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तीन माह तक नाव पर गुजरती है जिन्दगी

सहरसा। बाढ़ के दौरान तटबंध के भीतर निचले इलाकों में रहने वाले करीब एक लाख की आबादी का जीवन नाव के सहारों ही गुजरता है। यहां एक घर से दूसरे घर तक एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले तक दवा लानी हो अथवा राशन बिना नाव पर सवार हुए कहीं आना-जाना संभव नहीं होता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Jul 2021 05:36 PM (IST)Updated: Sun, 11 Jul 2021 05:36 PM (IST)
तीन माह तक नाव पर गुजरती है जिन्दगी
तीन माह तक नाव पर गुजरती है जिन्दगी

सहरसा। बाढ़ के दौरान तटबंध के भीतर निचले इलाकों में रहने वाले करीब एक लाख की आबादी का जीवन नाव के सहारों ही गुजरता है। यहां एक घर से दूसरे घर तक, एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले तक, दवा लानी हो अथवा राशन बिना नाव पर सवार हुए कहीं आना-जाना संभव नहीं होता है।

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इतनी बड़ी आबादी के यातायात के लिए प्रशासन द्वारा बाढ़ प्रभावित इलाकों में तीस से चालीस नाव चलाए जरूर जाते हैं, लेकिन यह परिचालन सिर्फ एक माह के लिए। शेष समय अगर इनके घरों, मुहल्लों में निजी नाव न रहे तो लोग या तो अधिक राशि देकर बहुत जरूरत के काम करने के निजी नाव पर सवार होकर घरों से निकलते हैं अथवा तीन माह तक घरों में कैद हो जाते हैं।

कोसी नदी के जलस्तर में इस वर्ष जून माह से ही उतार-चढ़ाव जारी है और झाड़ा, बघवा, बेलडावर ,खैना बिहना ,टिकोलवा ,सिसौना ,सौरवा ,झखड़ा जैसे दर्जनों गांव बाढ़ के पानी से घिरे हैं। बावजूद स्थानीय प्रशासन अबतक नाव का परिचालन शुरू नहीं किया है। जिसके कारण लोगों को आर्थिक, शारीरिक, मानसिक परेशानियों से गुजरना पड़ रहा है।

इस संबंध में झाड़ा के निवासी विपिन पासवान, हरेराम ठाकुर, शैनी पासवान, सिसौना निवासी अरूण यादव, टिकोलवा निवासी संजय सादा, खैना के निवासी प्रेमलाल सादा सहित अन्य ने बताया कि प्रशासन की नजर में बाढ़ तभी आता है जब कोसी का डिस्चार्ज ढाई से तीन लाख पार कर जाए, लेकिन निचले इलाकों में डेढ़ लाख क्यूसेक पानी के डिस्चार्ज से भी लोग डूबने लगते हैं।


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