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प्राकृतिक चिकित्सा से लोगों को निरोग कर रहे आचार्य प्रभाकर

सहरसा। 21वीं सदी के इस युग में चिकित्सा के क्षेत्र में हर दिन अभिनव प्रयोग हो रहा है। वैसे समय

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Aug 2020 06:09 PM (IST)Updated: Fri, 21 Aug 2020 06:09 PM (IST)
प्राकृतिक चिकित्सा से लोगों को 
निरोग कर रहे आचार्य प्रभाकर
प्राकृतिक चिकित्सा से लोगों को निरोग कर रहे आचार्य प्रभाकर

सहरसा। 21वीं सदी के इस युग में चिकित्सा के क्षेत्र में हर दिन अभिनव प्रयोग हो रहा है। वैसे समय में आज भी जिले के खजुरी गांव स्थित साधना केंद्र में आचार्य प्रभाकर मिश्र मिट्टी के लेप, जल चिकित्सा, एक्यूप्रेशर, सूर्य चिकित्सा, डाइट थेरेपी जैसी प्राकृतिक पद्धति से लोगों का उपचार कर रहे हैं। वे प्राकृतिक चिकित्सा को एक सहज प्रणाली मानते हैं, जिसके माध्यम से बिना किसी साइड इफेक्ट के रोगियों को चंगा किया जा सकता है। इस चिकित्सा में रोगों के इलाज में पंचतत्व के साथ सही खानपान और स्वस्थ जीवनशैली जीने का गुर सिखाया जाता है। आचार्य डेढ़ दशक से न सिर्फ रोगियों का नि:शुल्क इलाज कर रहे हैं, बल्कि चिकित्सा के इस प्राचीन परम्परा को जीवित रखने का सफल प्रयास भी हो रहा है।

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मिट्टी के लेप और जल से ठीक हो रहे मरीज

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आचार्य प्रभाकर के इलाज का अपना विशिष्ट तरीका है। इनके केन्द्र में मोटापा, सायनोसाईटिस, गैस, कब्ज, गठिया रोग, चर्मरोग, माईग्रेन एलर्जी, अनिन्द्रा आदि का सफल इलाज किया जाता है। ये मिट्टी के लेप (मड थेरेपी), जल चिकित्सा (जलनेती ), एक्यूप्रेशर, सूर्य चिकित्सा, व्रत, संतुलित आहार आदि को माध्यम बनाकर इलाज करते हैं। जिले के ही नहीं अन्य जिलों के लोग भी इनसे आकर इलाज करवाते हैं। महिषी के मोहन मिश्र कहते हैं कि वे लंबे समय से साइनस से पीड़ित थे। आचार्य के इलाज के उन्हें इस बीमारी से मुक्ति मिली। नवहट्टा के मदन ठाकुर का कहना है कि वे गठिया से पीड़ित थे। प्राकृतिक चिकित्सा व योग ने उन्हें इससे मुक्ति दिलाई। खजुरी के कार्तिक कुमार का कहना है कि वे अनिद्रा की समस्या से पीड़ित थे। योग व प्राकृतिक चिकित्सा ने उन्हें नई जिदगी दी है।

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प्राकृतिक चिकित्सा से बढ़ती है रोग प्रतिरोधक क्षमता

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प्राकृतिक चिकित्सा के संबंध में आचार्य प्रभाकर का कहना है कि इस विधि का मुख्य उद्देश्य रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना है। प्रकृति में उपलब्ध पंचतत्वों के माध्यम से इस कार्य को पूरा किया जा सकता है,ताकि व्यक्ति के शरीर में बाहरी रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता विकसित हो। इससे मनुष्य की जीवन शैली भी बदल सकती है।


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