कैमूर पहाड़ी से दुर्लभ हुई संजीवनी बूटी, करोना संक्रमण के समय समझ में आई महत्ता
कोरोना संकट काल में एक बार फिर प्राकृतिक औषधियों की महत्ता बढ़ गई है । रोग से लड़ने के लिए प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने में इनकी भूमिका बढ़ गई है। कोरोना ग्रसित मरीजों के स्वस्थ होने में प्राचीन काल में प्रयोग में लाए जाने वाले जड़ी-बूटी को फिर से मान्यता मिलने लगी है। बुखार सर्दी और खासी जैसे रोगों में पहले के लोग जसौधा तुलसी काली मिर्च लौंग आदि का प्रयोग करते थे। परंतु पेड़ों की कटाई से वन औषधियों का वजूद मिटने लगा है । वन संपदा से समृद्ध कैमूर पहाड़ी की संजीवनी बूटी अब दुर्लभ हो गई है। वनस्पति औषधियां के लिए कभी यह इलाका मशहूर था।
कोरोना संकट काल में एक बार फिर प्राकृतिक औषधियों की महत्ता बढ़ गई है । रोग से लड़ने के लिए प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने में इनकी भूमिका बढ़ गई है। कोरोना ग्रसित मरीजों के स्वस्थ होने में प्राचीन काल में प्रयोग में लाए जाने वाले जड़ी-बूटी को फिर से मान्यता मिलने लगी है। बुखार, सर्दी और खासी जैसे रोगों में पहले के लोग जसौधा, तुलसी, काली मिर्च, लौंग आदि का प्रयोग करते थे। परंतु पेड़ों की कटाई से वन औषधियों का वजूद मिटने लगा है । वन संपदा से समृद्ध कैमूर पहाड़ी की संजीवनी बूटी अब दुर्लभ हो गई है। वनस्पति औषधियां के लिए कभी यह इलाका मशहूर था।
शतावर, धीकुवार, गिलोय, गुड़मार, आंवला ,हरे बहेरा ,आकाशबेल, पलाश शिरीष,मकोह, गिलोय, संजीवनी बूटी जैसी मिलने वाली औषधि के लिए वैद्य -हकीमों का आकर्षण रही पहाड़ी के निर्बाध दोहन से इनका वजूद ही मिट चला है। अब गिने-चुने जगहों पर ही ये देखने को मिल रही है। पहले इनसे सैकड़ों प्रकार की औषधियां बनाई जाती थी। पहाड़ी के चप्पे-चप्पे से वाकिफ वैद्य संजय आनंद की माने तो यहां पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों, वासा खांसी ,पांडु रोग, ज्वर कफ,प्रमेह, कुष्ठ रोग, जैसे कई रोग की रामबाण दवा है। जड़ी-बूटी के जानकारों की माने वासा जिसे अडूसा या आड़ासार जैसे उप नामों से जाना जाता है इसके विषय में आयुर्वेद कहा गया है कि यदि अडूसा धरती पर है और रोग भी, यह मानने की बात नहीं है। धीकुवार का रस घाव को तत्काल पका देता है, यह पेट के रोग में भी काम आता है। शिरीष कैमूर पहाड़ी का राजा है इसका अवलेह बनाकर श्वास रोग में दिया जाए तो वह समूल नष्ट हो जाता है। कैमूर पहाड़ी पर आंवला, हर्रे, बहेरा के वृक्ष जिधर देखिए उधर ही नजर आते थे। आज उन्हें ढूंढना पढ़ रहा है । धनवंतरि चिकित्सा केंद्र के मुख्य चिकित्सक डॉ दिनेश शर्मा की माने तो इस पहाड़ी पर अनेक जड़ी बूटियां हैं । यहां की वन औषधियों का प्रयोग वैध तो करते ही हैं, आसपास के लोग अपने घरों में नुक्सों के रूप में उपयोग करते ही हैं। संरक्षण के अभाव में कई दुर्लभ वन औषधि नष्ट होती जा रही है। सरकारी स्तर पर यहां आयुर्वेद औषधि निर्माण केंद्र स्थापित कर विशेषज्ञ की मदद से वन औषधियों का उपयोग दवा निर्माण किया जाए तो यहां बाहर से कच्चा माल मनाने की आवश्यकता नहीं रहेगी । इनसे सुगमता पूर्वक आयुर्वेदिक औषधियां बनती रहेंगी। पर्यावरणविद नीरज सिन्हा की माने तो निरंकुश मानसिकता के लोगों पर प्रशासनिक रोक-टोक नहीं होने से प्रकृति प्रदत यह अनमोल खजाना लूट रहा है। हर्रे, बहेरा व आंवला वृक्षों की महत्ता सिरफिरे लोगों ने नहीं समझा और उसे आग में झोंक डाला। अभी भी समय है लोग इसके प्रति जागरूक हो जो कुछ हद तक इस संपदा को पुनस्र्थापित किया जा सकता है।