टूटी सदियों पुरानी परंपरा, उग्रतारा मंदिर में अब शराब नहीं, पंचामृत
शराबबंदी का असर आस्था पर भी दिख रहा है। महिषी के उग्रतारा मंदिर में निशापूजा पर इस बार देवी को शराब नहीं चढ़ाई गई। उसकी जगह पंचामृत ही चढ़ी।
पटना [वेब डेस्क ]। कहते हैं परंपराएं तोड़ी नहीं जातीं लेकिन जब समाज हित में यह जरूरी हो तो परंपरा को निभाने से बेहतर है इसे तोड़ देना। सहरसा जिले के महिषी में अवस्थित उग्रतारा मंदिर के व्यवस्थापकों ने भी यहीं किया है। मंदिर में देवी को शराब चढ़ाने की सदियों पुरानी परंपरा इस बार तोड़ दी गई है। निशापूजा को देवी को शराब चढ़ाने की रस्म इस बार नहीं हुई। पंचामृत से ही देवी की पूजा की गई।
लगभग तीन सौ साल के ज्ञात इतिहास में एेसा पहली बार हुआ है।व्यवस्थापकों और पुजारियों के इस निर्णय को सराहना मिल रही है। महिषी स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उग्रतारा मंदिर में हर साल नवरात्र की अष्टमी को कालरात्रि में होने वाली पंचमकार पूजन में उपयोग में लाई जाने वाली के पांच सामग्रियों में एक मद्य (शराब) भी है। निशा पूजा की रात पुजारी मां भगवती को भारी मात्रा में शराब चढ़ाते थे और पियक्कड़ों की चांदी रहती थी।
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शराबबंदी को लेकर इस बार निशा पूजा के दौरान शराब नहीं चढ़ाए जाने की सूचना के कारण हर साल दिखने वाले चेहरे नदारद रहे तो सैकड़ों एेसे लोग पूजा में आए जो शराब चढ़ाने के दौरान अमूमन परिसर से दूर रहते थे।उग्रतारा मंदिर न्यास समिति के सचिव पीयूष रंजन ने बताया कि मंदिर में अब शराब नहीं चढ़ेगा। पुजारी तीर्थानंद बाबा उर्फ बच्चा बाबा ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि देवी को इस साल पंचामृत ही चढ़ा।
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पूजा के लिए आए श्रद्धालुओं खासकर महिलाओं ने मंदिर प्रबंधन के इस निर्णय की प्रशंसा की। कहा कि शराब देवी को चढ़ाने की चीज नहीं है लेकिन परंपरा के नाम पर यह चल रहा था। निशापूजा की रात में मंदिर में शराब चढ़ाने से शराब को भी बढ़ावा मिलता था। लोग प्रसाद कहकर इसका सेवन करते थे। अब यह परंपरा खत्म हुई है तो माहौल बदलेगा।