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मैथिल लोक कला में रोजगार की असीम संभावना

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By JagranEdited By: Published: Sat, 30 Jun 2018 05:31 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jun 2018 05:31 PM (IST)
मैथिल लोक कला में रोजगार की असीम संभावना
मैथिल लोक कला में रोजगार की असीम संभावना

सहरसा। बाजारवाद के इस युग में मिथिला की लोक कला से जुड़े उत्पाद बेरोजगारों का जहां रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं वहीं इस कला को देश व दुनिया में स्थान मिल सकता है। इसके लिए सरकारी व गैर सरकारी स्तर पर प्रयास जारी है। हालांकि इस कला को अभी अपना मुकाम नहीं मिल पाया है।

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मिथिला की भूमि हिन्दू,बौद्ध,इस्लाम धर्म,लोक वेद परंपरा और लोक कथाओं से मिथिला की सभ्यता और संस्कृति सदा से प्रभावित रही है। मिथिला पें¨टग सिद्धहस्त कलाकार पद्मश्री बउआ देवी ने जिस प्रकार मधुबनी पें¨टग को यूरोपीय देशों तक पहुंचाया वो मिथिला के लोककला की महत्ता को दर्शाता है। दिल्ली के प्रगति मैदान में वर्ष 2014 में आयोजित इंडिया इंटरनेशनल ट्रेड फेयर में मिथिला पें¨टग व सिक्की कला को बिहार का वेस्ट पेवेलियन अवार्ड से नवाजा जाना मिथिला के लोककला के बाजार की चमक को दर्शाता है। लेकिन बिहार सरकार द्वारा जिस उत्साह से वर्ष 2014 के गणतंत्र दिवस पैरेड में बिहार द्वारा रिप्रेजेंटेड कलाकारिता में मिथिला के ग्रामीण लोककला सिक्की कला को प्रधानता दी गई उसका संरक्षण व संवर्धन के लिए उस प्रकार के प्रयास का नही किया गया। यही कारण है कि यह कला अपने विराट स्वरूप में लोगों तक नहीं पहुंच पाया है। स्थानीय स्तर पर भी इस कला को बाजार उपलब्ध नहीं हो पा रहा है।

मिथिला लोककला का है अंतरराष्ट्रीय बाजार मिथिला लोककला के लिए दिल्ली सहित पड़ोसी देश नेपाल व पेरिस के साथ साथ अन्य यूरोपीय देशों को अच्छा बाजार माना जाता है। इन स्थानों पर बड़ी संख्या ें इसके खरीददार मिलते हैं।

कई संस्थाएं कर रही हैं काम मिथिला के लोक कला को बाजार तक पहुंचाने व इसे बढ़ावा देने के लिए सरकारी संस्था जीविका द्वारा लोककला के माध्यम से महिलाओं को आर्थिक संपन्नता का प्रयास किया जा रहा है। वहीं दरभंगा जानकी वाहिनी संस्था द्वारा ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए जाने वाले घरेलू खाद्य उत्पादों जैसे अचार, अदौरी, कुम्हरौरी, चिप्स के अलावा सिक्की से बनने वाले मौनी, बांस से बने अन्य उत्पादों को दिल्ली के बाजारों तक पहुंचाया जा रहा है। जबकि मिथिला गृह उद्योग द्वारा मधुबनी सहित मिथिला के अन्य स्थानों पर बनने वाले लाह की चूड़ियों को नेपाल सहित दिल्ली के बाजारों तक पहुंचाया जा रहा है। इनके अतिरिक्त भी अन्य संस्थाओं द्वारा मिथिला के लोककला को बाजार तक पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है।

क्या कहते हैं लोग जीविका के प्रखंड अधिकारी अशोक कुमार का कहना है कि लोककला के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। वहीं जानकी वाहिनी की अध्यक्ष रूबी दीपक का कहना है कि महिलाओं के घरेलू उत्पाद को बाजार तक पहुंचाकर महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना ही इस संस्था का उद्देश्य है वहीं मिथिला गृह उद्योग के अमरनाथ मिश्र का कहना है कि जहां पूर्वोत्तर भारत के राज्य अपने लोक कला को उद्योग की तरह से आगे बढ़ा रहे हैं तो मिथिला को इसमें पीछे नहीं रहना चाहिए।


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