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..और जमीन पर चटाई बिछा धूप सेंक रहे थे प्रथम राष्ट्रपति

दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही एक नई दुनिया से मुलाकात। ऊंचे-बड़े भवनों और आबोहवा में अंग्रेजियत की परछाई। 1953 में कुछ ऐसी ही थी दिल्ली की तस्वीर। 93 वर्षीयअधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार उन दिनों को कुछ इसी तरह याद करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 12:39 AM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 12:39 AM (IST)
..और जमीन पर चटाई बिछा धूप सेंक रहे थे प्रथम राष्ट्रपति
..और जमीन पर चटाई बिछा धूप सेंक रहे थे प्रथम राष्ट्रपति

02एमजेडएफ100: अधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार

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समस्तीपुर । दिल्ली स्टेशन पर उतरते ही एक नई दुनिया से मुलाकात। ऊंचे-बड़े भवनों और आबोहवा में अंग्रेजियत की परछाई। 1953 में कुछ ऐसी ही थी दिल्ली की तस्वीर। 93 वर्षीयअधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार उन दिनों को कुछ इसी तरह याद करते हैं। तब वे एलएस कॉलेज, मुजफ्फरपुर के छात्र थे। उम्र 26 साल थी। अर्थशास्त्र से एमए की पढ़ाई के दौरान दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात हुई थी।

दलसिंहसराय अनुमंडल के विद्यापतिनगरके सिमरी गाव निवासी शिवचंद्र कहते हैं कि कॉलेज से टूर पर जाने की योजना बनी। डॉ. हरगोविंद सिंह के नेतृत्व में 12 छात्रों का दल बना। राष्ट्रपति भवन और मुगल गार्डन जाने का निर्णय हुआ। प्रस्ताव बनाकर राष्ट्रपति भवन भेजा गया। चूंकि, राजेंद्र बाबू ने एलएस कॉलेज में कुछ दिनों तक अध्यापन किया था, इसलिए प्रस्ताव आसानी से स्वीकार हो गया। हम दिल्ली रवाना हो गए।

जमीनी जुड़ाव देख हर कोई अचरज में था : हमलोग जैसे ही राष्ट्रपति भवन के गेट पर पहुंचे, वहा एक व्यक्ति जमीन पर चटाई बिछाकर धूप सेंकते दिखे। अकेले थे और सरसों का तेल हाथ-पाव में लगा रहे थे। हमने सोचा कोई माली या अन्य कर्मी होगा। करीब पहुंचे तो अवाक रह गए। वे राजेंद्र बाबू थे। उनकी सादगी और जमीन से जुड़ाव देख हर कोई अचरज में था।

जेहन में रहा एलएस कॉलेज :

शिवचंद्र बाबू बताते हैं कि राजेंद्र प्रसाद भोजपुरी में बिहार का हालचाल पूछते रहे। सभी साथियों का परिचय लिया। एलएस कॉलेज से जुड़ी यादें साझा कीं। बातचीत में राजनीति से जुड़ी एक भी बात नहीं की। सिर्फ सामाजिक परिप्रेक्ष्य, विषयगत पढ़ाई-लिखाई, कॅरियर संबंधी अपेक्षाओं पर बात हुई।

खाने को मिला था लिट्टी-चोखा :

घटाभर बातचीत के बाद राष्ट्रपति भवन से खाने में लिट्टी और चोखा आया। साथ में प्याज और हरी मिर्च थी। सभी ने वहीं जमीन पर बैठकर भोजन किया। जब वे नहाने चले तो कहा कि आपलोग मुगल गार्डन जाइए। वहा माली से फल तोड़वाकर खा सकते हैं। हा, फल कोई लेकर जाएगा नहीं। हमलोगों ने जीभर फल खाया। कीनू, संतरा आदि फल थे।

भतीजी की शादी में बरातियों को अंगोछे से की थी हवा

शिवचंद्र 1957 के उस दौर को भी याद करते हैं। तब डॉ. राजेंद्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र बाबू की बेटी की शादी थी। वह संबंध विद्यापतिनगर के सिमरी के कामेश्वर बाबू के घर में तय हुआ था। यहा से बरात सिवान के जीरादेई गई थी। उन्होंने राष्ट्रपति रहते बरातियों की खूब आवाभगत की थी। कभी ऐसा नहीं लगा कि वे राष्ट्रपति हैं। कन्या पक्ष की ओर से होने के कारण परंपरा के अनुसार जनवासा में उन्होंने बरातियों को अंगोछे से हवा की थी। सभी को सत्तू का घोल और पानी पिलाया था। एक-एक विधान को उन्होंने निभाया था।

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