होटल,रेस्टूरेंट व फास्ट फूड की दुकानें बंद रहने से अंडे के व्यवसाय पर मंदी की मार
सन्डे हो या मंडे रोज खायें अंडे का फार्मूला आजकल काम आ तो रहा हैलेकिन लॉकडाउन ने ब्यवसाइयों की कमर तोड़ दी है । कोरोना के इस संकट काल में बचाव के लिये जहां एक ओर लोग तरह तरह के उपाय कर रहे हैं वहीं लोगों में अंडे के घरेलु उपयोग का भी क्रेज बढ़ा है।अंडा सुलभ होने के साथ साथ जल्दी तैयार होने वाला नाश्ता भी है।
रोहतास। संडे हो या मंडे रोज खायें अंडे का श्लोगन लॉकडाउन में लोग अमल में ला रहे हैं। लेकिन इस दौरान रेस्टोरेंट, होटल व ठेले पर खाद्य पदार्थ की बिक्री पर लगी रोक से इसकी खपत कम हो गई है । हालांकि कोरोना के इस संकट काल में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए अंडे के घरेलु उपयोग का क्रेज बढ़ा है। अंडा सुलभ होने के साथ साथ जल्दी तैयार होने वाला नाश्ता भी है। अंडे को प्रोटीन, कैल्शियम व ओमेगा-3 फैटी एसिड का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। यह सभी पोषक तत्व हमारे शरीर के लिए जरूरी होते हैं। डाक्टरों की मानें तो अंडे खाने से शरीर को जरूरी अमीनो एसिड मिलता है जिससे शरीर का स्टैमिना बढ़ता है। चिकित्सक कोरोना संक्रमण से बचाव एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अंडा खाने की सलाह दे रहे हैं।
अंडा कारोबारियों की माने तो घरेलू उपयोग बढ़ने से थोड़ा बहुत ही बाजार चल रहा है, वरना स्थिति और ़खराब हो जाती। लॉकडाउन में शहर के रेस्टोरेंट, बाजार व रेहड़ी वाले अपनी दुकानें नहीं खोल रहे हैं, जिसका असर अंडे के धंधे पर पड़ा है। अंडों के थोक कारोबारी गुड्डू बताते हैं कि नजदीकी पोल्ट्री फार्म में एक अंडा औसतन ढाई से तीन रुपये के रेट में है। लेकिन यही अगर बाहर से आता तो पैकिग, माल ढुलाई, भाड़ा आदि जोड़कर इसकी लागत साढ़े तीन रुपये हो जाती है। खुदरा दुकानदार को फिर यह चार रुपये (प्रति अंडा) में पड़ता है। कच्चा माल होने की वजह से खुदरा दुकानदार लगभग एक-दो रुपये का मार्जिन रखकर बेचते हैं। इन दिनों बाजार में फुटकर विक्रेता पांच-छह रुपये की दर से अंडा बेच रहे हैं। कोरोना के पूर्व अंडे की कीमत प्रति पीस सात रुपये तक थी।
पॉल्ट्री फार्म चलाने वाले विकास कुमार सिंह बताते हैं कि अंडे का थोक मूल्य अभी छह सौ रुपये प्रति बॉक्स है, जो पहले आठ सौ से आठ सौ बीस रुपये तक था। एक बॉक्स में 210 अंडे आते हैं। व्यवसायियों का कहना है कि अंडे का दर निर्धारित एजेंसी द्वारा तय किया जाता है। इसके चलते कभी कभार कीमत में थोड़ा-बहुत अंतर होते रहता है। आमतौर पर सर्दियों में इसके बाजार भाव में उछाल आता है, सर्दियों में अच्छी खासी बचत भी हो जाती है। लॉकडाउन के कारण घरेलू उपयोग छोड़ दें तो पहले की अपेक्षा इसकी खपत एक तिहाई से भी कम हो गई है।