देवभाषा संस्कृत को यहां जीवंत कर रहीं बेटियां
छोटे शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में देवभाषा संस्कृत के जानकारों की कमी ने छात्रों को भी इससे मुंह मोड़ने पर विवश किया है। मैट्रिक में कई छात्र अब अतिरिक्त विषय में संस्कृत के बदले अन्य भाषा व विषय का अध्ययन करने लगे हैं। संस्कृत के प्रति विमुखता को देख सेवानिवृत्त शिक्षक मुनमुन दूबे बेटियों को संस्कृत की निश्शुल्क शिक्षा देकर इस भाषा से लगाव के लिए अभियान चला रहे हैं। इसके लिए नियमित शिक्षा दे अन्य सामग्रियां भी उपलब्ध करा रहे हैं। उनका मानना है कि बेटियां जब देवभाषा जानेंगी तभी यह और समृद्ध होगी।
धनंजय पाठक, सासाराम (रोहतास) : छोटे शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में देवभाषा संस्कृत के जानकारों की कमी ने छात्रों को भी इससे मुंह मोड़ने पर विवश किया है। मैट्रिक में कई छात्र अब अतिरिक्त विषय में संस्कृत के बदले अन्य भाषा व विषय का अध्ययन करने लगे हैं। संस्कृत के प्रति विमुखता को देख सेवानिवृत्त शिक्षक मुनमुन दूबे बेटियों को संस्कृत की निश्शुल्क शिक्षा देकर इस भाषा से लगाव के लिए अभियान चला रहे हैं। इसके लिए नियमित शिक्षा दे अन्य सामग्रियां भी उपलब्ध करा रहे हैं। उनका मानना है कि बेटियां जब देवभाषा जानेंगी तभी यह और समृद्ध होगी।
शहर के श्रीशंकर इंटर स्तरीय विद्यालय तकिया से वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद वे भी अपनी सेवा को नहीं भूले हैं। सेवानिवृत्ति के बाद अनुसूचित जाति आवासीय विद्यालय रामेश्वरगंज, पिछड़ा वर्ग प्लस टू आवासीय विद्यालय मोकर, रामा रानी बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय में निशुल्क पढ़ाने का कार्य किया है। कोरोना महामारी के बीच अप्रैल 2020 से अपने आवास पर ही खासकर बेटियों को मार्च 2020 से ही गुरुकुल खोल निशुल्क संस्कृत की शिक्षा दे रहे हैं। वे लड़कियों को वेद पुराण की शिक्षा दे पांडित्य के क्षेत्र में उतारने का कार्य भी कर रहे हैं, ताकि देवभाषा संस्कृत और समृद्ध हो सके व बेटियां आत्मनिर्भर बन सकें।
उनका कहना है ज्ञान व सेवा दोनों आजीवन करने की चीज होती है। ज्ञान बांटने से जहां और अधिक ज्ञान हासिल होती हैं वहीं सेवा से कर्तव्य की पहचान होती है। बेटियों को बचाना व उसे आगे बढ़ाना सिर्फ सरकार ही नहीं हम सब की जवाबदेही है। बालिका दिवस पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि लड़कियों को अच्छी शिक्षा दें ताकि वह भारतीय संस्कृति से लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा तक को समृद्ध कर सके। कहती हैं बेटियां :
- संस्कृत द्वितीय भारतीय भाषा है, जिसमें संस्कार व संस्कृति की भी शिक्षा रहती है। एक समय था जब संस्कृत को मैट्रिक में अनिवार्य द्वितीय भारतीय भाषा के रूप में पढ़ाई होती थी। आज इसे एच्छिक कर कई विकल्प दिए गए हैं। वे संस्कृत विषय लेकर पढ़ाई कर रही हैं।
कात्यायनी, डीएवी स्कूल सासाराम संस्कृत हमारी देवभाषा रही है। विद्यार्थी मूल भाषा से विमुख होने लगे हैं। सरकार को इसे अनिवार्य कर भाषा कर देनी चाहिए। स्थिति यही रही तो संस्कृत पढ़ाने वाले खोजने पर भी नहीं मिलेंगे। वे मुनमुन दुबे जी की प्रेरणा से संस्कृत पढ़ रही हैं।
आरती कुमारी, केंद्रीय विद्यालय - संस्कृत सरल व सहज भाषा है, जो भारतीय संस्कृति को संजोए हुए है। इससे हमारी संस्कृति व संस्कार दोनों समृद्ध होती है। वे संस्कृत विषय लेकर इसकी शिक्षा भी ले रही हैं, जिससे आगे चलकर वे प्राचीन भारतीय शास्त्रों का अध्ययन कर सकें।
श्वेता कुमारी, केंद्रीय विद्यालय