कब तक बिछेंगी मोहब्बत में नफरत की लाशें
रोहतास। जब-जब मोहब्बत का विरोध होगा तब-तब नफरत की आंधी में लाशें बिछेंगी। मोहब्बत को मोह
रोहतास। जब-जब मोहब्बत का विरोध होगा तब-तब नफरत की आंधी में लाशें बिछेंगी। मोहब्बत को मोहब्बत से जीता जा सकता है, नफरत से नहीं। चर्चित ़िफल्म मुगल-ए-आजम का यह संवाद भले ही कल्पना की डोर पर खींचा गया हो, लेकिन आज यह हकीकत के रूप में सामने आ रहा है। आए दिन जिले में प्रेम प्रसंग से जुड़े मामलों में हो रही हत्याएं व आत्म हत्याओं को ले लोगों में बस एक ही सवाल कौंध रहा है कि आखिर कब तक बिछती रहेगी मोहब्बत में नफरत की लाशें।
ऐसे मामलों को ले पुलिस तो परेशान है ही गांव की स्थितियां भी ़खराब होती जा रही हैं। शनिवार की रात खेतलपुर में मां, बेटी व पिता की अपनों ने ही जिस तरह निर्मम हत्या की वह प्रेम में नफरत की ही देन माना जा रहा है। प्रिया के प्रेम में नफरत का जहर इतनी फैली की अपने ही चचेरे भाइयों ने इसे प्रतिष्ठा का विषय बना लिया। प्रिया सहित उसकी मां अनीता देवी व पिता वकील ¨सह की हत्या कर दी। पिछले साल संझौली में भी एक युवक की हत्या का भी कारण प्रेम प्रसंग ही था। छह माह पूर्व डिलिया में एक प्रेमी युगल ने सल्फास खाकर इहलीला समाप्त कर ली थी। इसके पूर्व कोआथ में एक प्रेमी युगल ने भी मौत को गले लगा लिया था। पुलिस अनुसंधान में परिजनों का दबाव व नफरत ही उनके मौत का कारण माना गया। नोखा के कारन गांव में एक प्रेम प्रसंग को ले प्रतिशोध में हत्याओं का जो दौर चला उसमे अब तक 11 लोगों की जाने जा चुकी है। संझौली के चैता गांव में एक युवती की फांसी लगा आत्महत्या का मामला पुलिस अनुसंधान में प्रेम प्रसंग का निकला। परिजनों के नफरत ही उसे फांसी लगाने को मजबूर किया। गत वर्ष सिअरुआ में प्रेम से जुड़े विवाद में प्रेमी युगल ने मौत को गले लगा लिया था। हाल के वर्षों में कछवां, काराकाट, नासरीगंज, दिनारा व बिक्रमगंज थाना क्षेत्र के अलावे सासाराम के बीएसएनएल कालोनी में भी ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं, जो प्रेम प्रसंग में नफरत की ही परिणति निकली।
कहते हैं पुलिस अधिकारी
प्रेम प्रसंग के मामलों को ले घट रही घटनाओं को रोकने के लिए सामाजिक पहल जरूरी है। वैसे पुलिस को भी ऐसे मामलों में तत्पर रहने की हिदायत दी गई है।
मो. रहमान डीआइजी, शाहाबाद प्रक्षेत्र
कहते हैं कानूनविद्
प्रेम प्रसंग से जुड़े मामले में परिजनों का संयम बहुत जरूरी है। ऐसे मामलों में लड़के-लड़कियों को समझाने का प्रयास सार्थक होगा, न कि उन्हें नफरत से निपटाने की। जहां भी परिजनों की नफरत सामने आई स्थिति भयावह हो जाएगी। क्योंकि बदलते परिवेश के साथ लड़के-लडकियों की सोच भी बदली है।
बीएन ¨सह, सेवानिवृत्त न्यायाधीश