Move to Jagran APP

पेयजल के लिए भी वरदान है इंद्रपुरी बराज

रोहतास। इंद्रपुरी बराज व उससे जुड़ी नहर प्रणालियां राज्य के आठ जिलों की खेतों की ही जीव

By Edited By: Published: Thu, 30 Jun 2016 03:07 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jun 2016 03:07 AM (IST)
पेयजल के लिए भी वरदान है इंद्रपुरी बराज

रोहतास। इंद्रपुरी बराज व उससे जुड़ी नहर प्रणालियां राज्य के आठ जिलों की खेतों की ही जीवन रेखा नहीं हैं, अपितु पेयजल के लिए भी बहुत बड़ा वरदान साबित हो रही हैं। नहरों के आसपास के क्षेत्र का भू-जलस्तर अन्य भागों की अपेक्षा आज भी बेहतर है। तीन दशक से लंबित पड़े इंद्रपुरी जलाशय का अगर जल्द निर्माण नही हुआ, तो सोन कमांड नहरों से जुड़े जिलों के लाखों एकड़ खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाएंगी। साथ ही सोन तटीय क्षेत्र व नहरों के समीपवर्ती भागों में पेयजल संकट गहराने लगेगा।

loksabha election banner

बराज से लाभ :

4616 फीट लंबा व 14 हजार फीट के क्षेत्रफल में इंद्रपुरी बराज फैला हुआ है। देश के 14 वें जल प्रवाह महानद सोन पर डेहरी प्रखंड में स्थित इंद्रपुरी बराज से निकली पूर्वी व पश्चिम संयोजक नहर के अलावे राज्य के आठ जिलों में नहरों व वितरणियों का जाल बिछा हुआ है। जिससे न सिर्फ खेतों को ही पानी मिलता है, अपितु सोन तटीय गांव व नहर किनारे बसे विशाल क्षेत्रफल में अवस्थित कुआं, हैंडपंप, बो¨रग को भी इसके जलस्त्रोत का लाभ मिलता है।

बराज पर ध्यान समय की मांग :

इस विशाल बराज के कैचमेंट एरिया में सिल्ट भरने से क्षमता के अनुसार बराज पर पानी का भंडारण अब नहीं हो पा रहा है। इसके रखरखाव, साफ सफाई, जलभरण क्षमता में आई गिरावट पर कोई भी तंत्र गंभीरता से ध्यान नहीं दे रहा है। जिससे हाल के कुछ वर्षों से बराज में जल संकट उत्पन्न होने लगा है। कैमूर पहाड़ी के प्रकृति स्त्रोत से प्राप्त पानी के अलावे यह बराज रिहंद व वाणसागर जलाशय पर निर्भर हो गया है। जिस वाणसागर जलाशय के निर्माण में बिहार सरकार की भी हिस्सेदारी रही है। केंद्रीय जल आयोग के साथ तीन राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के साथ अंतरराज्यीय बैठक में तय बिहार के हिस्से का पानी पिछले लगभग एक दशक से नहीं मिल रहा है। जिस कारण सोन कमांड क्षेत्र में पानी के लिए हाहाकार मच रहा है।

इंद्रपुरी जलाशय का निर्माण अतिआश्यक :

सोन नहर प्रणाली को जीवंत रखने के लिए अब एक मात्र विकल्प इंद्रपुरी जलाशय परियोजना (पुराना नाम कदवन जलाशय) का निर्माण ही है। ढाई दशक पूर्व इसके निर्माण को लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री जगरनाथ मिश्र ने कदवन (झारखंड) में इसका शिलान्यास भी किया था। जिसका बाद में नाम बदलकर इंद्रपुरी जलाशय कर दिया गया। परंतु सर्वे के बाद बांध की उंचाई को लेकर उत्तरप्रदेश की आपति के कारण निर्माण में पेंच फंस गया। हालांकि इसकी परिकल्पना 1972 में वाणसागर समझौता के तहत की गई थी। केंद्र में नरेंद्र मोदी के सता में आने के बाद इसके निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ है। केंद्र के निर्देश पर इस वर्ष केंद्रीय जल आयोग की हुई बैठक में यूपी द्वारा जलाशय की उंचाई को ले कर जारी गतिरोध का निराकरण कर लिया गया है।अब जल संसाधन विभाग डीपीआर बनाने में लगा है।

कहते है अधिकारी:

जल संसाधन विभाग द्वारा इसके टीओआर बनाने का कार्य लगभग पूर्णता की ओर है। सोन बराज के कार्यपालक अभियंता व सहायक अभियंता को इस कार्य में लगाया गया है। सरकार सोन नहरों को जीवंत बनाए रखने के लिए इंद्रपुरी जलाशय के निर्माण को कृतसंकल्पित है।

रामेश्वर चौधरी, मुख्य अभियंता

जल संसाधन विभाग, डेहरी


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.