सामाजिक सद्भाव का मिसाल कायम कर रहे हैं डा. कलाम
संस सहरसा आज के परिवेश में जहां जात-धर्म की राजनीति चरम पर है। अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लोग भी अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। ऐसे समय में भी डा. अबुल कलाम अपने चिकित्सकीय और सामाजिक दायित्व का निवर्हन करते हुए उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई।
संस, सहरसा: आज के परिवेश में जहां जात-धर्म की राजनीति चरम पर है। अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लोग भी अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश में लगे रहते हैं। ऐसे समय में भी डा. अबुल कलाम अपने चिकित्सकीय और सामाजिक दायित्व का निवर्हन करते हुए उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। जब भी इलाके में सामाजिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश हुई, उसे नियंत्रित करने में शासन-प्रशासन के साथ मिलकर उन्होंने अहम भूमिका अदा किया। अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच जहां अशिक्षा दूर करने के लिए वे विभिन्न संगठनों से मिलकर प्रयासरत रहे, वहीं वे अपने इलाके में आदिवासी, दलित-महादलित परिवार के गरीब बच्चों को स्कूल भेजने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अभिभावकों का आह्वान करते हैं।
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सामाजिक दायित्व को पूरा करने के लिए नौकरी से दिया त्यागपत्र
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डा. अबुल कलाम कोसी क्षेत्र के प्रसिद्ध अस्थि शल्य चिकित्सक हैं। उनके सामाजिक दायित्व व निष्कलंक छवि के कारण बुद्धिजीवियों ने वर्ष 2007 में उन्हें जीर्ण-शीर्ण और बदहाल रेड क्रास सोसाइटी को नया रूप देने की जिम्मेवारी दी। रेडक्रास सचिव रहते हुए वे लगातार विभिन्न तरह का सामाजिक कार्य करते रहे। हर आपदा के समय वे रेडक्रास के माध्यम से लोगों को सहायता दी जाने लगी। अस्पताल की सेवा के साथ निजी क्लिनिक और रेडक्रास के कार्य को एकसाथ चला पाने में हो रही परेशानी के कारण उन्होंने वर्ष 2009 में नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। तबसे वे खुलकर अपना सामाजिक दायित्व निभा रहे हैं। अपने क्लिनिक में जाति-धर्म का भेद किए बिना वे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों का मुफ्त इलाज करते हैं। यथासंभव ऐसे लोगों को उनके द्वारा अन्य सहयोग भी प्रदान किया जाता है। कुसहा त्रासदी के बाद जब इलाके में विद्युत व्यवस्था चरमरा गई तो उन्होंने पहल कर जिले के सभी धार्मिक स्थलों में रेडक्रास के माध्यम से सौर ऊर्जा चालित लैंप उपलब्ध कराया। समय- समय पर रेडक्रास में आयोजित रक्तदान कार्यक्रम के मौके पर वे कहते हैं कि बोतल में जाने के बाद रक्त न हिदू का रहता है न मुसलमान का, इससे किसी की भी जान बचाई जा सकती है। यही भाव लोगों में रहना चाहिए। वे रेडक्रास का सहारा लेकर सभी जाति-धर्म के लोगों का समान रूप से सेवा कर रहे समाज में सामाजिक सद्भाव का मिसाल कायम रहे हैं।