नाव बनी दियारा-फरकियावासियों की ¨जदगी
सहरसा। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी कोसी दियारा-फरकिया
सहरसा। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी कोसी दियारा-फरकियावासियों के लिए आवागमन के लिए नौका ही मुख्य साधन है। जिले के पिछड़ा व बाढ़ प्रभावित माने जाने वाला सलखुआ एवं सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर बसे एक घनी आबादी दियारा-फरकिया के इलाकों से अभी भी लोगों को बाजार व प्रखंड मुख्यालय तक पहुंचने के लिए नावों का ही सहारा लेना पड़ता है। यह स्थिति सिमरीबख्तियापुर अनुमंडल के सिमरीबख्तियारपुर एवं सलखुआ प्रखंड के पूर्वी कोसी तटबंध के भीतर बसे दर्जनों गांवों की है।
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कोसी नदी के बाहर भी फैला बाढ़ का पानी
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एक पखवारे पूर्व को कोसी नदी से उफनाई बाढ़ का पानी गांव-गांव के निचले इलाके में फैल जाने से आवागमन में ग्रामीणों को नाव का सहारा लेना पर रहा है। तटबंध के भीतर मुख्य कोसी नदी से पानी का बहाव बाहर होते ही आवागमन कठिन होने लगा है। सलखुआ प्रखंड के चार पंचायत कबीरा, चानन, अलानी एवं साम्हरखुर्द व उटेसरा एवं सितुआहा पंचायत के आंशिक भाग एवं सिमरीबख्तियारपुर प्रखंड के चार पंचायत धनुपरा, कठडूम्मर, घोघसम एवं बेलवाड़ा पंचायत के दर्जनों गांव के लाखों की आबादी सरकार के विकास की पोल खोल रहा है। इन क्षेत्रों के लोगों के लिए नाव ही नदी पार करने का एक मात्र साधन है। लोग पुल सहित पक्की सड़कों की मांग वर्षों से करते आ रहे हैं। कोसी दियारा-फरकिया वासियों की मांगे आज तक पूरी नहीं हो सकी है। नदी पार करने की परेशानी से लोग अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा नहीं दिला पाते हैं। तटबंध के भीतर दुरूह आगमन व नदी के खौफ से ग्रामवासी चाहकर भी प्रतिदिन प्रखंड मुख्यालय आने से कतराते है। इस स्थिति में फरकिया इलाके में स्वास्थ्यए शिक्षा, शुद्ध पेयजल, बिजली, पक्की सड़क एवं कोसी नदी में पुल की परिकल्पना बेमानी साबित हो रही है।
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क्या कहते हैं ग्रामीण
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अर्जुन यादव, मनोहर यादव, नरेश पासवान, प्रमोद ¨सह, रामभरोश महतो, चिड़ैया निवासी रामविलाश भगत, मनोज भगत, लक्ष्मी यादव आदि कहते हैं कि कोसी दियारा-फरकियावासी हमेशा से ही उपेक्षित रहे हैं। दियारा-फरकिया में सड़क व कोसी नदी में पुल का अभाव है। रात के समय अगर कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए तो उसका भगवान ही मालिक होता है। इन गांवों में भवन निर्माण में प्रयुक्त सामग्री में भी अधिक खर्च वहन करना पड़ता है। ग्रामीणों को गृह निर्माण कराने के लिए सामग्री लाने में भारा भी अधिक लगाना पड़ता है। बिजली तो सपना बना हुआ है।