भैया दूज व चित्रगुप्त पूजा आज, तैयारियां पूरी
समस्तीपुर। भाई बहन के बीच स्नेह प्रेम का प्रतीक पर्व भाई दूज (भरदुतिया) पर्व एवं चित्रगुप्त पूजा सोमवार को मनाई जा रही है।
समस्तीपुर। भाई बहन के बीच स्नेह प्रेम का प्रतीक पर्व भाई दूज (भरदुतिया) पर्व एवं चित्रगुप्त पूजा सोमवार को मनाई जा रही है। इस दिन बहन भाई के माथे पर तिलक करके उनके लंबी आयु की कामना करती है। पंकज झा शास्त्री ने बताया कि पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन चित्रगुप्त पूजा होती है। इस दिन को यम द्वितीया भी कहते हैं, जो भाई दूज के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं देवताओं के लेखपाल चित्रगुप्त महाराज को भी याद किया जाएगा। चित्रगुप्त भगवान मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को नई कलम या लेखनी की पूजा चित्रगुप्त जी के प्रतिरूप के तौर पर होती है। कायस्थ या व्यापारी वर्ग के लिए चित्रगुप्त पूजा दिन से ही नववर्ष का आगाज माना जाता है।
भैया दूज एवं चित्रगुप्त पूजा की तैयारियां जिले में पूरी कर ली गयी है। चित्रांश सेवा समितियों की ओर से चित्रगुप्त पूजा को लेकर खास व्यवस्था की गयी है। इसके तहत परिवार मिलन समारोह का भी आयोजन किया गया है। कायस्थों की ओर से मनाए जाने वाले इस पर्व में कुल लेख्य देवता चित्रगुप्त महाराज की पूजा काफी धूमधाम से की जाती है। मान्यता है कि जो भी इस पर्व को विधि विधान से करता है उसके घर में कभी शान शौकत की कमी नहीं होती है। भाग्य के लेखा चित्रगुप्त को ही माना जाता है। कायस्थ समाज की ओर से चित्रगुप्त पूजा को लेकर करीब एक दर्जन से ज्यादा पूजा पंडाल का निर्माण किया जाता है। इस पंडाल में भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति स्थापित कर विधिवत पूजा की जाती है। ताजपुर रोड स्थित इंद्रनगर में कायस्थ समाज की ओर से मूर्ति का निर्माण कर पूजा की जा रही है। इसी प्रकार माधुरी चौक स्थित रेलवे कॉलोनी, बारह पत्थर, धूरलख सहित अन्य जगहों पर मूर्ति स्थापित की जाती है।
भाई की लंबी उम्र को ले बहन गराती हैं जीभ में काटा पौराणिक कथा है कि भगवान कृष्ण गोपियों के साथ रासलीला मनाते थे। इसको गोपियों के घर वाले पसंद नहीं करते थे। एक बार एक गोपी का भाई गोधन रासलीला देखने को ले एक पहाड़ की ओट में छिप गया। भगवान को ये ज्ञात हो गया। उन्होंने सभी गोपियों को उस विशाल टीले को धराशायी करने को कहा। सभी ने उसे पल भर में ही मिटा दिया। बाद में ज्ञात हुआ कि उस टीले के ओट में गोधन खड़े थे। काफी विनती के बाद भगवान ने गोधन को फिर से जीवित कर दिया। तब से द्वितीया तिथि को बहने इस पर्व को बड़े उत्साह के साथ मनाती है। वहीं भाई के लंबी उम्र को ले रेघनी का काटा अपने जीभ में गराती है साथ ही भाई को केराव खिलाती है ताकि भाई उसी की तरह मजबूत रहे।
अलग ही है एक और कहानी
एक प्रचलित कथा के अनुसार भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सछ्वावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।