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पड़ोसी मुन्ना के घर जाकर पानी पीते हैं स्कूली बच्चे

संवाद सूत्र सहरसा जिले के सरकारी स्कूलों में बच्चे संक्रमित पानी पीने को मजबूर है। प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में बच्चे चापाकल के पानी पर ही निर्भर रहते हैं।

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 May 2022 07:16 PM (IST)Updated: Thu, 19 May 2022 07:16 PM (IST)
पड़ोसी मुन्ना के घर जाकर पानी पीते हैं स्कूली बच्चे
पड़ोसी मुन्ना के घर जाकर पानी पीते हैं स्कूली बच्चे

संवाद सूत्र, सहरसा: जिले के सरकारी स्कूलों में बच्चे संक्रमित पानी पीने को मजबूर है। प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में बच्चे चापाकल के पानी पर ही निर्भर रहते हैं। शहर में स्थिति कुछ ठीक है तो ग्रामीण क्षेत्रों में पानी पड़ोसी के यहां जाकर बच्चे पीते हैं। सपटियाही प्राथमिक विद्यालय के बच्चे स्कूल के पड़ोसी मुन्ना के चापाकल से पानी पीते हैं।

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बुधवार का विभिन्न स्कूलों का आन द स्पाट मुआयना किया गया। शहर के मध्य विद्यालय डीबी कालोनी में जिस वर्ग कक्ष में बच्चे पढ रहे थे उसी कमरे के अंदर चापाकल लगा हुआ था। कई बच्चों ने बताया कि पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा है। पानी पीने में अच्छा नहीं लगता है। लेकिन मजबूरी में पीना पडता है। विद्यालय के एक कमरे में आंगनबाड़ी के बच्चे भी पढते हैं। प्रधानाध्यापक अवधेश कुमार ने बताया कि यह वर्षों से चला आ रहा है। चापाकल वर्ग कक्षा में लगाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बाहर में पहले चापाकल लगा हुआ था। बाहर में अक्सर चापाकल का हेड चोरी हो जाता था। इसीलिए चोरी से बचाने के लिए कमरे के अंदर ही चापाकल लगा दिया गया है। जिससे बच्चों को पानी की जरूरत को पूरी की जा सके।

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242 बच्चों की जगह 108 बच्चे थे मौजूद

स्कूल में 242 बच्चों का नामांकन था। जिसमें 108 बच्चे मौजूद थे। वर्ग एक से लेकर आठवें वर्ग के बच्चों की पढाई अलग- अलग कमरों में हो रही थी। गिनती की संख्या में बेंच डेस्क दिखे। एक ही बेंच पर चार- पांच बच्चे बैठे हुए मिले। नामांकन की तुलना में आधा से भी कम बच्चे दिखे।

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खाने लायक नहीं रहता है एमडीएम का भोजन

शहरी क्षेत्र में मध्याह्न भोजन अब स्कूलों में नहीं बनता है। इसके लिए आउट सोर्सिंग एजेंसी बहाल है। जो शहरी क्षेत्र के 63 विद्यालयों में मध्याह्न भोजन पहुंचाती है। मार्निंग स्कूल में दिन के 11 बजे छुट्टी से पहले बच्चों को भोजन कराकर छुट्टी दी जाती है। लेकिन बच्चों के लिए भोजन सुबह आठ बजे से ही पहुंचना शुरू हो जाता है। बच्चे ठंडा व बासी भोजन करते हैं। आउट सोर्सिंग एजेंसी भीमराव अम्बेडकर दलित उत्थान शिक्षा समिति नई दिल्ली को दी गयी है। 63 स्कूलों में करीब दस से बारह हजार बच्चों के लिए उन्हें प्रतिदिन खाना बनाना पडता है। सुबह में भोजन देने के लिए उन्हें रात से ही खाना बनाना शुरू करना पड़ता है। जो दिन में खाने के दौरान पूरी तरह बासी हो जाता है। मध्य विद्यालय सपटियाही के बच्चे शिवांशु कुमार, लव, मुन्ना कहते है कि खाना में कोई स्वाद नहीं रहता है। स्कूल में पहले शिक्षक भी भोजन करते थे लेकिन अब सिर्फ हमलोग ही भोजन करते है। खाना ठीक नहीं रहता है।

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प्राथमिक विद्यालय सपटियाही में नहीं है चापाकल

शहर से सटे प्राथमिक विद्यालय सपटियाही में एक भी चापाकल नहीं है। वर्ग एक से लेकर पांचवी तक की यहां पढाई होती है। 170 नामांकित बच्चों में से 60 बच्चे ही उपस्थित मिले। इस विद्यालय में एक भी चापाकल नहीं है। बच्चे पड़ोसी मुन्ना के यहां जाकर चापाकल से पानी लाकर पीते है। बच्चे सब स्थानीय ही है। इसीलिए आसपास के लोग उन्हें मना भी नहीं करते। इस स्कूल से चार बार चापाकल की चोरी हो चुकी है। प्रधानाध्यापिका अरूणा कुमारी ने बतायी कि चोर कमरे से खिडकी व दरवाजा का चौखट तक उखाड़ कर ले गए। शौचालय दो में से एक जीर्णशीर्ण हालत में है। एक शौचालय से काम चलाया जा रहा है।

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पानी में आयरन की मात्रा एक पीपीएम से ज्यादा नहीं रहनी चाहिए। सहरसा जिले सहित कोसी इलाका में एक पीपीएम से अधिक चार पीपीएम तक आयरन की मात्रा पायी गयी है। चापाकल में आयरन की मात्रा ज्यादा हो तो उसकी जांच करा लें और एक पीपीएम से ज्यादा आयरन वाला पानी पीने योग्य नहीं है।सुनील कुमार सुमन, कार्यपालक अभियंता, पीएचईडी

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स्कूल से चापाकल चोरी की घटनाएं बराबर घटने की सूचना मिलती है। इसके बाद भी पीएचईडी विभाग से हर स्कूल में चापाकल लगाने का अनुरोध किया गया है। हर स्कूल में चापाकल लगेगा।जियाउल होदा खां, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी, सर्व शिक्षा अभियान


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