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किसान पाठशाला में सिखाए गए स्ट्राबेरी की खेती के गुर

रोहतास। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र में शुक्रवार को आयोजित कृषक पाठशाला में किसानों को तक

By Edited By: Published: Fri, 09 Sep 2016 08:18 PM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2016 08:18 PM (IST)
किसान पाठशाला में सिखाए गए स्ट्राबेरी की खेती के गुर

रोहतास। स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र में शुक्रवार को आयोजित कृषक पाठशाला में किसानों को तकनीकी आधारित खेती के गुर सिखाए गए। जिसमें जिले के विभिन्न जगहों से आए दर्जनों किसानों ने भाग लिया। किसानों को आज स्ट्राबेरी की खेती की जानकारी दी गई। उसके उत्पादन के वैज्ञानिक तरीके बताए गए।

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कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डा. रामपाल ने बताया कि भारत सहित दुनिया के ठंढे प्रदेशों में उपजाए जाने वाली फसलों में स्ट्राबेरी महंगी और रोगरोधी फलों में शुमार होती है। इसके फल गुलाबी रंग के बड़े जामुन के आकार जैसे होते है। भारत में मूलत: जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि बर्फीले व ठंढे प्रदेशों में लगाए जाने वाला फल है। इसे कम जगहों में भी लगाया जा सकता है।इसके एक पौधे से मात्र 6 माह में ही 750 ग्राम से लेकर एक किलो तक फल प्राप्त किया जा सकता है। 25 पौधे लगाने की लागत 750 रुपये आएगी। इसके फल को अब छोटे शहरों में भी इसे 150 रूपये से लेकर 250 रूपये किलो तक बेचा जा सकता है। यह ठंढे प्रदेशों में उपजाए जाने वाला पौधा होने की वजह से इसे बिहार में अक्टूबर-नवंबर में लगाया जाता है। जो दिसंबर माह के अंत तक फल देने लगता है और जनवरी में इसके फल खाने लायक हो जाते हैं। इसका पौधा अप्रैल तक फल देता है और गर्मी होते ही सुख जाता है।

स्ट्राबेरी में क्या है औषधीय गुण:

कृषि वैज्ञानिक डा. रतन कुमार कहते हैं कि स्ट्राबेरी एक औषधीय पौधा है। जो शरीर में हिमोग्लोबिन की कमी को दूर करता है और तेजी से खून बनाता है। यह शरीर में विटामिन सी की कमी को जल्दी दूर करता है और उसकी मात्रा बढ़ाता है। कैंसर और हृदय रोगियों के लिए रामवाण है। यह पेट संबंधी बीमारी के लिए भी लाभदायक है। इसके फल को स्वस्थ आदमी या रोगी दोनों ही खा सकते हैं।

कहते हैं विशेषज्ञ:

कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी डा. अजय कुमार कहते हैं कि केंद्र में प्रत्येक माह में 10 से 15 दिन किसानों को अलग अलग फसलों के संबंध में जानकारी दी जाती है और शनिवार को गांवों में चौपाल लगाया जाता है। बुधबार को किसानों की बात वीडियो कंफ्रें¨सग के माध्यम से सबौर के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों से कराई जाती है। जिससे किसान अपनी समस्या सुनाते है और समाधान पाते हैं।


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