मुहर्रम : छोटकी चौकी की जुलूस आज, कल नाल साहब लगाएंगे गश्त
मुहर्रम की नौवीं तारीख गुरुवार को छोटी चौकी की जुलूस निकाली जाएगी।
रोहतास। मुहर्रम की नौवीं तारीख गुरुवार को छोटी चौकी की जुलूस निकाली जाएगी। इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है। शुक्रवार को दसवीं तारीख के बड़की चौकी की जुलूस निकलेगी। लगभग सवा तीन सौ साल से भी अधिक समय से सासाराम में ताजिये की परंपरा कई अर्थो में विशिष्ट है। सूफी संतों की परंपरा में शुरू हुए नाल साहब की गश्त यहां की विशेषता है। अखाड़ा व मुरादे मांगने की भी परंपरा है। यही कारण है कि में ताजियों के झलक से ही लोकाचार में आज भी'रामनगर की रामलीला, डोल डुमरांव, कोचस का कंसलीला व ताजिया सासाराम की कहावत मशहूर है। बुधवार की रात करन सराय मुहल्ला समेत अन्य स्थानों पर रोशनी कार्यक्रम आयोजित किया गया।
जानकार बताते हैं कि सासाराम में ताजिया रखने की परंपरा सदियों पुरानी है। लगभग सवा तीन सौ वर्ष पूर्व शाह घोसा साहब ने सबसे पहले यहां ताजिये की परंपरा शुरू की थी। क्षेत्र के विस्तार के साथ ताजिये की संख्या बढ़ती गई। बताते हैं कि सदर व ग्रामीण क्षेत्रों में 200 से अधिक ताजियों का निर्माण किया गया है। यद्यपि महंगाई के कारण ताजियों की लागत भी बढ़ गई है। ताजियों के निर्माण में लगने वाले शीशा, मोती, गोटा इत्यादि सभी के दामों में वृद्धि भी हुई है। परंतु लोगों के उत्साह में कमी नहीं आयी है। आपसी सहयोग चंदों से ताजियों का निर्माण किया गया है। सौगातों से है नाल साहब का रिश्ता
सासाराम क्षेत्र मध्य काल से ही सूफी संतों की कर्मभूमि रहा है। सूफी संत अपने साथ सौगात लाते रहे हैं। नाल साहब का रिश्ता इन्हीं सौगातों से है। जानकार बताते हैं कि करबला की लड़ाई में हजरत अब्बास रजिया वल्लहों के घोड़े के नाल के टुकड़े सूफी संत अपने साथ लाए थे। उन्हीं टुकड़ों से नाल साहब की परंपरा का संबंध है। शहर में आधा दर्जन नाल साहब हैं। इनमें दो शाहजुमा, दो काले खां, एक शहजलालपीर व एक करबला में हैं। मुहर्रम की सातवीं तारीख को नाल साहब खड़े किए जाते हैं। नौवीं-दसवीं तारीख को ताजिये के साथ इनका गश्त होता है। करबला के नाल साहब को छोड़ शेष पांचों नाल साहब का गश्त होता है। गश्त के पीछे मान्यता है कि हुसैन की सवारी का प्रतीक है। कहा जाता है कि शुरू में नाल साहब को बक्से में रखा जाता था। मुहर्रम के समय बक्शा रखने वालों को ये सपना आने लगा कि इन्हें खड़ा कर इनकी गश्त करायी जाये तभी से ये परंपरा शुरू हुई।