ही अब तालाब का पानी पीने योग्य बचा है। तालाब के घाट भी अब जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं। सालोंभर कभी न सूखने वाला चकदेवी तालाब आज पानी की एक-एक बूंद को तरस रहा है। अब जब गर्मी के दिनों में क्षेत्र के गिरते जलस्तर से पेयजल संकट का खतरा मंडराने लगा है, तब लोगों को तालाबों का महत्व एक बार फिर समझ में आने लगा है।
कहते हैं अधिकारी
सरकारी तालाब और पोखर जो अतिक्रमित है तो उसे खाली करा कर जीर्णोद्धार कराया जाएगा। सरकार भी अपनी मुहिम जल जीवन हरियाली के तहत तालाबों और कुआं का जीर्णोद्धार करा रही है। पेड़ लगाकर लोगों को जागरुक कर रही है। प्रखंड के लोगों से आग्रह है कि तालाब और पोखर को जीवित रखें। यह भविष्य के लिए बहुत जरूरी है। दैनिक जागरण ने तालाब बचाने के प्रति जो मुहिम छेड़ा है, वह भी सराहनीय है।
अमरनाथ चौधरी
अंचलाधिकारी, दलसिंहसराय